अगर फसलों को टिड्डियों के हमले से बचाना चाहते हैं तो करें ये उपाय

कोरोना वायरस जैसी भयानक महामारी से जहां पूरा देश जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ टिड्डियों का भी हमला जारी हो चुका है और पूरे विश्व के साथ-साथ अब उत्तर प्रदेश में भी टिड्डियों ने हमला शुरू कर दिया है।

Update:2020-05-30 14:17 IST

कानपुर: कोरोना वायरस जैसी भयानक महामारी से जहां पूरा देश जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ टिड्डियों का भी हमला जारी हो चुका है और पूरे विश्व के साथ-साथ अब उत्तर प्रदेश में भी टिड्डियों ने हमला शुरू कर दिया है।

टिड्डियों के इस हमले से बचने के लिए प्रदेश सरकार तरह तरह के उपाय कर रही है। वही कानपुर के कृषि विश्वविद्यालय के कीट विभाग के प्रोफेसर डॉ. धर्मराज सिंह भी किसानों को इस भयानक आपदा से निपटने के लिए के उपाय बताए हैं।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर धर्मराज सिंह ने बातचीत करते हुए कहा कि विशेषज्ञों द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारतीय कृषि में टिड्डी कीट दल का प्रकोप एक महामारी बीमारी की तरह एक चुनौती होगी।

उन्होंने कुछ समय पहले ही भयानक कीटों के बारे में एडवाइजरी जारी करी थी।जिस तरीके से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसको देखते हुए टिड्डियों का आतंक उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिलेगा।

वही उनका कहना है कि रेतीली और मरुस्थली जगह पर टिड्डियां एक साथ लाखों अंडे जमीन के अंदर देती हैं जिससे लाखों की संख्या मे टिड्डियां उत्पन्न होती हैं और यह टिड्डियां किसानों की फसल हरे पेड़ पौधे वह जहां पर भी बैठते हैं।

उन फसलों को पूरी तरीके से नष्ट कर देते हैं लाखों की संख्या में टिड्डियों का झुंड एक साथ इधर से उधर घूमते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किसानो की फसल के लिए कितना ज्यादा हानिकारक हो सकते हैं।

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प्रकोप जल्दी आ गया

उन्होंने बताया कि टिड्डी दल का प्रकोप प्रायःजुलाई से अक्टूबर माह में होता है परंतु इस वर्ष में अप्रैल-मई में राजस्थान में टिड्डी दल का प्रकोप हो गया है जिससे भारी मात्रा में फसलों को नुकसान हो रहा है।

पूर्वी अफ्रीका से हुई है टिड्डी दल की उत्पत्ति

डॉक्टर धर्मराज सिंह ने बताया कि टिड्डी कीट दल की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका से हुआ जहां पर मक्का,ज्वार एवं गेहूं की फसल को भारी मात्रा में हानि पहुंचाया है।इस वर्ष यह टिड्डी दल भारत-पाकिस्तान सीमा पर मध्य अप्रैल के महीने में देखा गया तथा पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी के महीने में टिड्डी दल का प्रकोप देखा गया है।

150 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं एक दिन में

डॉ सिंह ने बताया कि टिड्डी दल एक स्थान से दूसरे स्थान पर समूह में उड़ते हुए 1 दिन में लगभग 150 किलोमीटर की दूरी तय कर नए स्थानों पर पहुंच जाते हैं तथा किसानों की फसल खा कर नष्ट कर देते हैं अतः इस टिड्डी दल को नियंत्रित करना आवश्यक है। जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के झांसी एवं ललितपुर जनपद के कुछ भागों में कीट दल का प्रवेश हो गया है।

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रात्रि में करें ध्वनि उपकरणों का प्रयोग -

डॉक्टर धर्मराज सिंह ने किसान भाइयों को टिड्डी दल से अपनी फसलों को बचाव के लिए सलाह एवं जानकारी देते हुए बताया कि यदि टिड्डी कीट दल समूह में झुंड के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर अचानक आ जाते हैं जिसके 1 किलोमीटर क्षेत्र के झुंड में लगभग 400 लाख टिड्डी होते हैं।

जो कि एक ही समय में खड़ी फसल में रात्रि के समय तूफान की तरह झुंड में आकर बैठते हैं और सारी फसल खाकर नष्ट कर देते हैं एवं सुबह के समय पुनः दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान कर जाते हैं अतःइनके बचाव हेतु किसान एकत्रित होकर ऐसी स्थिति में थाली, ढोलक, शंख, डीजे आदि की ध्वनि उत्पन्न करके इन भयानक टिड्डियों के आतंक से बचा जा सकता है।

घोल बनाकर करें छिड़काव

डॉ सिंह ने टिड्डी कीट को रासायनिक कीटनाशक से नियंत्रण के लिए बताया कि टिड्डियों खेतों में बैठ गए तो पूरी फसल नष्ट कर देते हैं एक कीटनाशक है ।क्लोरपीरिफॉस बी ईसी का आता है।

जिसे करीब 2 लीटर 4 बीघा की जमीन में 500 से 600 लीटर पानी में अटैक के बाद खेतों में इसका छिड़काव करना चाहिए। और मेलाथियान 50 Ec 1.85 लीटर में लगभग 2 लीटर मेलाथियान 50 Ec का आता है इसको भी 500 से 600 लीटर पानी में तुरंत छिड़काव करने की जरूरत पड़ती है।

जिससे पत्तियों जो खाने से वह मर जाती है हैं। जिनका छिड़काव करके इन टिड्डियों के द्वारा होने वाले नुकसान से किसान अपनी फसल को बचा सकता है।

रिपोर्ट: अवनीश कुमार

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