पखवाड़े में हुई गांधी की प्रासगिंकता पर चर्चा

द्वितीय सत्र का विषय था ‘गाँधी जी तथा दलित उद्धार’। इस विषय पर बोलते हुए जी0 बी0 पन्त सोशल साइंस इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद के प्रोफेसर बद्री नारायण ने कहा कि गाँधी जी कहा करते थे कि आत्म जागरण से ही मुक्ति सम्भव है। गाँधी जी ने अपने दलित उद्धार के संघर्ष को अम्बेडकर को सौंपा

Update:2023-05-18 19:01 IST

लखनऊ: इण्डिया लिटरेसी बोर्ड, साक्षरता निकेतन में आयोजित ’साक्षरता एवं स्वावलम्बन पखवाड़े’ के तहत हुई व्याख्यान-माला में ‘वर्तमान परिवेश में गाँधी जी की प्रासंगिकता’ की थीम को पर विद्वान गाँधीवादी विचारकों ने अपने विचार रखे।

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 भूमित्र देव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गाँधी जी जो सोचते थे, वही करते थे और वही कहते भी थे।

उनका मानना था कि सत्य गोपनीयता से नफरत करता है। हर कार्य में पारदर्शिता होना आवश्यक है। आज के युग में विडम्बना यह है कि जो नेक हैं, वे एक नहीं हैं और जो एक हो गए हैं, उनमें से अधिकांश नेक नहीं हैं। विश्वविद्यालयों के लिए गाँधी जी के शब्द और सिद्धान्त रामबाण का कार्य करते रहे हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। इस सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति वीके दीक्षित द्वारा की गई।

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द्वितीय सत्र का विषय था ‘गाँधी जी तथा दलित उद्धार’। इस विषय पर बोलते हुए जी0 बी0 पन्त सोशल साइंस इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद के प्रोफेसर बद्री नारायण ने कहा कि गाँधी जी कहा करते थे कि आत्म जागरण से ही मुक्ति सम्भव है। गाँधी जी ने अपने दलित उद्धार के संघर्ष को अम्बेडकर को सौंपा और अम्बेडकर ने उसे आगे बढ़ाया।

सत्र तीन में सिंहानिया विश्वविद्यालय, जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर सोहन राज तातेर ने ‘महात्मा गाँधी की आध्यात्मिक समझ’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गाँधी जी की प्रासंगिकता आज भी है और हर युग में रहेगी।

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सत्र चार में ‘महात्मा गाँधी, पर्यावरण संकट तथा अस्थाई विकास सशक्तीकरण’ विषय पर बोलते हुए राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय, नई दिल्ली के पूर्व उपनिदेशक डॉ0 अनिल दत्त मिश्रा ने कहा कि गाँधी जी अत्यन्त साधारण व्यक्ति थे।

सत्र पाँच में ‘अन्तर्जातीय संवाद का गाँधीवादी दृष्टिकोण’ विषय पर बोलते हुए किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के हृदय रोग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मंसूर हसन ने कहा कि गाँधी जी एक मनुष्य नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण थे।

छठवें सत्र का विषय था- ‘समकालीन कृषि मुद्दे पर गाँधीवाद की प्रासंगिकता’। इस पर भुवनेश्वर, ओड़िसा से पधारे गाँधीवादी विचारक तथा कृषि विशेषज्ञ श्री सुकुमार दास ने अपने विचार व्यक्त किए।

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सातवें सत्र में गाँधी अध्ययन केन्द्र पाण्डुचेरी विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पेरिया कृष्णामूर्ति ने ‘इक्कीसवीं शताब्दी में ग्लोबल नॉलेज सोसाइटी की ओर: गाँधीवाद के परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर बोलते हुए कहा कि गाँधी जी के दृष्टिकोण को कई देश मानते हैं और प्रयोग करते हैं।

आठवें सत्र का विषय था, ‘गाँधी जी के धार्मिक विचारों की प्रासंगिकता’। इस सत्र की अध्यक्षता मुख्य वन संरक्षक, वाई0 एस0 शेषु कुमार, आई.एफ.एस. द्वारा की गई।

नवें तथा व्याख्यान में माला के अन्तिम सत्र में ‘गाँधी का महात्मा बनना’ विषय पर बोलते हुए एडीटर, सुलभ इण्डिया (इंगलिश), प्रोफेसर अवधेश कुमार शर्मा ने कहा कि गाँधी जी का जीवन एक प्रयोगशाला था। व्याख्यान-माला के सभी विद्वान वक्ताओं के प्रति इण्डिया लिटरेसी बोर्ड के अध्यक्ष जी पटनायक, आई.ए.एस. (से.नि.) ने आभार प्रकट किया तथा स्मृति-चिह्न देकर उन्हें सम्मानित किया।

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