Lucknow University: 40 प्रतिशत किशोर मौका देखकर लेते हैं बदला, एलयू के शोध में खुलासा, सामने आई ये बातें

Lucknow University: एलयू के मनोविज्ञान विभाग में सहायक आचार्य डॉ. मानिनी श्रीवास्तव ने बताया कि यह शोध दिल्ली-एनसीआर में 15 से 19 वर्ष की आयु के 475 किशोरों पर किया गया। किशोरों में आक्रामकता को प्रभावित करने वाले सामाजिक और संज्ञानात्मक कारकों के बारे में भी पता किया गया।

Report :  Abhishek Mishra
Update: 2024-07-31 10:45 GMT

Lucknow University: एलयू के मनोविज्ञान विभाग में सहायक आचार्य डॉ. मानिनी श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में डॉ. इलिका गुहा ने किशोरों में आक्रामकता और मानसिक स्वास्थ्य: एक सामाजिक संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य विषय पर शोध किया। जिसमें पता चला है कि 40 फीसदी किशोरों में पूर्वनिर्धारित आक्रामकता दिखी है। यह किशोर मौका देख कर बदला लेते हैं। पूर्वनिर्धारित आक्रामकता या गुस्सा दिखाने वाले किशोर आवेगी आक्रामकता वाले किशोरों की अपेक्षा दिमागी रूप से अधिक मजबूत दिखे। उनके अंदर भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण पाया गया। जबकि 60 प्रतिशत से अधिक किशोरों में आवेगी आक्रामकता देखी गई है।

475 किशोरों पर किया शोध

एलयू के मनोविज्ञान विभाग में सहायक आचार्य डॉ. मानिनी श्रीवास्तव ने बताया कि यह शोध दिल्ली-एनसीआर में 15 से 19 वर्ष की आयु के 475 किशोरों पर किया गया। किशोरों में आक्रामकता को प्रभावित करने वाले सामाजिक और संज्ञानात्मक कारकों के बारे में भी पता किया गया। अध्ययन में यह भी पाया गया कि एकल परिवारों में रहने वाली लड़कियों और किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। जबकि संयुक्त परिवारों में रहने वाले किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य अधिक बेहतर मिला है। यह भी सामने आया कि जिन किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य मध्यम या खराब था, वे सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य वाले किशोरों की तुलना में अधिक आक्रामक थे। जिनका मानसिक स्वास्थ्य सकारात्मक था, उन्होंने बेहतर भावनात्मक और व्यवहारिक नियंत्रण प्रदर्शित किया और अपने माता-पिता से गुस्से के प्रबंधन में बेहतर समर्थन प्राप्त किया। शोध में कहा गया है कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, शैक्षिक पाठ्यक्रम में सामाजिक-भावनात्मक शिक्षण कौशल को एकीकृत करना प्रभावी क्रोध प्रबंधन रणनीतियों के विकास और किशोरों के सामाजिक-भावनात्मक कार्यप्रणाली में सुधार के लिए आवश्यक है।

शोध में सामने आई यह बातें

शोध में कई बातें सामने आई हैं। आवेगी और पूर्व निर्धारित आक्रामकता का उच्च प्रसार दोनों चिंताजनक कारक हैं। जिन्हें तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इसका दीर्घकालिक कार्य प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। किशोरों के लिए माता-पिता की तुलना में साथी अधिक मजबूत समाजीकरण एजेंट होते हैं। लड़कियां लड़कों की तुलना में अधिक मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं की रिपोर्ट करती हैं। संयुक्त परिवार संरचना और माता-पिता की ओर से सहायक समाजीकरण रणनीतियां सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के लिए रक्षात्मक कारक साबित हो सकती हैं। स्कूलों और कॉलेजों में भावनात्मक आदान-प्रदान के संबंध में सहकर्मी समूह प्रशिक्षण स्वस्थ शिक्षण वातावरण के विकास को और बढ़ावा दे सकता है।

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