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लखनऊ: गोमती रिवर फ्रंट परियोजना का साइड इफेक्ट राजधानीवासियों को झेलना पड़ सकता है। नदी के किनारों पर हो रहा सौंदर्यीकरण पर्यावरण नियमों के खिलाफ है। नदी के प्रवाह के दोनों तरफ कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी गई है। पर्यावरणविद इसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के नियमों के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि अभी सिंचाई विभाग को सिर्फ गोमती के बाहरी सौंदर्यीकरण की चिंता है न कि नदी के इकोलाॅॅजी और जल प्रबंधन की। नदी के प्रवाह के साथ छेड़छाड़ का सीधा असर लखनऊ के भूजल पर भी पड़ सकता है।
जानकारों के मुताबिक पहले इंजीनियरों को इस नदी को समझने की जरूरत है। इसके जल का स्रोत भूजल है और अब इन्हीं स्रोतों को कंक्रीट के कारागार में दफनाया जा रहा है। जिसका असर नदी के जीवन और लखनऊवासियाें के जनजीवन पर पड़ना तय माना जा रहा है।
पिछले साल नवंंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड में गंगा के दोनों किनारों पर 200 मीटर के दायरे में किसी भी निर्माण पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने गंगा किनारे 200 मीटर के दायरे पर 2001 से निर्माण रोक लगा रखी है। इतना ही नहीं नदी से मिट्टी निकालना भी नियमों के खिलाफ है। अब सवाल यह उठता है कि जब गंगा के किनारे पर निर्माण पर रोक लगी है तो फिर गोमती इससे अछूती कहां रही सकती है।
गंगा किनारे 200 मीटर के दायर में निर्माण पर रोक
हाईकोर्ट ने गंगा किनारे 200 मीटर के दायरे में 2001 से ही निर्माण पर रोक लगा रखी है। इसी मामले में बीते साल जुलाई में वाराणसी विकास प्राधिकरण को कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी कि 2001 के बाद इस दायरे में कितने भवन बने हैं।
एनजीटी ने भी नदी के किनारे निर्माण पर लगा रखी है रोक
बीते साल नवंंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड में गंगा के दोनों किनारों पर 200 मीटर के दायरे में किसी भी निर्माण पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने पूर्व अनुमति के बगैर अधिकतम बाढ़ संभावित क्षेत्रों में गंगा किनारे 200 मीटर के दायरे में किसी भी भवन, मकान, होटल व अन्य किसी भी प्रकरण के निर्माण की अनुमति नहीं देने के आदेश दिए थे।
रिवरबेड में निर्माण नियमों के खिलाफ
सितंबर 2014 में अपने ही एक आदेश में एनजीटी ने साफ किया था कि रिवरबेड में निर्माण नियमों के खिलाफ है। मामला पुणे की मुथा नदी से जुड़ा था। जहां नदी के किनारे जाॅॅगिंग ट्रैक आदि बनाने के खिलाफ याचिका की गई थी। सिंचाई विभाग ने 1989 में एक सर्कुलर जारी कर साफ किया था कि फ्लड लाइन में निर्माण नहीं किया जा सकता।
गोमती नदी के बारे में कुछ खास बातें
-पर्यावरणविद् सीबी पांडे बताते हैं कि इससे करीब 22 सहायक नदियां जुड़ी हुई हैं।
-इनमें से कोई भी एक नदी ऐसी नहीं है जिसे स्वस्थ कहा जा सके।
-इसका उद्गम स्थल लखीमपुर खीरी जिले की पूरनपुर तहसील है।
-यहां की फुल्लर नाम की एक झील से यह नदी निकलती है।
-और 22 से 23 किमी आगे एकोत्तर नाथ शिव मंदिर के पहले सूख गई है।
-यदि नदी को पुर्नजीवित करना है तो इसका इलाज वहां होना चाहिए, जहां बीमारी हो।
-पर इसके उलट लखनऊ में उसका सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है।
-गोमती रिवर फ्रंट योजना में करीब 2800 करोड़ का खर्चा आएगा।
-इसमें करीब 650 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में।
-काम के पहले फेज में नदी को चैनलाईज किया जाना था।
-अब दूसरे और तीसरे फेज में रिवर फ्रंट डेवलपमेंट का काम।
ध्यान देने वाले तथ्य
-नदी में सतत जल होना चाहिए। प्रवाह बहता होना चाहिए।
-रिवर में यदि क्वालिटी वाटर होगा तो जल जीव भी सेफ होंगे।
-नदी के किनारे हरियाली होनी चाहिए। कैचमेंट एरिया से पानी आते रहना चाहिए।
-जल में जीवों की संख्या ही नदी के स्वास्थ्य का मानक होता है।
-नदी में प्रदूषण से जल जीव समाप्त हो जाते हैं।
स्थानीय निवासियों की यह है आशंका
-रिवर की जमीन को संकरा कर उस पर सड़क और निर्माण कार्य की तैयारी।
-इसकी आड़ में नदी में दीवार खड़ी कर किनारे की जमीन पर हावी होगा रियल स्टेट का धंधा।
-नदी के किनारों पर कंक्रीट के निर्माण से नदी के जीवन को खतरा।
-मानसून के समय बाढ़ को सम्हालने की क्षमता में आएगी कमी।
-नदी के किनारों को अतिक्रमण से मुक्त कराने के बजाए सरकार खुद कर रही निर्माण।
-यहां पांच सितारा होटल और मार्केट बनाने की तैयारी, नदी में बढेगा प्रदूषण।
-सौंदर्यीकरण की आड़ में नदी के किनारे अधिकतम जमीन का किया गया अधिग्रहण।
गोमती का आदि गंगा के तौर पर वेदों में उल्लेख
-धार्मिक तौर पर देखा जाए तो भारतीय संस्कृति में भी नदियों का काफी महत्व है और गोमती को तो आदि गंगा कहा जाता है।
-जिसका उल्लेख हमारे पुरातन वेदों में भी है।
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