लखनऊ : काम तो उनका हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एमएस स्वामीनाथन जैसा है लेकिन सरकार की ओर से उन्हें वो पहचान या मुकाम नहीं मिला, जिसके हकदार हैं। हम बात कर रहे हैं गन्ना क्रांति के जनक के रूप में किसानों के बीच लोकप्रिय डॉ. बक्शी राम की। वर्ष 2009 में गन्ना की नई प्रजाति सीओ 0238 विकसित कर गन्ना किसानों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करने डॉ. बक्शी राम ने इस प्रजाति का देशी नाम दिया है 'करन फोर'। चूंकि इसको विकसित करने का काम उन्होंने हरियाणा के करनाल में शुरू किया था। इसीलिए नाम 'करन फोर' रखा। आज की तारीख में गन्ने की यह प्रजाति देश के पांच बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में 14.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोई जाती है। किसान मालामाल हुए या नहीं, यह अलग विषय है लेकिन गन्ने की इस प्रजाति ने देश में पहले से बोई जा रही गन्ने की तमाम प्रजातियों के मुकाबिल 20 टन प्रति हेक्टेयर गन्ने की पैदावार बढ़ी है। यह अभूतपूर्व है। पेश है डॉ. बक्शी राम से आर.बी. त्रिपाठी की बातचीत के मुख्य अंश :
- किसानों के जीवन में परिवर्तन लाने वाली गन्ने की नई प्रजाति का विकास कब और कितने समय में किया।
नई प्रजाति सीओ 0238 को विकसित करने में तकरीबन दस साल लगे। मैंने करनाल के फार्म में इस पर काम शुरू किया। सन 2000 के आसपास से शुरू किया गया काम 2009 में रंग लाया जब सरकार के स्तर से इसे मान्यता मिली। गन्ने की यह प्रजाति उगाकर किसान बहुत खुश हैं।
- रिसर्च के बाद इस प्रजाति को प्रयोग के तौर पर कहां कहां आजमाया गया?
इस प्रजाति की पैदावार परखने के लिए देश के दस स्थानों पर इसे आजमाया गया। लखनऊ, शाहजहांपुर, मुजफ्फरनगर, पंतनगर, करनाल, लुधियाना, फरीदकोट, श्रीगंगानगर, कोटा आदि अलग अलग जलवायु और मिट्टी वाले क्षेत्र चुने गए। सभी जगह करन फोर की पैदावार गजब की रही।
यह भी पढ़ें :एक्सक्लूसिव : गन्ना के मुद्दे पर विपक्ष बोलने की हैसियत में नहीं- सुरेश राणा
- इस प्रजाति से चीनी का परता भी बढ़ा है या नहीं।
निश्चित रूप से इसमें रस ज्यादा निकलता है। उत्पादन ज्यादा होता है तो परता भी बढ़ा है। आमतौर पर चीनी मिलें कहती हैं कि 0.9 प्रतिशत चीनी का परता बढ़ा है।
इससे चीनी रिकवरी कहीं 14 प्रतिशत, कहीं 13 प्रतिशत और औसतन 12 प्रतिशत है। यह किसी ने सोचा तक नहीं था कि इतना ज्यादा रिकवरी होगी। इस समय देश के तमाम बड़े और गन्ना उत्पादक राज्यों में करन फोर प्रजाति 14.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोई जा रही है।
- इस प्रजाति के गन्ने के साइड इफेक्ट तो नहीं दिखे?
नहीं, अब तक ऐसा नहीं है और आगे भी किसी तरह के साइड इफेक्ट की बात नहीं आएगी। दस साल तक पूरे रिसर्च के बाद ही इसे बोने के लिए मंजूर किया गया है।
- इससे पहले गन्ने की कौन सी प्रजाति किसान बोते रहे हैं और कितने समय से?
इससे पहले गन्ना की अगैती प्रजाति सीओ 64 लोकप्रिय थी। यह 1977 के आसपास विकसित की गई थी लेकिन मैंने 31 साल बाद यह नई प्रजाति तैयार की जो इस वक्त देश में किसानों के बीच धूम मचाए हुए है।
- गन्ने की इस अभूतपूर्व क्रांति पर आपको सरकार की ओर से कोई पुरस्कार या सम्मान मिला?
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैं इस पर कुछ कहना भी नहीं चाहूंगा। इस बात का मुझे कोई मलाल नहीं है। किसानों के बीच, चीनी मिल वालों के बीच या इस तरह के रिसर्च के जानकारों के बीच इसके लिए मुझे जो सम्मान मिलता है, वह कम नहीं है। हमने अपना काम किया है। काम और रिसर्च किसी सम्मान के लिए नहीं किया। जिन्हें सम्मान देना चाहिए, वह तो दे ही रहे हैं, और क्या चाहिए।