करगिल दिवस: इस किसान के बेटे की कुर्बानी को यादकर नम हो जाती हैं आँखें
कारगिल दिवस पर आज देश के सपूतों को याद किया जा रहा। इन्हीं जवानों में एक नाम राजेंद्र यादव का भी है। किसान परिवार में जन्मे शहीद राजेंद्र में देश प्रेम का जज्बा ऐसा कि बाहरवीं कक्षा पास कर वो सेना में भर्ती हुए और देश के लिए जान कुर्बान कर गए।
रायबरेली: कारगिल दिवस पर आज देश के सपूतों को याद किया जा रहा। इन्हीं जवानों में एक नाम राजेंद्र यादव का भी है। किसान परिवार में जन्मे शहीद राजेंद्र में देश प्रेम का जज्बा ऐसा कि बाहरवीं कक्षा पास कर वो सेना में भर्ती हुए और देश के लिए जान कुर्बान कर गए।
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रायबरेली के डलमऊ तहसील के मतवालीपुर में पैदा हुए राजेंद्र यादव 1984 में सेना में भर्ती हुए थे। राजेंद्र यादव कुमायूं रेजिमेंट में नायक के पद पर तैनात थे। 6 सितंबर 1999 को उनकी मौत की खबर जब गांव पहुंची थी तो एक कोहराम बरपा हो गया था। राजेंद्र की पूरी पढ़ाई ग्रामीण अंचल से ही पूरी हुई। 1984 में 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजेंद्र सेना में भर्ती हो गए। सेना में भर्ती होने के तीन साल बाद 1987 में उनकी शादी ललिता देवी से हो गई। राजेन्द्र यादव के शहीद होने की खबर मिली तब छोटा बेटा महज 3 वर्ष का था। राजेन्द्र के दो बेटे व एक बेटी है। राजेन्द्र के न रहने के बाद उनकी पत्नी ललिता देवी ने घर की पूरी जिम्मेदारी अपनी कंधों पर ले ली। साल 2013 में उन्होंने अपनी बेटी की शादी भी करा दी। वहीं, बड़ा बेटा अतुल यादव मर्चेंट नेवी में है जबकि सबसे छोटा बेटा अभी स्नातक की पढ़ाई कर रहा है।
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जब राजेन्द्र यादव शहीद हुए तो उस समय उनके अपने व्यक्तिगत परिवार की कच्ची खेती थी। पत्नी एक घरेलू महिला थी। पूरी तरह टूट चुकी ललिता को अपना व अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा था, लेकिन उस समय उनके ससुराल व मायके पक्ष ने ललिता देवी व उनके बच्चों को संभाला। कुछ समय बीतने के बाद ललिता देवी अपने बच्चों को लेकर शहर आ गयी और सरकार द्वारा दी गयी राशि से अपना निजी घर बनवाकर रहने लगी। यही रहकर ललिता ने अपने बच्चों की परवरिश व पढ़ाई लिखाई करवाई।
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ललिता के मन मे पति के न होने की कसक है। उनको याद करके ललिता आज भी फफक कर रो पड़ती है। ललिता कहती है कि अब केवल उनकी यादों और बच्चों के साथ ने ही उन्हें जिंदा रखा है। ललिता देवी ने कहा, 'राजेन्द्र यादव के न रहने से मेरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। मेरे बच्चे बहुत छोटे थे। मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था। क्या करूं, कैसे करूं कैसे पालूं। किसी तरह बच्चों को पाला। किसी तरह बच्चों को पाला आज भी पाल रहे हैं। बड़ा बेटा मेरा मर्चेंट नेवी में है। आज भी उनके न रहने के गम हमें उतना ही सता रहा है।
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सरकार की तरफ से जब भी कार्यक्रम होता है हमको बुलाते हैं, लेकिन हमारे लिये तो रोजाना शहीदी दिवस होता है। हमको तो प्रति दिन सोते जागते उठते बैठते उनका गम ही सताता है। उस समय जब घटना हुई तो सरकार ने काफी वादे किए थे, लेकिन पूरे नहीं किए। जिलाधिकारी ने हमको बताया कि 5 बीघा जमीन दी जाएगी लेकिन आज भी हमको एक बिश्वा जमीन नही मिली है।'