ऐसा देश है मेरा ! 25 सालों से पेंशन के लिए भटक रही स्वतंत्रता सेनानी की विधवा
लखनऊ : गोरों की गुलामी से भले ही हम आजाद हो गए हों। लेकिन अब हमें भूरों ने अपना गुलाम बना लिया है। ये कोई और नहीं, बल्कि वो हैं.. जिन्हें अच्छा और सुरक्षित भविष्य देने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। लेकिन आज उनके परिजन अपने अधिकार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। देश में ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं। ताजा मामला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम नारायन निगम की विधवा शांति निगम का है। जो पिछले 25 सालों से स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों के आश्रितों को मिलने वाली पेशन के लिए दौड़ रही हैं। कहीं से राहत न मिलने पर उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने केंद्र व राज्य सरकार को मामले पर जल्द निर्णय लेने के आदेश दिए हैं।
यह आदेश जस्टिस डीके उपाध्याय व जस्टिस आरएस चैहान की बेंच ने शांति निगम की याचिका पर दिए।
याचिका में कहा गया था कि शांति निगम के पति राम नारायन निगम को ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण दोषी करार दिया था। उन्हें आठ महीनों से अधिक समय जेल में बिताना पड़ा था।
शांति निगम को स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन स्कीम का लाभ देने के लिए 30 अप्रैल 1992 को हमीरपुर के जिलाधिकारी ने सिफारिश भी की थी। लेकिन याची को अब तक इस योजना का लाभ नहीं मिला।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची 88 साल की एक विधवा है । वह पेंशन योजना का लाभ पाने के लिए दौड़ रही है। 25 साल पहले हमीरपुर जिलाधिकारी द्वारा की गई अनुशंसा के बावजूद उसके क्लेम का निस्तारण अब तक नहीं किया गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह में पेंशन योजना के तहत याची की पात्रता सुनिश्चित करते हुए, निर्णय लेने का आदेश दिया है। जिसके बाद केंद्र सरकार को भी जल्द से जल्द इस मामले पर निर्णय लेकर याची को अवगत कराने का आदेश दिया।