इसका, उसका, किसका मीडिया पर न्यूज़ट्रैक के प्रधान संपादक ने रखी अपनी बात
पत्रकारिता जिस भय की बात कर रही है उसकी वजह, उसकी लालसाएं, अंदरूनी कमजोरियां और इच्छाएं हैं, जिसे आज का राजनीतिज्ञ बखूबी समझता है। जब हम अपनी मोटी पगार के बारे में सोचते हैं, जब राज्यसभा के टिकट के बारे में सोचते हैं और जब अपने लिए बड़े बंगलों के बारे में सोचते हैं, तो उसी वक्त हम जनता से दूर जा रहे होते हैं।
गोरखपुर: लिटरेरी फेस्टिवल के दूसरे दिन का चौथा सत्र मीडिया विमर्श पर केंद्रित था। विषय था इसका,उसका,किसका मीडिया ? मंच पर 4 दिग्गज संपादकों की उपस्थिति थी। जब सत्र का संचालन कर रहे पत्रकार उत्कर्ष कुमार ने इस विषय के बारे में सबकी सीधी राय पूछ ली तो पहले मिनट से ही चर्चा का तापमान शिखर तक जा पहुंचा।
पत्रकारिता अब झुनझुने में बदलती जा रही है- वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा की 'इसका' से मतलब सत्ता है । 'उसका' से मतलब विपक्ष या टुकड़े-टुकड़े गैंग है और 'किसका' होना चाहिए के सवाल पर मेरा जवाब है, जनता का । अंजुम ने मौजूदा पत्रकारिता की कई दृश्यावलियों का जिक्र करते हुए कहा कि पत्रकारिता अब झुनझुने में बदलती जा रही है और झुनझुने की तरह बर्ताव भी कर रही है । यह प्रवृत्ति 2014 के बाद ही नहीं आई है पहले भी इस तरह के पक्षधर पत्रकारिता के किस्से हमारे सामने आते हैं।
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लेकिन मौजूदा दौर में यह तेज हुआ है। सरोकार और सरकार के बीच मात्राओं के फर्क को समझने की जरूरत है। दुर्भाग्य से इस दौर के ज्यादातर पत्रकार इसे ठीक ढंग से समझ नहीं पा रहे और सरकार के खड़े किए हुए नैरेटिव्स को और आगे बढ़ाने में प्रचारक की भूमिका अदा कर रहे हैं । मैं ऐसे किसी नीति का समर्थन नही करूंगा जो देश के बाटने का कार्य करती है। जो तुमको हो पसन्द वही बात कहेंगे अगर आप यह समझते है तो हम यह नही करेंगे चाहे वह किसी की सरकार हो।
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समर्थन और समर्पण में अंतर होना चाहिए- इंडिया न्यूज़ के संपादक राणा यशवंत
सुप्रसिद्ध पत्रकार और इंडिया न्यूज़ के संपादक राणा यशवंत ने इस बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की यह चलन और यह समय दोनों खतरनाक है लेकिन हमें समझना होगा कि यह एक तरफा गलती का मामला नहीं है। समर्थन और समर्पण में अंतर होना चाहिए और इसी तरह विरोध और वैमनस्य में भी अंतर होना चाहिए। जितना खतरनाक समर्पण है उतना ही खतरनाक वैमनस्य भी है जिसमें हम कुछ भी अच्छा नहीं देख पाते। उन्होंने कहा कि मुल्क में इस वक्त विचारों की लड़ाइयां बहुत तेज है और हर पार्टी ने सोशल मीडिया में भी अपने अपने फौजी उतार रखें हैं। ऐसे में जरूरी है कि पत्रकार अपने विवेक की आवाज सुने और इस समाज को बनाने में मदद करें ।
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वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चंद्र- मीडिया को प्रभावित करने की लगातार कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चंद्र ने कहा एक जमाने में लोग पत्रकारिता में इसलिए भी आते थे क्योंकि उनकी नजर में इससे उनका भोकाल टाइट हो सकता था ।यह भौकाल दरअसल समाज, सरकार और दुनिया को बदल देने की ताकत है जिसका हमें हमेशा ख्याल रखना चाहिए । इस वक्त सच है कि मीडिया को प्रभावित करने की लगातार कोशिश की जा रही है । यह दौर यकीनन मुश्किल है लेकिन अगर आप प्रभावित होने की वजह जनता को सुनने समझने और उनकी आकांक्षाओं को स्थान देने का काम करते हैं तो आप पर भरोसा बढ़ेगा। आज अपनी आवाज से ज्यादा जरूरी है जनता की आवाज को जगह देना । अगर हम ऐसा करें तो हम इस मुश्किल दौर से यकीनन निकल आएंगे।
newstrack के प्रधान संपादक डॉ योगेश मिश्रा ने कहा-
चर्चा में शिरकत करते हुए newstrack.com/अपना भारत के प्रधान संपादक व वरिष्ठ पत्रकार डॉ योगेश मिश्रा ने ढेरों उदाहरणों और वाकयों के जरिए यह कहने की कोशिश की कि असली खतरा भीतर से है। उन्होंने कहा पत्रकारिता जिस भय की बात कर रही है उसकी वजह, उसकी लालसाएं, अंदरूनी कमजोरियां और इच्छाएं हैं, जिसे आज का राजनीतिज्ञ बखूबी समझता है। जब हम अपनी मोटी पगार के बारे में सोचते हैं, जब राज्यसभा के टिकट के बारे में सोचते हैं और जब अपने लिए बड़े बंगलों के बारे में सोचते हैं, तो उसी वक्त हम जनता से दूर जा रहे होते हैं। यह ठीक नहीं है । खबरें सिर्फ जनता को ध्यान में रखकर लिखी जानी चाहिए अगर हम यह आत्मावलोकन कर सके तो हम इस संकट से बाहर निकल आएंगे।
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तकरीबन 2 घंटे तक चले इस सत्र में बेहद गरमा-गरम बहस हुई और दर्शक तालियों के जरिए समय-समय पर अपना समर्थन और अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहे। इसका, उसका, किसका मीडिया ?