कुछ उम्र से थक जाते हैं और कुछ उम्र को थका देते हैं, ऐसे ही उम्र को थका देने वाले दीर्धानुभवी नेता श्री राम नाईक जी से हमने मुलाकात की। Newstrack पर आज पढ़ते हैं, उन्हीं की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी।
85 + की उम्र लेकिन आज भी वे सुबह से ही अपने गोरेगाँव स्थित कार्यालय में आकर बैठ जाते हैं। आम जन मानस आज भी उनके पास अपने काम, अपनी समस्यायें लेकर उसी आशा, उसी उम्मीद के साथ आते हैं, जैसे कि पहले कभी आते रहे होंगे।
संक्षिप्त परिचय : राम नाईक
16 अप्रैल, 1934 में जन्मे राम नाईक बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। 1959 में उन्होंने भारतीय जनसंघ में एक साधारण कार्यकर्त्ता के रूप में शामिल होते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1969 में वे भारतीय जनसंघ में मुंबई क्षेत्र के संगठन मंत्री बने और 1974 तक वे इस पद पर बने रहे। आपात काल देखा, 1978 से 1980 तक जनता पार्टी में मुंबई अध्यक्ष रहे। भारतीय जनता पार्टी बनी और वे उसके लिए भी तीन बार 1980, 1983 एवं 1991 में मुंबई अध्यक्ष बने। महाराष्ट्र विधानसभा में मुंबई के बोरीवली क्षेत्र से उन्होंने चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार 1978, 1980 एवं 1985 में वे विधायक चुने गए। आगे चलकर 1989 से 2004 तक लगातार पाँच बार वे उत्तर मुंबई लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे। अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में 1999 से 2004 तक वे केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे। 2005 से 2014 तक वे भारतीय जनता पार्टी की विभिन्न समितियों एवं प्रकोष्ठों का नेतृत्व किया। 25 सितम्बर, 2013 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती के दिन उन्होंने चुनावी राजनीति से निवृत्ति की घोषणा कर दी।
इस बीच मई, 2014 में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में आ चुकी थी। 22 जुलाई, 2014 को राम नाईक जी को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया। तब से 28 जुलाई, 2019 तक वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बने रहे और इस दौरान उन्होंने प्रदेश पर अपनी एक जबरदस्त छाप छोड़ी। इस दौरान उन्होंने ऐसे बहुत से कदम भी उठाये जो एक राज्यपाल के तौर पर उनकी भूमिका को अमिट बनाये रखती है। आज भी उत्तर प्रदेश के नाम पर उनकी बाँछे खिल सी जाती हैं। उत्तर प्रदेश में उनके द्वारा किये गए कार्यों के साथ साथ हम उनके राजनीतिक सफर के सभी पहलुओं को छूने की कोशिश करेंगे इस साक्षात्कार में।
राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत व्यक्तित्व
बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सानिध्य का ही असर था कि, राम नाईक राष्ट्र सेवा एवं राष्ट्र प्रेम की भावना से सम्पूर्ण जीवनकाल में ओत प्रोत रहे। राम नाईक हमसे बात करते हुए कहते हैं, 'जन गण मन' और 'वन्दे मातरम्' यह दो ऐसे गीत हैं, जिन्हें प्रत्येक भारतीय सम्मान देता है, दुनिया के चाहे किसी भी कोने में यह गीत गूँजे, वे सिर्फ और सिर्फ भारतीय अस्मिता का अहसास दिलाते हैं।
संसद में राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत गवाया किसने : राम नाईक ने
आज भारतीय लोकसभा एवं राजयसभा के हर सत्र की शुरुआत में राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ और सत्र के समापन में राष्ट्र गीत ‘वन्दे मातरम्’ गाया जाता है। आपको शायद मालुम नहीं होगा कि इस परम्परा की शुरुआत का श्रेय राम नाईक जी को ही जाता है। 1991 में संसद में प्रश्नकाल के दौरान इस संदर्भ में एक प्रश्न उठा कि कुछ शैक्षणिक संस्थानों में राष्ट्र गान एवं राष्ट्र गीत क्यों नहीं गाया जाता है ? राम नाईक जी ने इन्हीं प्रश्नों को आधार बनाकर सदन में इस विषय पर चर्चा की माँग रखी। 9 दिसंबर, 1991 को इस विषय पर लोकसभा में चर्चा हुई। राम नाईक बताते हैं कि इस चर्चा के दौरान मैंने सदन से आह्वाहन किया कि देश के सर्वोच्च लोकतान्त्रिक मंच के प्रतिनिधि होने के नाते संसद को इस विषय में उदासीनता समाप्त करने के लिए तथा वन्दे मातरम् एवं जन गण मन की प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। इस विषय का अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं ने समर्थन किया। राम नाईक जी ने चर्चा के बाद भी इस विषय को छोड़ा नहीं। उन्होंने संसद के कामकाज के सम्बन्ध में नियम बनाने वाली सामान्य प्रयोजनों वाली समिति में भी इस विषय को रखा। अंततः सामान्य प्रयोजन समिति ने यह निर्णय लिया कि संसद सत्र की शुरुआत राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ से हुआ करेगी, जबकि समापन राष्ट्र गीत ‘वन्दे मातरम्’ से हुआ करेगा। निर्णय के अनुसार भारत की 10वीं संसद ने अपने 5 वें सत्र में 24 नवंबर, 1992 को पहली बार जन गण मन से सत्र का आरम्भ हुआ और 23 दिसंबर, 1992 को इस सत्र का समापन वन्दे मातरम् से हुआ।
महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रगान पर सरकार को बधाई
यह विषय उनके ह्रदय के कितना करीब रहा है, इसकी ताजा मिसाल अभी हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के एक के बाद मिली। हाल ही में जब महाराष्ट्र में राष्ट्र गान के संदर्भ में एक सकारात्मक निर्णय उन्हें नजर आया, तो वे विपक्ष की सरकार का अभिनन्दन करने से भी पीछे नहीं रहे।
महाराष्ट्र सरकार के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में होने वाले सभी कार्यक्रमों के प्रारम्भ में राष्ट्रगान गाया जाएगा। महाराष्ट्र सरकार के इस सकारात्मक कदम पर राम नाईक ने त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत को धन्यवाद प्रेषित किया। राम नाईक जी ने Newstrack से बात करते हुए बताया कि इस सकरात्मक कदम के लिए मैंने उदय सामंत को टेलीफोन पर धन्यवाद प्रेषित किया और उनको एक अभिनन्दन पत्र भी अपनी ओर से भेजा। मैंने उन्हें सलाह यह भी सलाह दी कि महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में होने वाले सभी कार्यक्रमों का समापन यदि राष्ट्र गीत वन्दे मातरम् से होगा, तो यह और भी अच्छा होगा। हमारी आने वाली पीढ़ियों का राष्ट्र प्रेम से सराबोर होना अति आवश्यक है।
सांसद निधि की वजह : राम नाईक
राम नाईक जी के राजनीतिक जीवन की उपलब्धियों की सूचि में अन्य बहुत सी उपलब्धियां भी हैं। आज कल हम जिस सांसद निधि या विधायक निधि के बारे में अक्सर सुनते रहते हैं। भारतीय राजनीति को यह भी उन्हीं की ही देन है। राम नाईक इस सन्दर्भ में बात करते हुए बताते हैं, देश, राज्य या महापालिका के नियोजन में मैंने कई बार यह महसूस किया था कि जो छोटे छोटे जनहित के काम कभी कभार कोष न होने के कारण संपन्न नहीं हो पाते थे। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने सांसद निधि की संकल्पना की और 14 जनवरी, 1990 को तत्कालीन वित्तमंत्री प्रोफेसर मधु दंडवते के समक्ष इसे रखा। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए संसद के भीतर एवं बाहर मैंने लगातार प्रयास किये। अंततः 23 दिसंबर, 1993 को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संसद में इस योजना की घोषणा की और इसे लागू किया गया। इस योजना द्वारा हर सांसद को अपने क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए एक करोड़ रूपये की योजना बनाने का अधिकार प्राप्त हुआ। मौजूदा समय में सांसद निधि बढ़ाकर 5 करोड़ कर दी गई है। इसी निर्णय के आधार पर ही आगे चलकर विधायक निधि एवं पार्षद निधि की भी व्यवस्था की गई।
अनूठा राजनीतिक सफर
यह राम नाईक जी के कार्यों का ही प्रतिफल था कि जब वे अपने क्षेत्र से विधायक चुने गए तो लगातार तीन बार चुने गए और इसी प्रकार जब सांसद बने तो लगातार पाँच बार बने। अपने क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का कोई दूर दूर तक सानी नहीं है और आज भी उनकी लोकप्रियता का ही प्रभाव है कि कोई पद न होने के बावजूद उनके पास कामों एवं समस्यायों के लिए लोगों का तांता लगा रहता है।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में
उत्तर प्रदेश में राज्यपाल बनने के बाद उनका कार्यकाल भी पूरे पाँच साल तक रहा, जबकि राज्यपालों के इतिहास को आप देखेंगे तो ऐसा बहुत ही कम राज्यपालों के साथ होता रहा है। वो निर्णय लेने में सदैव से आक्रामक रहते रहे हैं, लेकिन अपनी आक्रामकता में भी वे संतुलन बना के रखते थे, जिससे कि कोई व्यर्थ का विवाद न पैदा हो। उत्तर प्रदेश में उनके राज्यपाल का कार्यकाल भी ऐतिहासिक रहा। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने कार्यकाल के दौरान बड़े बदलाव किये। उन्होंने उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में दीक्षांत समारोहों को नियमित करवाया। दीक्षांत समारोहों में पहनी जाने वाली अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही पाश्चात्य पोशाकों का उन्होंने भारतीयकरण करवाया। अब वहां दीक्षांत समारोहों में अंग्रेजों के जमाने के गाउन की बजाय भारतीय पोशाकों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। उनके कार्यकाल के दौरान आम जान मानस के लिए राज भवन के दरवाजे सदैव खुले रहे।
राम नाईक जी बताते हैं कि अपने कार्यकाल के दौरान मुझे लगभग 2,21,641 नागरिकों से पत्र प्राप्त हुए, लगभग 30,589 नागरिकों से मैंने मुलाकात की और इस दौरान लगभग 1,866 सार्वजानिक कार्यक्रमों में में मैंने हिस्सा लिया लिया।
योगी आदित्यनाथ एवं उत्तर प्रदेश की राजनीति पर
Newstrack की ओर से हमने उनसे यह भी पूछा कि उनके कार्यकाल के दौरान उनकी वहां की सरकारों से सम्बन्ध कैसे रहे। तो उनका जवाब था कि मैंने तो अपने कार्यकाल में सपा और भाजपा दोनों ही सरकारों के साथ काम किया है, मेरे दोनों ही सरकारों से सम्बन्ध अच्छे रहे।
हाँ जहाँ तक योगी जी की बात है तो उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने की ओर बढ़ा है। योगी जी के सक्षम प्रशासन ने अपराध पर लगाम लगाई है, विकास कार्य चल रहे हैं। इन्वेस्टर समिट के माध्यम से 4.59 लाख करोड़ रुपयों का निवेश प्रदेश में आया। वर्तमान समय में भी देश का सबसे बड़ा डिफेन्स एक्सपो वहाँ हो रहा है। मुझे तो ऐसा ही महसूस हुआ है कि योगी आदित्यनाथ जी के रूप में उत्तर प्रदेश को एक उत्कृष्ट मुख्यमंत्री मिला है। योगी जी दरअसल दीर्धदृष्टि रखने वाले नेता हैं, वो पहले समस्या के मूल में जाते हैं और फिर उस समस्या को सुधरने की कोशिश करते हैं। वो प्रति दिन 15 - 16 घंटे से भी अधिक काम कर रहे हैं, वो मेहनत कर रहे हैं और उत्तर प्रदेश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता बेजोड़ है, पिछले वर्ष कुम्भ के आयोजन का ही उदाहरण ले लीजिये, क्या भव्य आयोजन था। वैश्विक स्तर का इतना बड़ा आयोजन और एक छोटी सी दुर्घटना का भी दाग नहीं। यह उनकी प्रशासनिक क्षमता का जीता जागता उदाहरण है।
सीएए - एनआरसी - शाहीनबाग पर
चलते चलते हमने राम नाईक जी से केंद्र से सम्बंधित तीखे सवाल भी किये, जिनका उन्होंने बहुत ही संजीदगी से जवाब दिया। हमारे सवाल निश्चित रूप से मौजूदा घटनाक्रमों सीएए - एनआरसी विवाद और शाहीनबाग में चल रहे प्रदर्शनों पर थे। उन्होंने इस प्रश्न का जवाब बहुत ही संयत रूप से देते हुए कहा कि जहाँ तक सीएए - एनआरसी की बात है, तो एक कानून जो एकदम लोकतान्त्रिक ढंग से संसद में बाकयदा पास हुआ है। उसका अलोकतांत्रिक रीति से विपक्ष द्वारा विरोध मेरी समझ के बाहर है। इस विषय में विपक्ष भ्रम और केवल भ्रम फैला रहा है। यह क़ानून देश के किसी भी मौजूदा नागरिक को प्रभावित ही नहीं करता है, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। यह कानून मात्र पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये शरणार्थियों से सम्बंधित है। तब भला कैसे इस कानून से हिंदुस्तान का मुसलमान या अन्य कोई नागरिक प्रभावित हो सकता। दरअसल विपक्ष भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान है और वह अनाप शनाप आरोप गढ़ने और भारत की जनता को दिग्भ्रमित करने की फिराक में है।
शाहीनबाग में भीड़ इकठ्ठा करके भला विपक्ष क्या सिद्ध करना चाहता है? इससे उनकी ताकत नहीं, बल्कि कमजोरी स्पष्ट रूप से नजर आती है। शाहीनबाग जैसे आंदोलन खड़ा करके क्या विपक्ष दिल्ली राज्य की जनता से नाइंसाफी नहीं कर रहा है। आप देश की राजधानी की एक सड़क पर यूँ मजमा लगाकर आखिर साबित क्या करना चाहते हैं? इससे न तो देश खुश है और न ही दिल्ली की जनता और इसका नतीजा भी विपक्ष को एक न एक दिन भुगतना ही पड़ेगा।
इस अंतिम सवाल के जवाब के साथ राम नाईक जी ने Newstrack की टीम को विदा किया और कतार में बैठे आम जन मानस की सुनने सुनाने में पुनः व्यस्त हो गए।