Kanwar Yatra 2022: गंगा जल से रुद्राभिषेक करने पर महादेव पलक झपकते करते हैं मनोकामना पूरी, जानें कावड़ का महत्व
भगवान शिव की कृपा बरसाने वाली पावन शिवरात्रि इस साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानि 26 जुलाई 2022 को मनाई जाएगी। इस दिव शिव भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर शिव मंदिर पर चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं।
Meerut: भगवान शिव शंकर को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए वे देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं। वे कालों के भी काल महाकाल हैं। इनकी कृपा से बड़ा से बड़ा संकट भी टल जाता है। भगवान शिव (Lord Shiv) की साधना के लिए सबसे उत्तम माना जाने वाला पावन श्रावण मास (shravan month) इस साल 14 जुलाई से शुरु हुआ है जोकि 12 अगस्त तक रहेगा। जिसमें कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra 202) की शुरुआत 14 जुलाई से प्रारंभ हुई है। भगवान शिव की कृपा बरसाने वाली पावन शिवरात्रि इस साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानि 26 जुलाई 2022 को मनाई जाएगी। इस दिन हजारों-लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर शिव मंदिर पर चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि गंगा जल से रुद्राभिषेक करने पर महादेव उनकी बड़ी से बड़ी मनोकामना पलक झपकते पूरी कर देते हैं।
हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का महत्व
हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra 202) का बहुत ज्यादा महत्व है। हर साल श्रद्धालु भोलेबाबा को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव (Lord Shiv) को खुश करने के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं। फिर बाद में वो गंगा जल भगवान भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है। इस पूरी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। इस बार कावंड़ियों की संख्या करीब चार करोड़ बताई जा रही है।
कांवड़ बांस से बना होता है। बांस शुद्ध माना जाता है। इस बांस के दोनो छोर पर कलश में कांवड़िए गंगाजल भर कर चलते हैं। कांवड़ को कई बार विशेष रूप से सजाया भी जाता है। ये कांवड़ कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता है। क्योंकि जमीन पर रखते ही ये खंडित हो जाता है। इसलिए कांवरिये, अधिकतर कांवड़ को कंधे पर या किसी जगह पर टांग कर रखते हैं। बता दें कि कांवरिये अपने स्थानीय दूरी के हिसाब से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। क्योंकि कंवड़ियों को यात्रा पैदल ही करनी होती है, इसलिए वह निर्धारित समय पर पहुंचने और लौटने का समय खुद ही तय करते हैं। इसलिए अलग-अलग समय पर कांवड़िए अपनी यात्राएं करते हैं।
इन स्थानों से कांवरिये भरकर लाते हैं गंगाजल
हिंदू तीर्थ स्थानों से ही गंगाजल लेने कांवड़िए आते हैं। हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर आदि स्थानों से कांवरिये गंगाजल भरकर अपने-अपने स्थानीय शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए आपस में एक दूसरे को भोले नाम से ही बुलाते हैं, कोई किसी का नाम नहीं लेता। कांवड़ यात्रा यदि मनौती के साथ की जा रही है तो नंगे पांव की जाती है। कांवड़िए बिना शिवजी को जल चढ़ाए वापस घर नहीं जा सकते। गंगाजल चढाने के बाद ही घर जाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कंवरिये व्रत का पालन करते हैं। इस दौरान अन्न और नमक का सेवन नहीं किया जाता है। यदि कंधे पर कांवड़ है तो कांवड़िए जल का ग्रहण नहीं कर सकते। ऐसा करने से कांवर में रखा गंगा जल जूठा माना जाता है।
तीन तरह की होती है कांवड़ यात्रा
भगवान शिव की साधना से जुड़ी पावन कांवड़ यात्रा में (Kanwar Yatra 2022) समय के साथ कई बदलाव आए हैं. जिसे शिव भक्त अपनी आस्था, समय और सामर्थ्य के अनुसार करता है। इनमें तीन तरह की कांवड़ यात्रा अभी प्रचलन में है।
- पहली और सबसे ज्यादा प्रचलन में खड़ी कांवड़ है, जिसमें शिव भक्त अपने आराध्य भगवान शंकर के लिए जल इकट्ठा करने के वास्ते कांवड़ को अपने कंधे पर लेकर पैदल यात्रा करते जाते हैं। खड़ी कांवड़ को सबसे कठिन कांवड़ यात्रा माना जाता है। क्योंकि इस कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को कहीं जमीन पर नहीं रखा जाता है। यात्रा के दौरान यदि किसी कांवड़िए को भोजन या आराम करना होता है तो वह इसे किसी दूसरे कांवड़िए को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर टांग देता है। खड़ी कांवड़ यात्रा में एक कांवड़िए की मदद के लिए कई दूसरे सहयोगी साथ चलते हैं।
- दूसरे नम्बर पर डाक कांवड़ है। इसमें शिव भक्त अपने आराध्य भगवान शिव के जलाभिषेक वाले दिन तक लगातार बगैर रुके चलते हैं। इस यात्रा में भोले के भक्त शिवधाम की दूरी एक निश्चित समय में शिव भजन पर गाते-झूमते हुए तय करते हैं।
- तीसरी झांकी वाली कांवड़ है। आज के दौर में में भगवान शिव की भव्य झांकी बनाकर कांवड़ यात्रा का प्रचलन बढ़ा है। झांकी वाली कांवड़ में कांवड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजाकर गाते-बजाते हुए इस पावन यात्रा को पूरी करते हैं। इस बार मेरठ की बुलडोजर कावंड़ काफी चर्चा में है। बुलडोजर कावंड़ को मेरठ के शिवभक्तों का जत्था लेकर हरिद्वार गया है।
किसने किया भगवान शिव का जलाभिषेक
कांवड़ यात्रा समुद्र के मंथन से जुड़ी मानी गई है। कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था। कहा जाता है जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष ग्रहण कर लिया तो वे नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हो गए। तब त्रेता युग में रावण ने जो कि भगवान शिव का सच्चा भक्त था। शिव का ध्यान कर कांवड़ में गंगाजल भर कर लाया और उन पर अर्पित किया। इससे शिवजी नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बाहर आ गए थे।