बाबुओं की मिलीभगत से बनाया जा रहा था शस्त्र का फर्जी लाइसेंस, ऐसी खुली पोल
बाबुओं और शस्त्र विक्रेताओं की मिलीभगत से आर्म्स रजिस्टर में अतिरिक्त जगह बनाकर भी फर्जी लाइसेंस जारी करने का मामला पकड़ में आया है।
गोरखपुर: आईडी हैक कर होता था फर्जी लाइसेंस का खेल। विभाग के बाबुओं के मिली भगत से फलता फूलता था नकली से असली का खेल।
जी हां गोरखपुर में आज उस फर्जी लाइसेंस के खेल से पर्दा उठा है, जिसको लेकर काफी दिनों से पुलिस और जिला प्रशासन की नीद उडी हुई थी। आज जिला अधिकारी ने एक प्रेस कांफ्रेस करके उन धूमिल तस्वीरों से पर्दा उठाया है |
गोरखपुर में शस्त्र लाइसेंस के नाम पर चल रहे खेल का आज जिलाधिकारी कार्यालय में खुलासा किया गया, आज जिलाधिकारी कार्यालय में तैनात 3 असलहा बाबूओं को गिरफ्तार किया गया।
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जिनकी मदद से यह फर्जीवाड़ा किया गया, जिलाधिकारी के विजेंद्र पांडियन ने बताया कि सीएम ने सभी जिलों में जिलाधिकारी को लाइसेंस जांच के लिए निर्देश दिया था। कुल 22000 लाइसेंस गोरखपुर में है।
2015 में शस्त्र लाइसेंस के लिए यूनिक आईडी जारी किया गया, गोरखपुर में जांच में जब यूनिक आईडी मैच नही हुआ, इसके बाद तीन आईपीएस की टीम का गठन किया गया, जांच में पता चला, कि यूनिक आईडी की डिटेल बाबुओं के हाथ मे रहती है। यह फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों ने मूल सर्वर को हैक करके उसकी आईडी और पासवर्ड हैक किया,।
इसमे रवि आर्म्स सरगना था, और इसमें कलेक्ट्रेट के बाबू और संविदा के कर्मी भी जुड़े थे, 2010 में रिन्यूवल के नाम पर यह गोरखधंधा पहली बार सामने आया, जिलाधिकारी के विजयेंद्र पांडियन का कहना है कि अधिकारियों के भी फर्जी सिग्नेचर किये गए होंगे।
तीन बाबुओं की भूमिका सर्वाधिक संदिग्ध
इसकी जांच की जा रही है।1994 से लेकर 2003 तक असलहा पटल पर तैनात सभी बाबुओं की भूमिका संदिग्ध मिली है। ऐसे बाबुओं की संख्या नौ बताई जा रही है। इनमें भी तीन बाबुओं की भूमिका सर्वाधिक संदिग्ध मिली है।
जिलाधिकारी विजयेंद्र पांडियन और एसएसपी सुनील कुमार गुप्ता ने आज इस पूरे मामले का खुलासा करते हुए बताया कि प्रशासन के शिकंजे में आए तीनों बाबू वर्तमान में अलग-अलग पटल पर तैनात हैं।
इनके अलावा गोलघर स्थित चार बड़े गन हाउस के भी इस फर्जीवाड़े में शामिल होने की पुष्टि हो गई है, शस्त्र विक्रेता अपनी मनमानी करते रहे, और पटल पर तैनात असलहा बाबू आंख मूंदे रहे।
साल 2003 में तैनात एक बाबू के कार्यकाल में भी बड़े पैमाने पर फर्जी लाइसेंस का खेल किया गया है, इसी तरह 2009-10 में फर्जी लाइसेंस के खेल में तत्कालीन बाबू के शामिल होने के सबूत मिले हैं।
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असलहा बाबू के कार्यकाल में सर्वाधिक गड़बड़ी की पुष्टि
राम सिंह से पूर्व तैनात रहे, असलहा बाबू के कार्यकाल में ही सर्वाधिक गड़बड़ी की पुष्टि प्रशासन ने की है, प्रशासन तीनों बाबुओं व चार गन हाउस संचालकों के खिलाफ एक और एफआइआर दर्ज कराने जा रहा है।
अब तक मजिस्ट्रेट जांच में फर्जी लाइसेंस का आंकड़ा 400 से अधिक पहुंच गया है, और अभी इसके और भी बढऩे की संभावना है।
बाबुओं और शस्त्र विक्रेताओं की मिलीभगत से आर्म्स रजिस्टर में अतिरिक्त जगह बनाकर भी फर्जी लाइसेंस जारी करने का मामला पकड़ में आया है, असलहा बाबुओं ने फील्ड रिपोर्ट का वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय से मिलान भी नहीं कराया जो अनिवार्य था।
अधिकारियों ने बताया कि फर्जी लाइसेंस के इस खेल में नौ असलहा बाबुओं व पांच बड़े शस्त्र विक्रेताओ की भूमिका मुख्य रही है, पांचों शस्त्र विक्रेता फर्जी लाइसेंस बनवाने के खेल में शामिल रहे हैं।
इनका मुख्य कार्य फर्जी लाइसेंस तैयार करने के साथ ही असलहा बेचकर मुनाफा कमाना था, इन सभी शस्त्र विक्रेताओं के अभिलेखों में गड़बड़ी मिली है। इस मामले के खुलासे के बाद प्रशासन का शिकंजा अब सेवानिवृत बाबुओं पर कसता जा रहा है।
गोरखपुर में साल 1994 से लेकर 2003 के बीच तैनात रहे कई बाबू सेवानिवृत हो चुके हैं, जांच में इन बाबुओं की संलिप्तता उजागर होने के बाद प्रशासन इन पर गबन समेत अन्य संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कराएगा और सभी सेवानिवृत बाबुओं के खिलाफ आरसी भी जारी की जाएगी।
अब तक दस लोग गिरफ्तार
इसमे कुल 10 लोग अबतक गिरफ्तार हो चुके हैं, और 6 फर्जी लाइसेंस धारकों को गिरफ्तार किया जा चुका है, अधिकारियों का कहना है, कि गिरफ्तार लोगों के ऊपर एनएसए लगाया जा रहा है।
फिलहाल ये जांच अभी यही खत्म नहीं हुई है। अभी जैसे जैसे जाँच आगे बढ़ रही है, वैसे वैसे इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा है, इसमें सभी असलहे के दुकानों की जाँच की जा रही है।
किसने कितना बेचा और किसने कितना खरीदा, फिलहाल आज कुछ विरामो पर विराम जरुर लग गया, और तस्वीरों साफ़ हो गई कि विभाग के बाबुओं और कुछ लोगों के मिली भगत से ये काला धंधा फल फुल रहा था।
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