UP Election 2022: जयंत के लिए बेहद अहम है चुनाव नतीजे, अनुकूल नतीजे नही मिलने पर खतरे में राजनीतिक करियर !

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 के नतीजे राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के राजनीतिक करियर के लिए बेहद अहम हैं, 2009 में मात्र 30 साल की उम्र में 'बिना किसी संघर्ष के' संसद पहुंचने वाले जयंत को लगातार दो लोकसभा चुनावों (2014 और 2019) में हार का सामना करना पड़ा था।

Report :  Sushil Kumar
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-03-09 17:56 IST

Meerut News: उत्तर प्रदेश चुनाव (UP Election 2022) के कल घोषित होने वाले नतीजें राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी (Rashtriya Lok Dal President Jayant Choudhary) के राजनीतिक करियर (political career) के लिए बेहद अहम होने वाले हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश विशेषकर रालोद का 'गढ़' माने जाने वाले मेरठ-सहारनपुर मंडल के नौ जिलों में रालोद को अगर अपेक्षित सीटें नही मिलती हैं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के वजूद पर सवाल उठने लगेंगे। बता दें कि यूपी चुनाव में सपा की तरफ से आरएलडी को लड़ने के लिए कुल 26 सीटें दी गई हैं थी, जिनमें अधिकांश सीटे पश्चिमी यूपी विशेषकर मेरठ और सहारनपुर मंडल की हैं।

दरअसल, पॉलिटिक्स एक बिज़नेस मॉड्यूल पर चलती है और वो बिज़नेस मॉड्यूल उनके सांसद, विधायक होते हैं. अगर उनकी मौजूदगी विधानसभा और संसद में नहीं है तो उनकी पूछ नहीं होती है। साफ है कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए पश्चिमी यूपी को जीतना आरएलडी (RLD) के लिए बेहद जरुरी है। मई 2021 में आरएलडी के तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह (Chaudhary Ajit Singh) की मौत के बाद जयंत सिंह ने पार्टी की कमान संभाली थी। इससे पहले वह रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे। पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों (three agricultural laws) के खिलाफ चल रहे आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन कर खुद को बीजेपी विरोधी चेहरे के रूप में स्थापित किया। उन्होंने चुनाव से पहले ही कई सभाओं को संबोधित किया।

2009 में मात्र 30 साल की उम्र में बने सांसद

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चुनाव जीतने के लिए मेहनत करने में जयंत ने कोई कोर कसर नही छोड़ी। यही नही केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जितनी भी महापंचायतें और कार्यक्रम हुए, उनमें रालोद के कार्यकर्ताओं के साथ ही ख़ुद जयंत चौधरी ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। 2009 में मात्र 30 साल की उम्र में 'बिना किसी संघर्ष के' संसद पहुंचने वाले जयंत को लगातार दो लोकसभा चुनावों (2014 और 2019) में हार का सामना करना पड़ा था।

2013 में ही रालोद का पारंपरिक वोटर 'जाट' भाजपा में शिफ़्ट हो गया था जिसके बिना रालोद की राजनीति हो ही नहीं सकती है। जाटों के भगवा खेमे में जाने के कारण ही पिछली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को केवल एक सीट मिली थी। यहां गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विधानसभा की तक़रीबन 142 सीटें हैं जिनमें से 23 सीटें ऐसी हैं जहां पर जाट समुदाय की आबादी 60 से 90 हज़ार तक है और वो जीत-हार तय कर सकता है। 2019 में रालोद ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लोकसभा चुनाव लड़ा था और इस बार विधानसभा चुनाव में रालोद ने समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ा है। एक तथ्य यह भी कि 2022 चुनाव से पहले " जयंत चौधरी के 'पॉलिटिकल स्किल' का कोई इम्तिहान नहीं हुआ है।

पंचायत चुनावों में सपा-आरएलडी के गठबंधन को बढ़त मिली

ऐसे में पारंपरिक वोटर 'जाट' को वापस लाने की जद्दोजहद में जयंत चौधरी लगातार मैदान में बने हुए हैं। वैसे, क्षेत्र के सभी राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर सहमत ज़रूर हैं कि किसानों के प्रदर्शन ने पश्चिमी यूपी में लगभग समाप्ति की ओर बढ़ चुके आरएलडी को एक 'पॉलिटिकल माइलेज' दिया है। इसके अलावा पिता की मौत से उपजी सहानुभूति, और पश्चिमी यूपी में ज़िला पंचायत चुनावों में सपा-आरएलडी के गठबंधन को मिली बढ़त ऐसी घटनाएं हैं ,जिसने चुनाव के दौरान जयंत चौधरी के पक्ष में माहौल बनाया है। लेकिन इसकी सही पुष्टि तो 10 मार्च के चुनाव नतीजें ही करेंगे। जाहिर है कि 10 मार्च के नतीजे जयंत चौधरी का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे।

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