Hardoi News: हरदोई का यह तालाब अपने आप में है ख़ास, बड़े कमाल के यहाँ के कछुए बच्चों से कर लेते हैं बातें

Hardoi News: बिलग्राम विकासखंड के ककराखेड़ा गांव में एक तालाब जो कि कछुआ तालाब के नाम से जनपद के साथ-साथ प्रदेश में विख्यात हो चुका है। 35 बीघा क्षेत्रफल में फैले तालाब में 10000 से अधिक कछुए रहते हैं

Report :  Pulkit Sharma
Update: 2024-01-06 09:15 GMT

तालाब में कछुए (Newstrack)

Hardoi News: हरदोई में वैसे तो कई तालाब है और कई तालाबों का सौंदर्यकरण भी किया गया है। लेकिन, इन सब तालाबों के बीच एक ऐसा तालाब है जो अपने आप में काफी प्रसिद्ध है। यह तालाब लगभग 35 बीघा क्षेत्रफल में बना हुआ है। इस तालाब को संरक्षित करने के लिए जिला प्रशासन भी अब जुटा हुआ है। जिला प्रशासन द्वारा इस तालाब के आसपास बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जा रही हैं साथ ही जनपद के इस तालाब को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। हरदोई जनपद के बिलग्राम विकासखंड में यह तालाब मौजूद है। इस तालाब की खूबसूरती सौंदर्यीकरण नहीं बल्कि यहां हजारों की संख्या में रह रहे जलीय जीव है। इन जलीय जीव को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं साथ ही बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र है। एक और जहां प्रदेश में जलाशय अपना अस्तित्व को खो रहे थे वही बिलग्राम विकासखंड के इस तालाब को ग्रामीणों ने संजोने का कार्य किया हैं।

10 हज़ार से ज़्यादा हैं कछुए

बिलग्राम विकासखंड के ककराखेड़ा गांव में एक तालाब जो कि कछुआ तालाब के नाम से जनपद के साथ-साथ प्रदेश में विख्यात हो चुका है। 35 बीघा क्षेत्रफल में फैले तालाब में 10000 से अधिक कछुए रहते हैं। इस तालाब में छोटे से लेकर विशाल कछुये रहते हैं। जब कोई इन कछुआ को भोजन कराने के लिए तालाब किनारे पहुंचता है और आटे से बनी गोलियों को तालाब में फेंकता है तो हजारों की संख्या में कछुए भोजन के लिए तालाब के किनारे बनी सीढियों पर आ जाते हैं। छुट्टियों में हरदोई के साथ-साथ अन्य जनपदों से भी लोग यहां कछुओं को देखने व उनका भोजन करने के लिए पहुंचते हैं।

कछुए ग्रामीणों से इतना घुल मिल गए हैं की गांव के छोटे-छोटे बच्चे विशाल कछुआ की पीठ पर बैठकर सैर भी करते हैं साथ ही कई बार गांव के बच्चों के बुलाने पर यह कछुए तालाब से निकलकर बाहर भी आ जाते हैं। इस तालाब में कछुआ का आकार काफी बड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि यह कछुए कब और कहां से आए इसका कुछ भी पता नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि तालाब किनारे बने गोबर के ढेर में मादा कछुआ अंडे देती है। अंडो को संरक्षित करने के लिए ग्रामीण उनकी देखभाल करते हैं जिससे अंडों को सुरक्षित रखा जा सके। अंडों से बच्चे निकालने के बाद वह भी इसी तालाब में चले जाते हैं। ऐसे ही दिन पर दिन तालाब में कछुआ की संख्या बढ़ती जा रही है।

ग्रामीण बताते हैं कि यदि कोई शिकारी कछुए का शिकार करने के लिए तालाब पर आता है तो गांव वाले कछुआ को बचाने के लिए एक होकर शिकारी का सामना करते हैं और उसे पड़कर पुलिस के हवाले कर देते हैं। कछुआ को लेकर ककराखेड़ा गांव के ग्रामीण काफी जागरुक है। कछुआ तालाब की जानकारी मिलने के बाद इस तालाब को पर्यटन स्थल का दर्जा भी मिल चुका है साथ ही गांव तक आने-जाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा पक्की सड़क का भी निर्माण कराया गया है। जिला प्रशासन की ओर से इस दुर्लभ तालाब को संरक्षित करने के लिए बजट का आवंटन किया गया है। इस तालाब के चारों ओर मिट्टी का घेरा बनाकर इसे संरक्षित करने का कार्य किया गया है। जिला प्रशासन की ओर से कछुआ तालाब को पर्यटन के मानचित्र पर भी दर्शाया गया है। गांव के लोग कहते हैं कि कछुआ उनके लिए वरदान है। कछुओं का तालाब यहां होने से गांव में बरकत आ रही है। यह तालाब कटरा बिल्लौर हाईवे से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर है।

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