खाद्य पदार्थों के दाम बहुत नहीं घटने वाले

Update:2020-01-24 12:10 IST

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ : अगर आप ये सोचते हैं या उम्मीद लगाए हैं कि प्याज, बटर, चीज़, मीट, दाल वगैरह जिन्सों के दाम साल भर पहले के लेवल पर आ जाएंगे तो समझ लीजिए ऐसा नहीं होने जा रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि २०१८-१९ की खाद्य पदार्थों की महंगाई दर काफी कम थी जो अब पलट रही है और आगे चल कर खाद्य पदार्थों के दाम एक ऊंचे लेवल पर स्थिर हो जाएंगे।

हालत को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। देश में २०१४ और २०१५ के लगातार सूखे के बाद रिकार्ड पैदावार का सिलसिला चला जिससे दाल से आलू तक सभी जिन्सों के दाम क्रैश कर गए। खेतों में सड़ते पके टमाटरों के ढेर, सड़क किनारे फेंके गए आलू व प्याज के ढेर, डेरी किसानों द्वारा हाइवे पर फेंका जाता दूध ऐसे नजारे अकसर दिखाई देते थे। २०१८-१९ में उपभोक्ता खाद्य महंगाई दर ०.१ फीसदी के हैरतअंगेज स्तर तक पहुंच गई। लेकिन इसके बाद सस्ते खाद्य पदार्थों का दौर अचानक पलट गया। वजह है - पिछले साल सितम्बर से नवम्बर के बीच अतिवृष्टि। इससे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में दाल, प्याज, आलू और सोयाबीन की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा।

मौसम के अलावा ग्लोबल फैक्टर भी महंगाई में काम कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों के दाम पांच साल के उच्चम स्तर पर हैं। इसका भी असर भारत के बाजार पर पड़ रहा है।

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अगस्त २०१९ में खुदरा खाद्य महंगाई ३ फीसदी थी जो बढ़ कर नवम्बर में १० फीसदी और दिसम्बर में १४ फीसदी तक पहुंच गई। ये बीते ६ साल का शीर्ष स्तर है। इस महंगाई के प्रमुख कारण सब्जियों (६० फीसदी), दाल (१५ फीसदी) और पशु प्रोटीन यानी अंडा-मटन (९ फीसदी) आदि के दाम में वृद्धि है। डबल डिजिट की ये महंगाई और जीडीपी विकास दर में सुस्ती (५ फीसदी) से 'स्टैगफ्लेशन' यानी 'ऊंची मुद्रास्फीती में मांग की कमी का तड़का' होने के हालात बनने का खतरा पैदा हो गया है। प्याज के दाम १०० रुपए किलो पहुंचने के बाद अब नीचे जा तो रहे हैं लेकिन दूध, मीड, अंडे और दालों के दाम में ऊंचाई चिंता का कारण बना हुआ है।

महंगाई में वर्तमान तेजी की वजह अतिवृष्टï तो मानी जा रही है लेकिन कृषि मंत्रालय ने अभी तक ये आंकड़ा जारी नहीं किया कि उत्पादन में कितना नुकसान हुआ है। खुदरा महंगाई में खाद्य पदार्थों की कीमतें सबसे परिवर्तनशील घटक होती हैं जिस कारण इनका पूर्वानुमान लगा पाना कठिन होता है।

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आंकड़ों का असर

रिजर्व बैंक के आंकड़े, जो ऊंची महंगाई दर का अनुमान लगाते हैं, उसका प्रभाव पर खाद्य पदार्थों के दामों पर पड़ता है। जब मांग कम होती है तो भविष्य के अनुमानों से ही दाम बढ़ सकते हैं। यदि दाम बढऩे का अनुमान है तो व्यापारी तथा बड़े किसान अपना स्टॉक रोक कर रख लेते हैं। खासकर वो सामान जो जल्दी नष्ट होने योग्य नहीं होता, जैसे कि प्याज।

आलू-प्याज-दाल

जब प्याज के दाम तेजी से बढऩे लगे तो खाद्य मंत्रालय ने प्याज के आयात का आदेश दे दिया। अब हाल ये है कि जब खरीफ की फसल बाजार में आ गई है तो सरकार के पास आयातित प्याज का स्टॉक भरा पड़ा है। राज्य इसे उठाने को तैयार नहीं हैं। प्याज के दाम ५०-६० रुपए किलो की रेंज में आ तो गए हैं लेकिन फिर भी पिछले साल की तुलना में ये दोगुने हैं। आलू के दाम कम सप्लाई के कारण ऊंचे बने हुए हैं। लखनऊ के खुदरा बाजार में आलू २० से २५ रुपए किलो बिक रहा है जबकि पिछले साल इन्हीं दिनों इसकी कीमत आधी थी। उस लेवल पर दाम आने की संभावना अब कम ही है। दाल की हालत भी चिंताजनक है। मूंग, अरहर और उड़द जैसी खरीफ की दालों में नुकसान काफी हुआ है जिससे दाम बढ़े हैं। अगर सर्दियों के बाद चने की आवक बेहतरीन हुई तब भी स्थिति में कोई सुधार नहीं होने वाला। क्योंकि आमतौर पर भारतीय रसोई में दाल की एक वैरायटी को दूसरे से बदला नहीं जाता। कृषि मंत्रालय ने दाल के उत्पादन में हुए नुकसान का ब्यौरा तो नहीं दिया है लेकिन नेशनल बल्क हैंडलिंग कार्पोरेशन लि. का अनुमान है कि मूंग का उत्पादन २७ फीसदी, उड़द का १८ फीसदी और अरहर का दस फीसदी नीचे चला गया है। वैसे, सरकारी एजेंसियों के पास २० लाख टन स्टॉक पड़ा है जिससे आने वाले महीनों में दाम पर काबू पाने में मदद मिलेगी। फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पास ७.५ करोड़ टन का गेहूं-चावल का बफर स्टॉक भी है। देखने वाली बात होगी कि सरकार इसका कैसे इस्तेमाल करती है। आटे की बात करें तो खुदरा बाजार में खुला आटा २६ से ३५ रुपए किलो तक बिक रहा है। साल भर पहले यही दाम २० से २५ रुपए किलो थे।

दाल-तेल और सब्जियां सभी के बढ़े दाम

अक्टूबर 2019 में सब्जियों की महंगाई दर 26 फीसदी थी तो नवंबर में यह 36 फीसदी हो गई और दिसंबर में यह 60.5 फीसदी हो गई। दालों के दामों में 15.44 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अरहर और उड़द की दाल 25 रुपये महंगी हो गई है। तेल का दाम तो हफ्ते भर में करीब 28 रुपये की छलांग लगा चुका है जबकि सरसों का दाम पिछले 15 दिनों में 100 रुपये प्रति कुंतल बढ़ा है। सरसों का तेल 112 से बढ़कर 118 रुपये प्रति किलो, पाम आयल 81 से 90 रुपये, रिफाइंड 105 से 111 रुपये हो गया है। 140 रुपये प्रतिकिलो वाली उड़द 160 रुपये में, देशी अरहर 70 रुपये प्रति किलो से 85 रुपये हो गई है।

सब्जियों की बात करें तो टमाटर ३० से ४० रुपये किलो, फूल गोभी २० से ३० रुपये, पत्तागोभी 1० से 25 रुपये, मटर 50 से 60 रुपये किलो, प्याज 50 से 60 रुपये प्रति किलो और आलू 20 से 25 रुपये किलो के दाम पर बिक रहा है।

मक्खन के दामों में भी वृद्धि हुई है, 500 ग्राम का मक्खन जो 175 रुपये में मिलता था, उसका दाम अब 225 रुपये हो गया है। मटन ५६० रुपए किलो, चिकन १८० रुपए किलो बिक रहा है। अंडे की क्रेट १४० रुपए पहुंच गई है। दूध और इससे बनने वाले सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो गए हैं। चावल और तिलहन के दामों में भी 20 से 30 रुपये प्रतिकिलो तक की वृद्धि दर्ज की गई है।

गरीब पर मार

अगर 100 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले के खर्च का हिसाब लगाएं तो उसकी सुबह की चाय और चार बिस्कुट पर ही दस रुपये से ज्यादा खर्च हो जाएंगे। इसके बाद दोपहर के भोजन के लिए अगर वह चार पूड़ी भी खाएगा तो 25 से 30 रुपये तक का भुगतान करना होगा। इसके बाद शाम को अगर वह चाय न भी पिए तो भी रात्रि के भोजन के लिए सबसे सस्ता और ठेलों पर मिलने वाला भोजन भी 50 रुपये से कम में नहीं मिलता है। अब इस खर्चे के बाद उसके पास महज 10 रुपये ही बचते हैं। जो उसे अगली सुबह की चाय के लिए बचा कर रखने है। ऐसे में 100 रुपए रोज कमाने वाला आदमी सिवाय रोटी या चावल के और क्या खा सकता है?

मोबाइल काल और डाटा हुआ महंगा

बीती पहली दिसंबर से मोबाइल पर बातचीत व डाटा के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद टेलीकॉम कंपनियों ने टैरिफ प्लान बढ़ा दिया है। इस साल के अंत तक मोबाइल बिल में 30 से 50 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। केबल टीवी देखना भी साल भर में महंगा हो चुका है। ट्राई द्वारा नियत टैरिफ की नई व्यवस्था से केबल या सैटेलाइट टीवी का बिल १५ से २० फीसदी बढ़ चुका है।

आशियाना भी हुआ महंगा

भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मकान खरीदने के लिए जहां वर्ष 2015 में अपनी मासिक आय का 56.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ता था, वहीं वर्ष 2019 में यह खर्च बढ़कर 61.5 प्रतिशत हो गया। पूरी तरह से तैयार इमारतों में जो मकान या फ्लैट बिक नहीं पाए है उनमें पिछले एक साल में आठ फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही भवन निर्माण में प्रयोग होने वाली सामाग्री भी काफी महंगी हुई है। सीमेंट के दामों में 10 फीसदी और मौरंग के दामों में 30 फीसदी तक वृद्धि हुई है। मजदूरों और मिस्त्रियों की मजदूरी में ३० से ५० फीसदी का इजाफा हुआ है।

90 फीसदी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में

इस समय पूरी दुनिया में मंदी का माहौल चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में हुई वृद्धि का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालिना जार्जीवा का कहना है कि दुनिया का करीब 90 फीसदी हिस्सा मंदी का शिकार है। जार्जीवा ने भारत का खासतौर पर उल्लेख करते हुए कहा कि यहां मंदी के लक्षण सबसे ज्यादा दिख रहे हैं। उन्होंने अमेरिका और चीन में चल रही ट्रेड वार को भी इसके लिए दोषी ठहराया। खाद्य पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी महंगाई दर को देखें तो दिसंबर 2018 में यह 161.5 थी तो साल भर बाद दिसंबर 2019 में यह बढ़कर 181.7 हो गई।

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन बनाने की तैयारी में सरकार

मोदी सरकार खाद्य तेल के आयात को कम करने और खाद्य तेल की कीमतों पर नियंत्रण के लिए जल्द ही राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) की स्थापना में जुटी हुई है,लेकिन इससे केवल तेल के दाम पर ही नियंत्रण होगा। अन्य खाद्य वस्तुओं पर नियंत्रण के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने पड़ेंगे। देश में भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने और परिवहन व्यवस्था भी ठीक न होने के कारण सब्जियां, फल, दूध वगैरह ही नहीं सड़ता बल्कि अनाज तक सड़ जाता है। फिर वायदा कारोबार, आयात-निर्यात में दिशाहीनता, जमाखोरी और कालाबाजारी की समस्याएं भी हैं। सरकार इसमें प्रभावी हस्तक्षेप करके मूल्यवृद्धि पर कुछ हद तक नियंत्रण कर सकती है।

रेलवे ने भी लगाया महंगाई में तड़का

रेलवे ने भी पहली जनवरी से किराया बढ़ाकर महंगाई की इस खिचड़ी में तड़का लगा दिया है। रेलवे ने सामान्य श्रेणी का किराया एक पैसा प्रति किमी बढ़ाया है,वहीं एक्सप्रेस ट्रेन (नॉन एसी) का किराया 2 पैसे प्रति किलोमीटर बढ़ाया है। एक्सप्रेस ट्रेन (एसी) के किराये में भी 4 पैसे प्रति किमी की वृद्धि की गई है। 500 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली दिल्ली-लखनऊ शताब्दी ट्रेन के किराए में चार पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से लगभग 20 रुपये की बढ़ोतरी होगी।

इससे पहले बीते साल 9 सितंबर को रेलवे ने दुरंतो, शताब्दी, राजधानी और हमसफर श्रेणी की ट्रेनों में हवाई सेवा की तर्ज पर फ्लैक्सीफेयर योजना लागू कर दी। हालांकि कुछ ही दिनों के बाद हमसफर ट्रेनों को फ्लैक्सी फेयर के दायरे से बाहर कर दिया गया। इस फ्लैक्सी फेयर योजना के कारण इन ट्रेनों का किराया महंगा हो जाता है। रेलवे के पास कुल 42 राजधानी, 46 शताब्दी और 54 दुरंतो ट्रेनें हैं। फ्लैक्सी फेयर योजना से किराया वृद्धि केवल इन 142 ट्रेनों में ही लागू की गयी है।

 

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