Mahakumbh: 351 वर्षों के बाद हिंदू आचार संहिता बनकर तैयार, शंकराचार्य और महामंडलेश्वर लगाएंगे अंतिम मुहर

Mahakumbh: महाकुंभ 2025 में होने वाला है और इस अवसर पर सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए हिंदू आचार संहिता की तैयारी की गई है।

Report :  Aakanksha Dixit
Update: 2024-02-20 06:34 GMT

Mahakumbh prayagraj source: social media 

Prayagraj News: 51 वर्षों के बाद हिंदू आचार संहिता बनकर तैयार है। इसे चार साल के अध्ययन और मंथन के बाद काशी विद्वत परिषद और देशभर के विद्वानों की टीम ने मिलकर तैयार किया है। इसे प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ में शंकराचार्य और महामंडलेश्वर अंतिम मुहर लगाएंगे। उसके बाद धर्माचार्य देश की जनता से इसे स्वीकार करने का आग्रह करेंगे।

हिंदू आचार संहिता की तैयारी और जिम्मेदारी

महाकुंभ 2025 में होने वाला है और इस अवसर पर सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए हिंदू आचार संहिता की तैयारी की गई है। इस नई संहिता में कर्म और कर्तव्य को महत्वपूर्ण माना गया है और इसके लिए स्मृतियों को आधार बनाया गया है। इसमें श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों का भाग शामिल किया गया है।

विद्वानों की बनी टीम

नई आचार संहिता की तैयारी के लिए काशी विद्वत परिषद को जिम्मेदारी सौंपी गई थी और इसके लिए 70 विद्वानों की 11 टीम और तीन उप टीम बनाई गई थी। मनु स्मृति, पराशर स्मृति और देवल स्मृति को इसमें आधार बनाया गया है। निर्धारित टीम में उत्तर और दक्षिण के पांच-पांच विद्वान सदस्यों को भी रखा गया। टीम ने 40 बार से ज्यादा बैठके की है। 

हिंदू आचार संहिता में षोडश संस्कार

हिंदू आचार संहिता में षोडश संस्कारों को सरल बनाया गया है, खासकर मृतक भोज के लिए न्यूनतम 16 की संख्या निर्धारित की गई है। इसके लिए अशौच के विधान का पालन करना होगा और स्मृतियों का निर्माण काल के अनुसार किया गया है। मनु स्मृति, पाराशर और देवल स्मृति के निर्माण के बाद, 351 सालों से स्मृतियों का निर्माण नहीं हो सका था।

हिंदू आचार संहिता के अनुसार विधिवत वितरण

महाकुंभ में पहली बार एक लाख प्रतियां हिंदू आचार संहिता की छापी जाएगी, जिसके बाद देश के हर शहर में 11 हजार प्रतियों का वितरण किया जाएगा। इस संहिता में हिंदुओं को मंदिरों में बैठने, पूजन-अर्चन के लिए समान नियम बनाए गए हैं और महिलाओं को अशौचावस्था को छोड़कर वेद अध्ययन और यज्ञ करने की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही, इस संहिता ने प्री-वेडिंग जैसी कुरीतियों को हटाने के साथ ही रात्रि के विवाह को समाप्त करके दिन के विवाह को बढ़ावा दिया है और भारतीय परंपरा के अनुसार, जन्मदिन मनाने पर जोर दिया गया है।

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