लखनऊ: यूपी में सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मांगी जानी वाली सूचना लोगों को आसानी से मिल सके। इसे देखते हुए राज्य के 18 हजार जनसूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है ताकि वह आरटीआई आवेदनों पर सही कार्यवाही कर सके।
सरकार और राज्य सूचना आयोग संयुक्त रूप से यह कैंपेन चला रही है। इसके तहत प्रदेश के सभी मंडलों में प्रशिक्षण कार्यक्रम हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस कैंपेन से आरटीआई से जुड़े मामलों को निबटाने में मदद मिलेगी।
लखनऊ-मेरठ मंडल में हो चुका है प्रशिक्षण कार्यक्रम
मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी का कहना है कि सरकार के साथ मिलकर एक कैंपेन चलाया जा रहा है। इसमें राज्य के सभी 18000 जनसूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाना है। लखनऊ और मेरठ मंडल में यह प्रशिक्षण कार्यक्रम हो चुका है।
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यह भी कहा मुख्य सूचना आयुक्त ने-
-यूपी में 18 हजार जनसूचना अधिकारी हैं।
-उन्हें पता होना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारियां क्या हैं।
-उनके प्रशिक्षण का एक कार्यक्रम बनाया गया है।
-उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार और प्रबंधन अकादमी भी ट्रेनिंग देती है।
-इसका आयोजन मंडल स्तर पर किया जा रहा है।
-हर कार्यक्रम 5 से 6 दिन का होता है।
-मंगलवार को अलीगढ में कार्यक्रम हो रहा है।
-हर कार्यक्रम में पहले दिन जावेद उस्मानी जरूर मौजूद रहते हैं।
क्या कहते हैं आरटीआई एक्टिविस्ट
आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक गोयल का कहना है कि मुख्य सूचना आयुक्त खुद अपने निर्णय में यह पूछते हैं कि आवेदक अपना लिखित कथन दो प्रतियों में प्रस्तुत करें। जबकि आरटीआई में अपील और शिकायत के अलावा कोई प्रावधान नहीं है। एक्ट की धारा-18 और 20 ही इसकी शक्ति है और वह खुद ही इसका पालन नहीं कर रहे हैं। जहां तक रही प्रशिक्षण की बात तो वह खुद कहां से प्रशिक्षित हैं कि जनसूचना अधिकारियों को प्रशिक्षण देंगे।
'स्वयं नहीं कर रहे एक्ट का पालन'
आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में आयोग में जितने भी सूचना आयुक्त हैं उन्हें खुद आरटीआई का ज्ञान नहीं है। वह इसके नियमों का पालन खुद नहीं करते तो वह दूसरों को क्या ज्ञान देंगे। समय से सूचना मिलती नहीं है। आयोग को न्यायालय बना दिया गया है।