Gorakhpur News: चावल, दाल को सेहतमंद करेंगे ट्राइकोडर्मा, एनबीआरआई के वैज्ञानिकों के शोध से निकले ये निष्कर्ष

Gorakhpur News: ट्राइकोडर्मा एक अलग तरह का जैविक फफूंद नाशक है जो मिट्टी और बीजों में पाए जाने वाले हानिकारक फफूदों का नाश कर पौधे को स्वस्थ और निरोग बनाता है। इसका प्रभाव मिट्टी में सालों साल तक बना रहता है।;

Update:2024-01-29 07:25 IST

Gorakhpur News (Newstrack)

Gorakhpur News: राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) लखनऊ में हुए शोध में इसकी पुष्टि हुई है कि ट्राइकोडर्मा फसलों को प्रदूषण से बचाने में सक्षम है। इसका उपयोग कर मिट्टी की सेहत को बढ़ाने के साथ ही फसल को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। एनबीआरआई की डॉक्टर आराधना मिश्रा के साथ दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (डीडीयू) के रसायन विभाग की डॉ. निष्ठा मिश्रा, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. साहिल महफूज के शोध के निष्कर्ष में यह तथ्य सामने आया है।

एनबीआरआई की वैज्ञानिक व डीडीयू के दो शिक्षकों का शोध ‘फैसिओलोजिया प्लांटेरम’ में प्रकाशित हुआ है। शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि धान की फसलों की बुआई के पूर्व ट्राइकोडर्मा से उपचार करने पर बीज बढ़ते प्रदूषण के असर को झेलने में समर्थ हो जाता है। डीडीयू की डॉ. निष्ठा मिश्रा ने बताया कि 550 पीपीएम कार्बन डाइऑक्साइड पर बीज को ट्राइकोडर्मा से उपचार के बाद उगाने का परिणाम बिना पौधे के उपचारित बीज के मुकाबले काफी बेहतर रहा। नतीजों से संतुष्ट होने के बाद शोध प्रकाशित हुआ। डॉ.साहिल बताते हैं कि 2018 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर करीब 398 पीपीएम था। जो 2019 में बढ़कर 409 पीपीएम तक पहुंच गया। इसी तरह बढ़ता रहा तो दो दशक में यह 550 के स्तर तक पहुंच जाएगा। ऐसे में फसलों पर असर को लेकर एनबीआरआई का यह रिसर्च भविष्य में लाभ देने वाला है।

फफूंद नाशक है ट्राइकोडर्मा 

ट्राइकोडर्मा एक अलग तरह का जैविक फफूंद नाशक है जो मिट्टी और बीजों में पाए जाने वाले हानिकारक फफूदों का नाश कर पौधे को स्वस्थ और निरोग बनाता है। इसका प्रभाव मिट्टी में सालों साल तक बना रहता है। रोग को रोकता है। यह पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाता है।

ट्राइकोडर्मा के ये हैं लाभ

भूमि जनित तथा बीज जनित रोगों से फसल बचाने में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मिट्टी के लाभदायक जीवों तथा आदमी एवं अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालता है। मिट्टी, हवा, जल आदि में प्रदूषण नहीं फैलाता है। उत्पादों का स्वाद बढ़ता है तथा रोगों में इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं पनपती है। इसके प्रयोग से उत्पादित फसल, सब्जियाँ, फल आदि लम्बे समय तक ताजे बने रहते हैं। इसका प्रयोग अनाज, दलहन, तिलहन, मसाले, औषधियाँ, फूलों, पान, सब्जियों एवं फलों आदि सभी प्रकार की फसलों पर किया जा सकता है। इसके प्रयोग से आर्द्र गलन, बीज सड़न, जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, मूल ग्रन्थि आदि रोगों में पूर्ण या आशिक फायदा पहुँचाता है। 

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