Mahoba News: दिवाली पर दिव्यांग बना रहे गोबर और मिट्टी से दीये, लोगों को दें रहे आत्मनिर्भरता का सन्देश
Mahoba: जिले में दीपावली में दीये जलाने के लिए एक दर्जन दिव्यांग लड़के-लड़कियां गाय के गोबर से आर्गनिक दीये बना रहे है।
Mahoba News Today: देश के प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने के सपने से प्रभावित जिले में दीपावली में दीये जलाने के लिए एक दर्जन दिव्यांग लड़के-लड़कियां गाय के गोबर से आर्गनिक दीये बना रहे है, यह दीये बिना तेल एक जेल के माध्यम से घंटों तक जलते है। इसके अलावा आर्गनिक धूपबत्ती भी दिव्यांगों द्वारा बनाई जा रही है। यह दिव्यांग युवक-युवतियां कितने चाव से गाय के गोबर के दीये बना रहे है।
दीयों को बनाने के लिए दिव्यांगों युवक का लेना पड़ता कई चरणों सहारा
इन दीयों को बनाने के लिए दिव्यांगों युवक कई चरणों का सहारा लेना पड़ता है। देखिए गाये के गोबर से कैसे आर्गनिक दीये बनाए जाते है। गाय के गोबर को सुखाकर फिर उसमें लकड़ी का बुरादा मिलाया जाता है जिसके बाद प्रशिक्षण प्राप्त दिव्यांग सांचे के माध्यम से न केवल दिए। बल्कि पूजन के लिए लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति को भी बनाने का काम कर रहे है। दीपावली में इन दीयों को शहर के मुख्य चौराहों में स्टाल लगा कर बेचा जाएगा।
दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षण दें रही है संस्था: प्रबंधक आकाश राय
इस दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही बुंदेलखंड सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट के प्रबंधक आकाश राय बताते है कि संस्था मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षण दें रही है। इनकी संस्था में तक़रीबन 10 से 15 दिव्यांग प्रशिक्षण ले रहे है। जो खुद अब इस दीपावली में दीये बनाने के काम में जुटे है। इन दीयों को बाजार में बेंचने का काम भी यहीं दिव्यांग करेंगे। उन्होंने बताया कि देश के प्रधानमंत्री खुद आत्मनिर्भर भारत की बात कह रहे है जिसको लेकर वो इसे महोबा में गति देने का एक प्रयास कर रहे है।
गाय के गोबर से दीये बनाने में जुटे एक दर्जन से अधिक दिव्यांग
महोबा शहर के बंधानवार्ड में एक दर्जन से अधिक दिव्यांग युवक युवतियां गाय के गोबर से दीये बनाने में जुटे हुए है। यह दिव्यां ना सिर्फ गाय के गोबर के दीये बना रहे है, बल्कि गोबर से देवी प्रतिमाएं भी बना रहे है।
गोबर से दीये बना रहे दिव्यांग युवकों ने ये बताया
गोबर से दीये बना रहे दिव्यांग युवक मनोज, दिनेश और टीना बताती है कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए संस्था अभियान चला रही है जिससे हम सब ने सीखकर दीये बनाने शुरू किये है। गाय के गोबर से खूबसूरत दीओ को बनाकर उन्हें रंगों और आकृतियों से सजाया जा रहा है। इन दीयों में एक जेल डालकर इसे जलाने योग्य बनाया जाता है। गोबर को सुखाये जाने से लेकर डाई से दिये और देवी प्रतिमाएं बनाये जाने के बाद इन्हे सुखाकर खूबसूरत पेकिंग में बंद कर बाजारों में भेजने के लिए तैयार किया जा रहा है। इस काम को दिव्यांग पूरी शिद्दत और मेहनत से करते देखें जा सकते है।
बाजार में 20 से 25 रुपये तक की कीमत में बिक जाता दीया
गाय के गोबर से दिये बनाने वाली संस्था दिव्यांग युवकों को हुनर मंद बनाने की कोशिश के तहत यह दीये बनवा रही है। इन्हें इस बात का जरूर अफ़सोस है कि इनकी मेहनत से बनाये गए दीयों की सही कीमत इन्हें नहीं मिल पाती और न ही सरकारी मदद इन्हे मिल रही है। यह दीया बाजार में 20 से 25 रूपये तक की कीमत में बिक जाता है। दिव्यांग युवक जिले के सभी बाजारों और चौराहों में स्टाल लगा कर इन दियो की बिक्री करेंगे और लोगों से चाइनीज झालरो को छोड़ कर भारतीय संस्कृति के अनुसार दीपावली का त्योहार मानने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इन दियो की बिक्री से होने वाली आय को दिए बनाने वाले दिव्यांगों में बांट दिया जाएगा।