Premchand Jayanti 2024: किताबों से निकलीं प्रेमचंद की कहानियां पर्दे पर खूब हिट हुईं, गोरखपुर में लिखीं कईं थीं कालजयी रचनाएं

Gorakhpur News: रेडियो पर प्रेमचंद की कहानियां भी खूब सुनाई देती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियों की पटकथा गोरखपुर से प्रेरित है। जहां रहते हुए उन्होंने कई अमर रचनाएं रचीं।

Update:2024-07-31 07:56 IST

Munshi Premchand Jayanti 2024   (photo: social media )

Gorakhpur News: गरीब, स्त्री, दलित और किसानों पर अपनी कालजयी रचनाओं के लिए दुनिया के अग्रणी साहित्यकारों में शुमार मुंशी प्रेमचंद उन चुनिंदा रचनाकारों में शामिल हैं, जिनकी कालजई रचनाएं न सिर्फ किताबों में बल्कि रुपहले पर्दे पर भी खूब धूम मचाई है। रेडियो पर प्रेमचंद की कहानियां भी खूब सुनाई देती हैं। मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियों की पटकथा गोरखपुर से प्रेरित है। जहां रहते हुए उन्होंने कई अमर रचनाएं रचीं।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग में पूर्व अध्यक्ष और इतिहासकार प्रो. चन्द्रभूषण गुप्ता ‘अंकुर’ बताते हैं, प्रेमचन्द का साहित्य हिन्दी सिनेमा के परदे पर भी अलग-अलग दौर में उतरा है। वह बॉलीवुड के सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में एक हैं। प्रेमचन्द के उपन्यास ‘सेवा सदन’ पर पहली बार 1934 में फिल्म बनी थीं। उनकी मृत्यु के बाद आजाद भारत में ‘शतरंज के खिलाड़ी’, सद्गति, ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘कफन’ आदि पर फिल्में बनी हैं। साहित्यकार प्रो.रामदेव शुक्ला का कहना है कि जो चेतना राजनीति में महात्मा गांधी ने दी, वैसी ही चेतना मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य के लिए किया। प्रेमचंद, कबीरदास जैसे लोगों की प्रासंगिकता इसलिए है कि ये अपने समय को गहराई से देखते हैं। हाशिए पर डाल दिए गए गरीब, मजदूर, किसान, स्त्री और दलित इनके साहित्य के केन्द्र में हैं। इसीलिए रुपहले पर्दे पर प्रेमचंद की कहानियां हिट हैं।

महात्मा गांधी की तुलना प्रेमचंद से करते हैं साहित्यकार

प्रेमचंद के उपन्यासों ने गोरखपुर को अंतरराष्ट्रीय फलक पर साहित्यिक पहचान दी। अंग्रेजी हुकूमत में जब गोरखपुर में आकर महात्मा गांधी ने आंदोलन का आह्वान किया तो प्रेमचंद ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े। नौकरी छोड़ने के बाद उन्हें लेखन के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा था। करीब एक शताब्दी बाद भी न सिर्फ प्रेमचंद की रचनाएं प्रासंगिक हैं बल्कि नए साहित्यकारों ने भी उनकी विरासत को आगे बढ़ाया है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रेमचन्द के साहित्य पर करीब 50 शोध कार्य हुए हैं। हिन्दी विभाग में हर दौर में कथा सम्राट पर शोध कार्य हुए हैं। नब्बे के दशक तक स्वाधीनता, मुख्यधर्मी चेतना और नवजागरण को लेकर प्रेमचन्द का मूल्यांकन हुआ। उसके बाद भूमंडलीकरण और पूंजीकरण का दौर आया तो मूल्यांकन के आधार भी बदल गए।

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