Hapur News: जबरदस्त खां ने आजादी की लड़ाई में दी थी शहादत, अंग्रेजों के खिलाफ बजाय था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल

Hapur News: जबरदस्त खां के परिवार का एक करिंदा अब्दुल रहमान उनके चार साल के बच्चे अब्दुल्ला को लेकर कश्मीर चला गया था। जबरदस्त खां की बुलंदशहर रोड स्थित जायदाद जब्त कर ली गई।

Report :  Avnish Pal
Update:2024-05-10 15:33 IST

जबरदस्त खां ने आजादी की लड़ाई में दी थी शहादत  (photo: social media )

Hapur News: 10 मई 1857 को मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा था। देश के वीर सपूतों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। चर्बी लगे कारतूसों को आधार बनाकर विद्रोह की आग सुलगाने में मेरठ छावनी के 85 सैनिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। ये सभी क्रांतिकारी सैनिक मेरठ कमिश्नरी के निवासी थे। इनमें एक वीर सैनिक हापुड़ के मोहल्ला भंडा पट्टी निवासी चौधरी जबरदस्त खां थे। अंग्रेजों ने बाद में जबरदस्त खां और उनके भाई को झूठे मुकदमे में फंसा कर फांसी दे दी थी।

14 सितंबर 1857 जबरदस्त खां को फांसी

परपौत्र फ़सीह चौधरी ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे पूर्वज चौधरी जबरदस्त खां 10 मई 1857 को अंग्रेज अफसर का विरोध कर दिल्ली की ओर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को देश का शासक बनाने की सोच कर निकल थे। हालांकि बाद में उन्हें और उनके भाई नवाबउल्त खां को पकड़कर 14 सितंबर 1857 को हुसलन नामक अंग्रेज अफसर ने फांसी पर चढ़ा दिया। उनके पूरे परिवार को कत्ल करने का आदेश दे दिया गया।


अंग्रेजो ने जबरदस्त खां की जायदाद की थी जब्त

जबरदस्त खां के परिवार का एक करिंदा अब्दुल रहमान उनके चार साल के बच्चे अब्दुल्ला को लेकर कश्मीर चला गया था। जबरदस्त खां की बुलंदशहर रोड स्थित जायदाद जब्त कर ली गई। उधर रहमान ने अब्दुल्ला का पालन पोषण कर उसे बैरिस्टर बनाया और अपने अंतिम दिनों में अब्दुल्ला को पूरे मामले से अवगत कराया।


कार्यक्रम कर आयोजित कर शहीदों को किया याद

इसके बाद अब्दुल्ला हापुड़ आए और मेरठ में बैरिस्टर हुए। अंग्रेजों से मुकदमा लड़कर खानदानी जमीन वापस ले ली। फिलहाल यह जमीन ग्राम इमटौरी में स्थित है। चौधरी जबरदस्त खान के प्रपौत्र लेखक और साहित्यकार फसीह चौधरी (बंदूक वालों) और प्रपौत्र डा.मरगूब अहमद त्यागी ने बताया कि आज भी वे लोग आओ पढ़ो सोसायटी' और फ्रीडम फाईटर्स मेमोरियल सोसायटी हापुड़', 1857 स्वतंत्रता संग्राम यादगार समिति के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित कर शहीदों को याद करते हैं।


एनफील्ड बंदूक में थी चर्बी

अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानी सिपाहियों को पैटर्न 1853 एनफील्ड बंदूक दी थी, जो 0.577 कैलीबर की बंदूक थी। दशकों से प्रयोग में लायी जाती रही बंदूक ब्राउस बैस के मुकाबले में ये अधिक शक्तिशाली थी। नई बंदूक में गोली दागने की प्रणाली प्रक्शन कैप का प्रयोग किया गया था। गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नई एनफील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को दांत से काटकर खोलना पड़ता था। उसमें भरे हुए बारूद को बंदूक की नली में भरकर कारतूस डालना पड़ता। कारतूस के बाहरी भाग पर चर्बी लगी होती थी। कारतूस खराब न हो इसके लिए चर्बी लगाई जाती थी ताकि वह सीलन में खराब न हो।

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