दिहुली कांड से दहला था पूरा यूपी, सरेआम हुई थी 24 दलितों की हत्या, 4 दशक बाद मैनपुरी कोर्ट का आया फैसला, 3 दोषियों को फांसी की सजा
Dihuli Hatyakand: चार दशक पहले हुए दिहुली दलित नरसंहार मामले में मैनपुरी कोर्ट ने आखिरकार अपना फैसला सुनाया। मंगलवार को विशेष न्यायाधीश ने कप्तान सिंह, रामपाल और राम सेवक को दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया।;
Dihuli Hatyakand
Dihuli Hatyakand: चार दशकों बाद दिहुली दलित नरसंहार मामले में मैनपुरी कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। विशेष न्यायाधीश ने मंगलवार को कप्तान सिंह, रामपाल और राम सेवक को दोषी ठहराते हुए उन्हें फांसी की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना दिया।
क्या है दिहुली हत्याकांड का पूरा केस
यह पूरी वारदात यूपी के फिरोजाबाद से 30 किलोमीटर दूर जसराना कसबे के दिहुली गाँव की है। जहाँ संतोष, राधे श्याम और कुंवरपाल ये तीनों एक गिरोह में रहकर उसे चलाते थे। इनमें से संतोष और राधेश्याम अगड़ी जाति के थे जबकि कुंवरपाल दलित जाति से आते थे। ऐसा कहा जाता है कि डकैत कुंवरपाल की दोस्ती अगड़ी जाति की एक महिला से हो गई थी। जिसकी वजह से संतोष और राधेश्याम की कुंवरपाल से दुश्मनी बढ़ने लगी। और यही आगे चलकर नरसंहार की वजह बनती है। दरअसल कुंवरपाल की महिला से मित्रता संतोष और राधेश्याम को नागवार थी। जिसके कुछ समय बाद ही कुंवरपाल की संदिग्ध अवस्था में हत्या हो जाती है। जिसके बाद मामला गम्भीर होना शुरू हो जाता है।
संतोष और राधे श्याम पर लगा हत्या का आरोप
कुंवरपाल की संदिग्ध मौत के बाद पूरे दलित समाज ने इसका जिम्मेदार संतोष और राधे श्याम को माना था। दलित समाज के लोगों के आरोपों के बाद पुलिस ने मामले में बड़ी कार्रवाई की। उन्होंने संतोष और राधेश्याम के दो लोगों को गिरफ्तार करके उनके ठिकानों पर छापे मारे। जिसमें बड़ी मात्रा में हथियार बरामद हुए। पुलिस के एक्शन के बाद संतोष और राधेश्याम को लगा कि उनके खिलाफ गवाही दिहुली गाँव के जाटव जाति के लोगों ने ही दी है। बाद में पुलिस ने भी गवाही के तौर पर जाटव समाज के लोगों को ही पेश किया था जिसके बाद तो संतोष और राधेश्याम का शक पूरे यकीन में बदल गया था। जिसके बाद ही दिहुली हत्याकाण्ड होता है।
कैसे हुआ दिहुली हत्याकांड
संतोष और राधेश्याम ने दिहुली गाँव के लोगों को सबक सिखाने के लिए 18 नवंबर 1981 को शाम पांच बजे की गाँव में चले गए थे। यह समय एकदम ठंड का हो रहा था। जब शाम के समय गाँव के लोग घर लौट रहे थे तभी संतोष और राधे ने अपने गैंग के साथ मिलकर उनपर हमला बोल दिया था। उस दिन उन डकैतों ने गाँव के औरतों कर बच्चों को भी नहीं छोड़ा था। जो भी उस दिन सामने दिख रह था उसके ऊपर ये डकैत टूट पड़ रहे थे। गाँव के चश्मदीदों के मुताबिक़ संतोष गिरोह ने पूरे जाटव टोले को घेर रखा था, जो दिखाई देता उसको गोली मार देते थे। ऐसा करते हुए उन लोगों ने उस दिन 24 दलितों को गोलियों से भून दिया था। बताया जाता है कि उस दिन लूटपाट कर हत्या के बाद सारे डकैत बगल ठाकुरों के मोहल्ले में चले गए थे और वहां पंचम सिंह, रवेंद्र सिंह, युधिष्ठिर सिंह, रामपाल सिंह के घर पर रात को डेढ़ बजे तक रहे। वहां उन डकैतों पार्टी भी की थी।
दलितों ने शुरू किया था पलायन
इस भयावह हत्याकांड के बाद दिहुली समाज के दलितों ने पलायन करना शुरू कर दिया था। लेकिन सरकार और पुलिस के कहने पर गांववाले वहां रुक गए थे और गाँव में ही कैंम्प लगाकर रहने लगे थे। घटना के बाद कई महीनों तक पुलिस और पीएसी गांव में तैनात रही थी। इस हत्याकांड में लायक सिंह, वेदराम, हरिनारायण, कुमर प्रसाद और बनवारी लाल गवाह बने थे। इन गवाहों को पुलिस की स्पेशल सुरक्षा दी गई थी। लायक सिंह ने इस हत्याकांड में संतोष और राधेश्याम सहित कुल 19 लोगों के नाम दिए थे।
बता दें कि अब ये लोग जिन्दा नहीं है लेकिन गवाहों के बयान के तर्ज पर ही अभियोजन पक्ष ने केस को मजबूत रखा। विशेष रूप से कुमर प्रसाद ने बतौर चश्मदीद घटना का पूरा विवरण अदालत में पेश किया था, जिसके आधार पर दोषी करार दिया गया है।
हत्याकांड में कब क्या हुआ
यह हत्याकांड साल 1981 में हुआ था। जिसे हाईकोर्ट के आदेश पर इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में 1984 में ट्रांसफर किया गया था. 1984 से लेकर अक्टूबर 2024 तक केस में वहां पर ट्रायल चला था। इस घटना में कुल 17 अभियुक्त थे, जिनमें से फिलहाल 13 की मौत हो चुकी है। बता दें कि 11 मार्च को फ़ैसले से पहले एडीजे (विशेष डकैती प्रकोष्ठ) इंद्रा सिंह की अदालत में जमानत पर रिहा चल रहे अभियुक्त कप्तान सिंह हाजिर हुए थे।
इस केस में अदालत ने कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल नाम के तीन अभियुक्तों को दोषी क़रार दिया जिन्हे अब सजा दी जाएगी। वहीं एक अभियुक्त ज्ञानचंद्र को भगोड़ा घोषित कर दिया गया है। रामसेवक मैनपुरी जेल में बंद हैं। उन्हें अदालत के सामने पेश भी किया गया था। जबकि तीसरे अभियुक्त रामपाल की ओर से हाजिरी के लिए माफी मांगी गई थी। लेकिन उनकी अपील खारिज करके उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया है।