Pawan Jaiswal Death: सरहद के बाहर लड़ी जा रही लड़ाइयों के शहीद हैं पवन
Journalist Pawan Jaiswal: नमक रोटी वाले पत्रकार पवन जायसवाल की मौत हो गई। वह कैंसर से जिंदगी की जंग हार गए।
Journalist Pawan Jaiswal Death: आज मिर्ज़ापुर के हमारे साथी ब्रजेंद्र दुबे ने एक ब्रेकिंग खबर दे कर हमें भीतर तक हिला दिया। खबर - कैंसर की जंग हार गए पत्रकार पवन जायसवाल (Journalist Pawan Jaiswal)। नमक रोटी वाले पत्रकार पवन जायसवाल की हुई मौत। कैंसर से पीड़ित पवन जायसवाल का वाराणसी में चल रहा था इलाज। भोर में तड़के सुबह हुई मौत। प्राथमिक स्कूल में बच्चों को नमक रोटी परोसने की खबर दुनिया को दिखाने वाले पत्रकार अपनी जीवन की जंग हारा।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने नमक रोटी वाली खबर की जाँच के समय पवन को ईमानदारी का प्रमाणपत्र दिया था। ज़िला प्रशासन को चेतावनी दी। हालाँकि जब नमक रोटी वाली खबर पवन ने दिखाई थी तब उनकी जाति व जमात ने इनका साथ नहीं दिया था। फिर भी पवन लड़ते रहे। उनके जाति जमात के साथियों को सरकार की कही परोसने के सिवाय वक्त ही नहीं मिला। उनकी जाति जमात ने तो प्रधानों की लड़ाई में पवन को हस्तक्षेप करने की जगह अलग रहने की नसीहत तक दे डाली।
वैसे तो पत्रकारिता से निष्पक्षता नदारद हो गयी है। सिर्फ़ पक्ष है। सरकार का पक्ष। विरोध का पक्ष। सरकार के पक्षों हमें नाहक भय व आतंक दिखता है। सरकार के विपक्ष में नाहक आक्रोश नज़र आता है। इन्हीं दोनों ध्रुवों में बंट गयी है समूची पत्रकारिता। इसे ही कहा बोला जा रहा है पत्रकारिता। पवन यह करने वालों में नहीं थे। इसलिए उनकी जगह भी यहाँ अब नहीं बची थी।
निडर थे पवन जायसवाल
पवन के खिलाफ ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल ने जाँच बैठाई। तत्कालीन सीडीओ प्रियंका ने जाँच किया, पवन के खिलाफ मुक़दमा दर्ज किया गया। पीसीआई ने हस्तक्षेप किया। पवन को क्लीन चिट मिली। ज़िला प्रशासन को चेतावनी। पवन जनसंदेश अख़बार में ग्रामीण संवाददाता थे। उन्हें स्टिंग खबरें करने का शौक़ था। वे खबरें जो चौंकाती हो, वे खबरें जो पर्दा उठाकर सच दिखातीं हों ऐसी खबरें करना पवन का शग़ल था। वह स्टिंग पत्रकारिता के मास्टर थे। उनके पास तक़रीबन तीस तरह के कैमरे थे। पर ऐसी खबरों की ज़रूरत मीडिया में रही नहीं। इसलिए पवन को किसी बड़े प्लेटफ़ॉर्म पर कहीं जगह नहीं मिली। पवन ने कभी टेंशन नहीं लिया। मस्त थे। निडर थे।
दांत निकलवाना बना कैंसर का कारण
पवन ने एक झोला छाप डॉक्टर से दांत उखड़वाया। उसी के बाद से सेहत को लेकर दिक़्क़तों का सिलसिला शुरू हुआ। बारह सितंबर को आई जाँच रिपोर्ट से पता चला कि पवन कैंसर के शिकार हो गये हैं। पवन के पास पैसे नहीं थे कि इलाज करा सकें। ज़िले के नये ज़िलाधिकारी प्रवीण कुमार आये तो उन्होंने पचास हज़ार रूपये की सहायता राशि प्रदान किया। सेकेंड आपरेशन में पवन की तबीयत ख़राब हो गयी थी। तो दवा ख़रीदने के पैसे उनके पास नहीं थे। तो उन्होंने अपने कुछ साथियों को मैसेज किया था कि दो लाख रूपये की व्यवस्था करवा दे। वह उन दिनों बोल नहीं पा रहे थे। इसलिए मैसेज पर ही बातें करते थे। जिसके बाद पत्रकार रोहिणी सिंह समेत कई बड़े पत्रकारों ने पैसे जुटाने में लग गए।
किट्टू नाम के वेबसाइट ने पवन के इलाज के लिए पैसे जुटाने का कैंपेन चलाया। तक़रीबन दस लाख रूपये इकट्ठे हुए। इसमें सपा के अखिलेश यादव ने एक लाख, आप के संजय सिंह ने एक लाख दिया है। सपा के राजीव राय ने बीस हज़ार रूपये दिये थे। कई पत्रकारों ने भी मदद की थी। पैसे की पूरी व्यवस्था हो गई थी, पर किसे पता था कि पवन को ये कोशिशें बचा नहीं पायेंगी।
आर्थिक रूप से बेहद कमजोर
पवन एक बेहद कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से थे। पिता किताब की गुमटी घर में खोले हैं। पवन के परिवार में दो बच्चे हैं, पत्नी, माता पिता, छोटा भाई व बहन। बहन बीकाम की पढ़ाई कर रही थी। पर पवन के इलाज में खर्च हो रहे पैसों के नाते घर की तंगी ने बहन की पढ़ाई बंद करवा दी। लार्ड वायर्ड ने कहा कि भगवान जिन्हें प्यार करता है। वे जवान ही मर जाते हैं। पवन केवल 38 वर्ष की छोटी उम्र के थे। पवन में जो हुनर था, जो संकल्प था। उसकी ज़रूरत यहाँ बची भी नहीं थी। पवन कई छोटी बड़ी लड़ाईयों के शहीद हैं। जो सरहद पर नहीं बल्कि हमारे आपके बीच लड़ी जा रही है। पवन इस लड़ाई को अधूरी छोड़ कर गये। जिन्हें लड़ना हो वे आगे आये। पहले पवन के परिवार की लड़ाई में हाथ बंटायें।
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