क्या आप जानते हैं, इस बड़ी नेता को 15 साल की उम्र में हुआ था प्यार

हम बात कर रहे हैं सरोजिनी नायडू की। सरोजनी का जन्म 13 फ़रवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय पेशे से साइंटिस्ट व शिक्षाविद थे और माँ वरदा बंगाला भाषा में कविताएँ लिखा करती थीं। पिता चाहते थे बेटी वैज्ञानिक या गणितिज्ञ बने लेकिन बेटी को कविताओं से प्यार था।

Update:2020-03-02 18:27 IST

क्या आप जानते हैं, इस उत्तर पर्देश की इस बड़ी नेता नाइटिंगेल आफ इंडिया को मात्र 15 साल की उम्र में ही हो गया था पहला पहला प्यार। हालांकि इन्होंने पहली कविता भी मात्र नौ साल की उम्र में लिख ली थी। और अपनी मां से कहा मां मैने एक कविता लिखी। मां ने कहा हां गाकर सुनाओ। इस बच्ची ने जब कविता गाकर सुनाई तो मां के मुंह से निकला कोकिला। और आगे चलकर यही बच्ची नाइटिंगेल आफ इंडिया भारत कोकिला कहलाई।

हम बात कर रहे हैं सरोजिनी नायडू की। सरोजनी का जन्म 13 फ़रवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय पेशे से साइंटिस्ट व शिक्षाविद थे और माँ वरदा बंगाला भाषा में कविताएँ लिखा करती थीं। पिता चाहते थे बेटी वैज्ञानिक या गणितिज्ञ बने लेकिन बेटी को कविताओं से प्यार था।

पहला प्यार 15 साल की उम्र में

बच्ची सरोजिनी पर सरस्वती की बहुत कृपा थी। अपनी तेज बुद्धि से ये सभी को चमत्कृत कर देती थी। 12 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा पास कर 16 साल की उम्र में पढ़ने के लिए विदेश चली गई। लेकिन इससे पहले सरोजिनी की मुलाकात गोविंदजुलू नायडू से हुई और इनसे सरोजनी को प्यार हो गया। और 19 साल में पढ़ाई पूरी करने बाद इनसे ही सरोजिनी की शादी हुई।

कहा जाता है कि सरोजिनी नायडू सन् 1898 में इंग्लैंड से लौटीं। उस समय वह डॉ. गोविन्दराजुलु नायडू के साथ विवाह करने के लिए उत्सुक थीं। डा. गोविन्दराजुलु एक फ़ौज़ी डाक्टर थे, जिन्होंने तीन साल पहले सरोजिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।

जब आज इंटरकास्ट मैरिज आसान नहीं है तो हम जिस समय की बात कर रहे हैं उस दौर में तो अंतरजातीय विवाह एकदम असंभव था लेकिन सरोजिनी भाग्यशाली थीं उनके पिता का उन्हें समर्थन मिला। नायडू पेशे से डाक्टर थे। दोनो की शादी हुई और पारिवारिक जीवन सफल रहा। दोनो के चार बच्चे हुए हुए।

शादी के सात साल बाद 1905 के लगभग सरोजिनी स्वतंत्रता समर में कूद पड़ीं और महिलाओं के सशक्तिकरण में जुट गईं। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में 19 महीने जेल में रहीं। कठोर यातनाएं सहीं। और देश आजाद होने पर उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। लेकिन 2 मार्च 1949 को हार्टअटैक से उनका निधन हो गया। हालांकि अपनी एक कविता में उन्होंने मृत्यु को कुछ देर के लिए ठहर जाने को कहा था.....

मेरे जीवन की क्षुधा, नहीं मिटेगी जब तक

मत आना हे मृत्यु, कभी तुम मुझ तक।

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