रमणरेती पर भगवान ने संतो और भक्तों के साथ खेली होली
देश में होली मनाए जाने में भले ही समय हो लेकिन ब्रज में बसन्त पंचमी से शुरू हुआ होली का आगाज द्वारिकाधीश भगवान् के ढप महोत्सव से होता हुआ आज गोकुल के रमणरेती स्थित उदासीन कार्ष्णि आश्रम पहुँचा।जहाँ रमणरेती की इस पावन धरा पर भग
मथुरा:देश में होली मनाए जाने में भले ही समय हो लेकिन ब्रज में बसन्त पंचमी से शुरू हुआ होली का आगाज द्वारिकाधीश भगवान् के ढप महोत्सव से होता हुआ आज गोकुल के रमणरेती स्थित उदासीन कार्ष्णि आश्रम पहुँचा।जहाँ रमणरेती की इस पावन धरा पर भगवान् स्वरुप खुद संतो के साथ होली खेलने आये।यमुना तट किनारे बसे इस स्थल पर संतो और भगवान ने मिलकर देश विदेश से आये भक्तो के साथ जमकर अबीर गुलाल और टेसू के फूलों से बने रंगों से होली खेली।मस्ती और उमंग से सराबोर कर देने वाली इस होली में कान्हा और सखियो की हँसी ठिठोली के साथ साथ फूलों की होली और मयूर नृत्य लीला ने सभी का मन मोह लिया।कार्ष्णि आश्रम का यह 87 वा वार्षिक महोत्सव था ।
कान्हा की मस्ती में सराबोर होकर नाचते गाते और इठलाते कान्हा के भक्त जो देश के कोने कोने से मथुरा रमणरेती स्थित गुरुशरणानंद जी महाराज के आश्रम में हर साल होने वाली पारंपरिक होली के आयोजन में आये है।कुछ श्रद्धालु यहाँ हर साल आते है तो कुछ पहली बार यहाँ आते है और ऐसी मस्ती को देख हर साल आने की कामना लिया यहाँ से जाते हैं।हँसी ठिठोली मयूर नृत्य और फूलों की इस होली के साथ-साथ यहाँ टेसू के फूलों के रंग से भी होली खेली जाती है | होली खेलने से पहले राधा कृष्ण के रसियाओं का गायन होता है जिसमे श्रद्धालु कान्हा के प्रेम में सब कुछ भूल जाते हे और मस्ती से नाचते गाते हैं।गुरु शरणानंद जी महाराज का मथुरा में गोकुल के नजदीक ‘श्रीउदासीन कार्ष्णि आश्रम हे जहाँ संतों भगवान और भक्तों के बीच हर साल इसी पारंपरिक तरह से होली खेली जाती है/ यहाँ होने वाली होली का मुख्य आकर्षण फूल होली होता है जिसमे कई टन फूलों से होली खेली जाती है ।
इस बार की होली में सूखे फूलों के अलावा गुलाल और टेसू के फूलों से बने रंग का इस्तेमाल किय गया/ 200 क्विन्टल टेसू से बने 6 हजार लीटर प्राकृतिक रंगों की खासियत यह है कि इनसे शरीर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है । वार्षिकोत्सव में राधा-कृष्ण की रासलीला के समय हुये होली के रसिया गायन से यहाँ मौजूद भक्त पूरी तरह होली के रंग में रंगे नजर आये और पंडाल में बैठे-बैठे ही दोनों हाथों से ताली बजा कर होली के रसिया गाने लगे। पूरे पंडाल का माहौल ये था कि हर कोई राधा-कृष्ण के स्वरूपों के साथ होली खेलना चाहता था और सभी ये मौका पाकर खुद को बेहद आनंदित महसूस कर रहे थे । फूल होली से पहले यहाँ राधा-कृष्ण और सखियों की रासलीलाओं का मंचन किया गया ।
गुरुशरणानंद जी महाराज ने बताया कि होली का पर्व आध्यात्मिक वह सामाजिक पर्व है साथ ही साथ व्यवहारिक पर्व भी है और सबसे बढ़कर आनंद का पर्व है ब्रज में बसंत पंचमी के दिन से ही होली प्रारंभ हो जाती है इसको बसंतोत्सव भी कहते हैं श्रेष्ठ भाषा में अभी अगर इसको समझ आए तो इसको कामोत्सव् भी कहा जाता है । यह पर्व प्रभु को अपने रंग में और अपने को प्रभु रंग में रंगने का त्यौहार है अनुराग का रंग लाल होता है प्रभु अपने अनुराग में हमको अनुरंजित करें इसके लिए हम होली खेलते हैं बुराई को जलाने का द्वेष को मिटाने का भी यह त्यौहार है