इस देवी के दरबार में रोज चढ़ती है बकरों की बलि, कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंधु सिंह यहां देते थे अंग्रेजों की बलि

Gorakhpur News: चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह से मंदिर का रिश्ता रहा है। बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों का सिर कलम कर मां को चढ़ाते थे।

Update: 2024-07-13 12:46 GMT

गोरखपुर के तरकुलहा मंदिर में लगा रहता है पूरे साल मेला (न्यूजट्रैक)

Gorakhpur News:  उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिला मुख्यालय से देवरिया रोड पर 22वें किलोमीटर पर स्थित सुप्रसिद्ध तरकुलहा मंदिर अपनी अनूठी परम्परा के लिए जाना जाता है। यहां देवी को रोज 150 से 200 बकरों की बलि दिया जाता है। परिसर में ही हांडी में इस मांस को पकाकर प्रसाद के रूप में लोग ग्रहण करते हैं। अंग्रेजी हुकूमत में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंधु सिंह यहां अंग्रेजों की बलि देकर देवी को प्रसन्न करते थे।

चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह से मंदिर का रिश्ता रहा है। बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों का सिर कलम कर मां को चढ़ाते थे। जिसके बाद अंग्रजों ने बंधू सिंह को गिरफ्तार कर फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया। बताते हैं कि बंधू सिंह को सात बार फांसी देने की कोशिश हुई, हर बार फंटा टूट गया। तब बंधू सिंह ने मां तरकुलहा से अनुरोध किया कि हे मां मुझे अपने चरणों में ले लो। आठवीं बार बंधू सिंह ने स्वयं फांसी का फंदा अपने गले में डाला। इसके बाद उन्हें फांसी दी गई। कहा जाता है कि जैसे ही बंधू सिंह फांसी पर लटके इसके ठीक दूसरी तरफ तरकुलहा के पास स्थित तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया। जिससे खून के फव्वारे निकलने लगे।

बाद में भक्तों ने यहां मंदिर का निर्माण कराया। मां तरकुलहा देवी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी है। जंगल का क्षेत्र होने से यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के छिपने का सबसे मुफीद स्थान था। स्वतंत्रता आंदोलन में क्रान्तिकारियों के लिए अहम तरकुलहा मंदिर में लोग मनौती पूरा होने पर बकरे की बलि देते हैं। पुजारी बताते हैं कि बुधवार और शुक्रवार को 150 से 200 संख्या में बकरों की बलि दी जाती है। बाद में श्रद्धालु इस मांस को ही पका कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। अपने में अनूठे आस्था के इस स्थल पर खाने-पीने के इंतजाम के चलते पूरे साल श्रद्धालु आते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में मुंडन से लेकर जनेऊ आदि के मांगलिक कार्यक्रम होते हैं।


श्रद्धालु यहां हांडी में मीट पकाते हैं। ऐसे में यहां के कुम्हारों को हांडी और गौ-पालको को उपला को लेकर कारोबार मिल गया है। दुकानदार जितेन्द्र मौर्या बताते हैं कि ‘रोज 800 से 1000 हांडी मेला परिसर में बिक जाती है। एक हांडी 40 से लेकर 100 रुपये में बिकता है। वहीं उपला 20 से 30 रुपये प्रति पीस की दर से बिकता है।’ मेला परिसर में शराब और बीयर की भी आधा दर्जन दुकानें हैं। मंदिर के पुजारी दिनेश त्रिपाठी बताते हैं कि ‘देवी को बलि चढ़ाने की परम्परा आजादी से पहले से चली आ रही है। शुक्रवार और सोमवार को औसतन 150 से 200 बकरों की बलि दी जाती है। मंदिर परिसर में रोजमर्रा की सभी चीजे मिलती हैं। रोटी बनाने के लिए तावा हो या बेलन सबकुछ यहीं से खरीदते हैं।

मंदिर परिसर में हैं 500 से अधिक दुकानें

मेला के सरंक्षक रमेश राय बताते हैं कि ‘मंदिर के प्रति आस्था के साथ ही जंगलों के बीच स्थित देवी स्थान श्रद्धालुओं के लिए पिकनिक स्पॉट बन गया है। जहां बच्चों से लेकर महिलाएं तक पूजा अर्चना के बाद खाना पकाकर खाती हैं।’ हर महीने परिवार या दोस्तों के साथ आने वाले देवरिया जिले के अरविंद सिंह बताते हैं कि ‘मेला परिसर में उपला और लकड़ी पर बने खाने का स्वाद फाइव स्टॉर होटलों में भी नहीं मिल सकता। जैसे भी खाना पकाओ स्वाद बेजोड़ मिलता है।’ मेला प्रबंधन से जुड़े राजनाराण शाही का कहना है कि ‘मेला परिसर में स्थित 500 से अधिक दुकानों से 3000 से अधिक परिवारों की रोजी रोटी चल रही है। साल दर साल मेला परिसर का विस्तार हो रहा है। हर घर मेला की जरूरतों को देखते हुए सामान तैयार करता है।’

पूरे साल लगा रहता है मेला

परिसर में कुछ वर्षों पहले तक सिर्फ चैत्र नवरात्र में महीने भर का मेला लगता था। लेकिन अब यह देवी स्थल आस्था के साथ पिकनिक स्पॉट भी बन चुका है। जहां साल के 365 दिन पूर्वांचल के साथ ही सीमावर्ती बिहार और पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल से हजारों श्रद्धालु आते हैं। हर मौसम में गुलजार छोटी-बड़ी 500 दुकानों पर प्रतिदिन 30 से 50 लाख रुपए से अधिक का कारोबार होता है। चैत्र नवरात्र को गुजरे महीने भर से अधिक के वक्त के बाद भी यहां प्रसाद से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों की छोटी-बड़ी 500 से अधिक दुकानें गुलजार हैं। यहां बच्चों के लिए ड्रैगन झूला है तो जादू दिखाने वाला कलाकार भी। दिन हो या रात पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से लेकर बिहार और नेपाल नंबर की करीब 200 लग्जरी गाड़ियां हमेशा मेला परिसर में खड़ी रहती हैं। साल भर का मेला आसपास के लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी बन गया है।

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