आगराः हरे रामा हरे कृष्णा, रामा रामा हरे हरे की गूंज, जग के खेवनहार को एक पग बढ़ाने के लिए भक्तों में होड़ मची हुई थी। जैसे ही भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ में विराजमान हुए तो एक झलक पाने के लिए देशी-विदेशी भक्त उमड़ पड़े। चारो ओर से जय जगन्नाथ का जयघोष होने लगा। भक्तों ने रावतपाड़ा से संजय प्लेस तक भगवान के रथ को रस्सियों से खींचा। भगवान का रथ खिंचने के लिए हर कोई आतुर दिखाई दिया।
22 फीट ऊंचे रथ में हुए भगवान विराजमान
रथयात्रा महोत्सव समिति द्वारा आयोजित भगवान जगन्नाथ रथयात्र का शुभारंभ बुधवार शाम को मन: कामेश्वर मंदिर रावतपाड़ा से हुआ। कोलकाता से आए कारीगरों द्वारा तैयार 26 फीट लंबे, 14 फीट चौड़े और 22 फीट ऊंचे रथ में विराजमान होकर भगवान जगन्नाथ जब चले तो भक्त टकटकी लगाकर देखते ही रह गए। पीले वस्त्रों में महिलाएं समूह में नृत्य कर रही थीं, तो देस-विदेश से आए दर्शक भी झूम रहे थे।
भजन सम्राट के ऊजनों पर झूमें लोग
साथ में इस्कॉन की गाजियाबाद, गुडगांव, इलाहाबाद, वृंदावन, कानपुर से आई कीर्तन मंडलियां भजन गाती हुए चल रही थीं। यहां सजे मंच पर ओडिसा से आए अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों ने कथक, कुचिपुड़ी डांस की प्रस्तुतियां दी। उसके बाद भजन संध्या हुई, जिसमें भजन सम्राट गोविंद भार्गव के भजनों पर सब झूमने लगे। वहीं दिव्य छप्पन भोग भी सजा। पंजाब से आया बैंड, नासिक का प्रसिद्ध ढोल बैंड, शिकागो से आया इस्कान का विश्व विख्यात ब्रज वधु बैंड आकर्षण का केंद्र रहे। बैंड की धुनों पर भक्तों ने जमकर नृत्य किया।
और कहां निकलती है रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ के ऱथयात्रा की परंपरा हजारों साल पुरानी है। यह परंपरा पहले सिर्फ पुरी में ही निभाई जाती थी। भगवान जगन्नाथ की यात्रा पुरी के अलावा धर्म नगरी वाराणसी में हर साल निकलती है। वहां पर भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। वहां यह यात्रा तीन दिन तक चलती है। भगवान जगन्नाथ की इस यात्रा को रथयात्रा का मेला कहते हैं।