PAC Ka Vidroh 1973: पीएसी ने किया था कुंभ मेले के समय विद्रोह, बुलानी पड़ी थी सेना, जानें 1973 की पूरी कहानी

PAC Ka Vidroh 1973: पूरे प्रदेश से जिला पुलिस व पीएसी के जवानों की तैनाती की तैयारियां की जा रही थी। पीएसी के आला अधिकारियों ने जवानों को कुंभ में जाने का आदेश दे दिया इतना सुनते ही जवानों ने अपने गुस्से का इजहार अपने अधिकारियों से करना शुरू कर दिया ।;

Report :  Rajnish Mishra
Update:2025-01-11 22:03 IST

पीएसी ने किया था कुंभ मेले के समय विद्रोह, बुलानी पड़ी थी सेना, जानें 1973 की पूरी कहानी- (Photo- AI generated image)

PAC Ka Vidroh 1973: उत्तर प्रदेश में कहीं भी कोई बड़ा आयोजन होता है तो वहां पीएसी यानी "प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी" के जवानों की तैनाती की जाती है और ये जवान बखूबी अपनी जिम्मेदारी को निभाते भी हैं । लेकिन आज हम इन जवानों के उस दिन की बात करेंगे जब ये जवान विद्रोह कर सड़कों पर आ गये थे जिन्हें काबू करने के लिए प्रदेश सरकार को सेना बुलानी पड़ी थी और तब कहीं जाकर ये जवान शांत हुए थे ।

कुंभ में तैनाती की फरमान सुन हुए थे आग बबूला

बात सन् 1973 की है प्रदेश सरकार कुंभ को लेकर तैयारियां शुरू कर दी थी । पूरे प्रदेश से जिला पुलिस व पीएसी के जवानों की तैनाती की तैयारियां की जा रही थी । पीएसी के आला अधिकारियों ने जवानों को कुंभ में जाने का आदेश दे दिया इतना सुनते ही जवानों ने अपने गुस्से का इजहार अपने अधिकारियों से करना शुरू कर दिया । लेकिन पीएसी के आला अधिकारियों ने अपने जवानों की एक ना सुनी और ड्यूटी पर ध्यान केंद्रित करने का फरमान जारी कर दिया ।

21 मई 1973 में मेरठ के तीन बटालियन ने की बगावत

प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के जवानों के अंदर सरकार व आला अधिकारियों के प्रति गहरी नाराजगी थी । जिसका खामियाजा उस समय की सरकार ने भुगती 21 मई 1973 को मेरठ के तीन बटालियन ने बगावत की शुरुआत की और सरकार का आदेश मानने से मना कर दिया और विद्रोह में शामिल होकर सड़कों पर तांडव करने लगे । बस क्या था प्रदेश के हर कैंप से जवान इस हिंसक प्रदर्शन में शामिल होने लगे । जिसे देख सरकार की पैरों तले जमीन खिसकने लगी।

फूंक दिये सरकारी इमारत

जवानों के इस हिंसक प्रदर्शन के दौरान जवानों ने रास्ते में जो मिलता था उसे सीधे जला देते थे । उस आगजनी में पीएसी के जवानों ने थाना सरकार इमारत, सरकार और प्राइवेट इमारतों को सीधे आग के हवाले कर देते थे । उस आगजनी के दौरान सरकार को लाखों करोड़ों का नुक़सान हुआ था । जवानों के इस विद्रोह उस वक्त और विकराल रूप धारण कर लिया । जब लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं ने इस विद्रोह में अपनी राजनीति करनी चाही । इन छात्र नेताओं की राजनीति उस विद्रोह हें आग में घी डालने का काम किया था । उस समय लखनऊ विश्वविद्यालय का परिसर युद्ध मैदान बन गया था । उत्तर प्रदेश पुलिस इन विद्रोही जवानों को काबू करना चाहती थी। लेकिन पुलिस का हर एक तरीका फेल साबित हुआ। तब तत्कालीन सरकार ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। तब तत्कालीन केंद्र सरकार ने अर्धसैनिक बलों को इन जवानों को काबू करने के लिए प्रदेश में भेजी ।

सेना ने पीएसी जवानों पर चलाई गोलियां

उस समय के तत्कालीन महानिदेशक केएम रूस्तम जी को गृहमंत्रालय ने उत्तर प्रदेश में स्थिति सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी। उस समय रुस्तम जी के पास सिर्फ दो बटालियन मौजूद थी । रुस्तम जी ने गृहमंत्रालय को बताया की हमारे पास सिर्फ दो बटालियन मौजूद है । और उत्तर प्रदेश में स्थिति को संभालने के लिए बार्डर से बीस बटालियन को वापस बुलाना पड़ेगा । तब गृहमंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया की इतना समय नहीं है । तब भारतीय सेना को स्थिति सुधारने के लिए कहां गया । जैसे ही सेना ने उत्तर प्रदेश में कदम रखा हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गया ।

हालात बिगड़ने का कारण सेना द्वारा हालात काबू करने के लिए पीएसी के जवानों पर गोलियां चलानी पड़ी जिससे कइ जवान हताहत हो गये। ये कारवां कुछ दिनों तक चला तब तक अर्धसैनिक बल भी प्रदेश में पहुंच चुकी थी । और रणनीतिक के तहत पीएसी के बागी जवानों को सरेंडर करने को कहां तब पीएसी जवानों ने अपने को चारों तरफ से घिरता देख मजबूर हो कर सरेंडर करने की सोची ।

बीएसएफ के आगे विद्रोहीयो ने किया सरेंडर

अर्धसैनिक बल, भारतीय सेना व पुलिस की संयुक्त रणनीतिक के तहत बागी पीएसी के जवानों को चारों तरफ से घेरा गया । और सरेंडर करने के लिए कहां गया । तब बागी हुए पीएसी के जवानों ने अपने को घिरता देख कर अर्धसैनिक बल भारतीय सेना व पुलिस के सामने सरेंडर किया ।

अच्छी सैलरी व मान्यता को लेकर किया था विद्रोह

हमेशा अनुशासन में रहने वाले ये जवान 1973 में अच्छी सैलरी, कार्य की बेहतर परिस्थितियों व मान्यता को लेकर ये विद्रोह किया था उनका कहना था कि हम लोगों की सैलरी अच्छी नहीं है और ना ही कोई मान्यता है । दूसरी बात ये थी कि कुंभ में अपनी तैनाती कराकर इन जवानों को अपमानित किया जा रहा है ।

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