Holi 2024: होली आते ही आने लगती है सैदपुर के रंगों की याद

Ghazipur News: रंगों को देख कर सैदपुर का याद आना लाजमी है। जनपद के सैदपुर के रंगों का जलवा सिर्फ गाजीपुर में सिमित नहीं था। नब्बे के दशक में सैदपुर के रंगों का एक अलग ही अंदाज था।

Report :  Rajnish Mishra
Update: 2024-03-19 12:21 GMT

लोगों को याद आया सैदपुर के रंगों की याद। (Pic: Social Media)

Ghazipur News: जैसे जैसे होली नजदीक आती है। बच्चे व नवजवानों के जेहन में रंगों को लेकर उत्सुकता बढ़ने लगती है, की होली के दिन कौन सा रंग लाल, गुलाबी हरा या पीला बाजार से लिया जाए लेकिन जैसे ही रंगों का नाम जेहन में आता है वैसे ही गाजीपुर जनपद के सैदपुर का नाम याद आ जाता है। रंगों को देख कर सैदपुर का याद आना लाजमी है। क्योंकि नब्बे के दशक में सैदपुर के रंगों का एक अलग ही अंदाज था।

सैदपुर के रंगों का जलवा

गाजीपुर जनपद के सैदपुर के रंगों का जलवा सिर्फ गाजीपुर में सिमित नहीं था। अपितु सैदपुर के रंगों का बादशाहत भारत के अन्य प्रदेशों सहित पड़ोसी मुल्क नेपाल, तिब्बत व बंग्लादेश में भी था। इन मुल्कों के लोग भी गाजीपुर के सैदपुर के रंग पर ही विश्वास करते थे। सैदपुर के इन्हीं कारखानों में कभी पुड़िया तो कभी टिकिया वाली स्याही भी बना करता था। अस्सी नब्बे के दशक में सैदपुर व आसपास के जनपदों के लोग भी इस उद्योग से जुड़े हुए थे। लेकिन बदलते समय के साथ साथ सैदपुर के रंग अब फीके पड़ चुके है ।

रंगरेज के नाम से जाने जाते थे रंगकर्मी

सैदपुर के लोग बताते हैं कि यहां पर सिर्फ रंग ही नहीं बनता था बल्कि पुड़िया वाला नील व रिनपाल भी बनता था। रंग बनाने वाले रंगकर्मियों को लोग रंगरेज के नाम से जानते थे। कहां जाता है की इन उद्योगों में काम करने वाले लोगों को रंगरेज कहां जाता था। इन्हीं रंगरेज का प्रयोग मै तुलसी तेरे आंगन फिल्म में डाक्टर मासूम राही रजा ने एक गीत लिखा था। गीत के बोल थे कि बलि बलि जाऊ मै तो रंगरेजवा। डाक्टर मासूम राही रजा भी गाजीपुर जनपद के ही थे। तो वो भी सैदपुर के रंगरेजों से अच्छी तरह वाकिफ थे।

1960 में शुरू हुआ रंग उद्योग

सैदपुर के लोगों का कहना है कि यहां पर रंग उद्योग की शुरुआत सन 1960 में हुई थी। लोगों के मुताबिक शुरुआती दौर में शहर के आप नगर में पंडित बनवारी लाल पांडे ने मुंबई कलर एजेंसी के नाम से रंग उद्योग शुरू किया था। लोगों के मुताबिक इस कारखाने में रंगों में प्रयुक्त किया जाने वाला रसायन मुंबई से मंगवाया जाता था। इसलिए इस कारखाने का नाम मुंबई कलर्स एजेंसी रखा गया। उस समय सैदपुर के बने रंगों की खबर देश के छोटे बड़े शहरों के अलावा दूसरे मुल्कों में भी ज्यादा थी। कहते हैं कि उस जमाने में सैदपुर और बिहार के माल गोदाम मुंबई कलर एजेंसी के बने रंगों के काटून से एयरटेल होते थे। लोगों के मुताबिक होली के सीजन आते ही कलर एजेंसी में रंग बनाने का काम और तेज हो जाता था।

होली आते ही लाल हो जाता था गंगा का पानी

सैदपुर के रंगमहल घाट पर रहने वाले रामखेलावन गुप्ता कहते हैं कि अब तो सैदपुर के रंगों की बस याद ही जेहन में रह गई है। वे कहते हैं 80-90 के दशक में सैदपुर के रंगों के बिना होली में रंग नहीं खिलता था। उस समय सैदपुर का रंग उद्योग अपने चरम पर था। होली नजदीक आते रंगों को मांग बढ़ जाती थी। इन कारखानों में काम करने वाले रंगरेज काम खत्म होने के बाद गंगा में नहाने आते थे, तो घाट का पानी सैदपुर के रंगों से लाल हो जाता था। लेकिन अब यह सब बस यादों में ही रह गया है। अब गिने चुने कारखाने ही बचे हैं, जहां नाम मात्र के रंग बन रहे है।

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