Plane Crash History in Hindi: जब हवा में दो विमानों की टक्कर से लखनऊ में मच गया था हाहाकार
Plane Crash History in Hindi: रात के लगभग ढाई बजे का समय था जब टेलीप्रिंटर पर एक फ्लैश आया कि चरखी दादरी गांव के ऊपर हवा में दो विमान टकरा गए हैं। जिसमें सभी यात्री मर गए हैं। इसमें कई हजयात्री हैं।
Charkhi Dadri Viman Hadsa Ka Itihas: ये हादसा 12 नवंबर 1996 को हुआ चरखी दादरी में जमीन से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर हुआ था। इस हादसे में सऊदी अरब एयरलाइंस का विमान हरियाणा के चरखी दादरी में वायु में कज़ाखिस्तान एयरलाइंस की उड़ान 1907 से टकरा गया था। इस हादसे में सभी सवार 349 यात्रियों की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन इस हादसे का सबसे दर्दनाक पहलू ये था कि इस हादसे में लगभग 100 लोग लखनऊ और लखनऊ के आसपास के थे। इनमें अधिकांश हजयात्री थे जो घर वापस लौट रहे थे।
ये 12 नवंबर 1996 की रात थी। मैं राष्ट्रीय सहारा में काम करता था। रात के लगभग ढाई बजे का समय था जब टेलीप्रिंटर पर एक फ्लैश आया कि चरखी दादरी गांव के ऊपर हवा में दो विमान टकरा गए हैं। जिसमें सभी यात्री मर गए हैं। इसमें कई हजयात्री हैं। मैंने तत्काल पहल करते हुए अपने संपादक रणविजय सिंह से चर्चा की। उन्हें बताया कि इस हादसे में कई हज यात्री लखनऊ के भी हो सकते हैं इस पर स्टोरी करवा लेनी चाहिए। उन्होंने इस पर कहा वाजपेयी इस समय रात में किससे कहा जाए। फिर बोले क्यों तुम इस पर स्टोरी कर लो। अपने साथ जिसको चाहे उसे ले लो। जो पैसा लगे मैं दिलवा देता हूं। इस पर मैने कहा ठीक है मैं तो रिपोर्टर तो नहीं हूं। लेकिन आप कहते हैं तो कर लेता हूं। मैंने अपने साथ डेस्क पर काम करने वाले अक्षय सिंह चौहान को ले लिया। खैर रात बहुत हो चुकी थी। हम लोग पेज छोड़कर घर के लिए चल पड़े रास्ते में पायनियर सेंटर पर चाय पीने के लिए हम लोग हमेशा रुकते थे। वहां रुके तो अक्षय ने कहा गुरुजी आपने बयाना बहुत मोटा ले लिया है। कल भद्द पिट जाएगी क्या करेंगे। मैने कहा अभी सोएंगे। सुबह सात बजे मिलकर तय करेंगे।
अगले दिन सुबह सात बजे मैने हुसैनगंज में अक्षय को घर से लिया हम लोगों ने फिर पायनियर सेंटर पर चाय पी और आगे बढ़ने पर मंथन शुरू किया। उस दिन किसी अखबार में कोई खास खबर नहीं थी सबने इस घटना को छोटा मोटा छपते छपते लिया था। इस बीच मुझे अपने एक सीनियर साथी जावेद अंसारी का ध्यान आया जो मुझे छोटा भाई मानते थे। मैने उनसे बात की। उन्होंने हमें प्रेस क्लब मिलने बुला लिया। जावेद अंसारी उन दिनों पत्रकारिता में एक बड़ा नाम थे। मैं उनकी बहुत इज्जत करता था। जब उनसे बात हुई तो उन्होंने भी कहा कि गुरुजी ये क्या उठा लिया। मैंने कहा अब इसे छोड़िये ये बताइये काम कहां से शुरू करें। उन्होंने कहा ये कैसे बताएं। बात बात में मैंने पूछा अच्छा जावेद भाई ये बताइये हज यात्रा पर जाने का प्रोसेस क्या है। उन्होंने कहा कि हवाई जहाज से जाते हैं। मैने कहा कैसे जाते हैं उन्होंने कहा एजेंट होते हैं जो बुकिंग कराते हैं। मैने कहा एजेंट कहां मिलेंगे। उन्होंने कहा ये जगह जगह दुकानें खुली हैं हज उमरा यात्रा कराने वालों की। तब अक्षय ने कहा हुसैनगंज चौराहे पर भी एक दुकान है। मैने कहा चलो वहीं से शुरुआत करते हैं।
हम लोग हुसैनगंज पहुंचे अक्षय ने कहा आप ही पूछो मैने कहा कल चरखी दादरी हादसे में आपके कितने लोग थे। उसने कहा तीन मैने कहा नाम पते नोट करा दो। उसने कहा नियम नहीं है रिक्वेस्ट पर उसने दे दिये। फिर हम लोगों ने लखनऊ में एक से दूसरे दूसरे से तीसरे एजेंट के यहां घूमना शुरू किया। शाम तक हमारी लिस्ट लंबी हो गई थी। इसी बीत शाम को हमारे संपादक का फोन आया उन्होंने कहा वाजपेयी क्या हुआ कहां हो, मैने कहा सर बैनर है लेकर आ रहा हूं। बोले क्या मैने कहा सौ से ज्यादा लखनऊ क्षेत्र के हैं। उन्होंने कहा भाग बेटा भाग। जल्दी खबर दो पहले एडीशन से जाएगी। हम लोगों ने आफिस पहुंच कर खबर लिखी। और कुछ नाम दिये। बाकी नाम रोक लिये।
अगले दिन पूरे लखनऊ में हाहाकार था क्योंकि ये खबर सिर्फ राष्ट्रीय सहारा में थी। किसी अखबार में नहीं थी। दिन में तमाम सीनियर पत्रकारों ने मुझे गरियाना शुरू किया अरे ऐसा कोई करता है। कम से कम बता तो देते। सुबह सुबह मीटिंग में डांट खिलवा दी।
इस हादसे के शिकार लोगों में फूलबाग, मौलवीगंज, कसाईबाड़ा, सआदतगंज, धोबियाना, अशरफाबाद, अकबरी गेट, चौक, ठाकुरगंज आदि इलाकों से गए हजयात्री थे। बहुत दर्दनाक मंजर था लोगों को ये भी नहीं पता था कि उनके घर से हजयात्रा के लिए लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं। किसी तरह से उनकी फोटो वगैरह लेकर हम लगा रहे थे। घर वालों का इंटरव्यू छाप रहे थे। तीन दिन बाद ये स्थिति हुई कि हम जिस इलाके में जाते लोग हमें घेर लेते। धन्यवाद देते।
इस बीच एक घटना और हुई हम लोग कवरेज पर निकले तो एक एजेंट के यहां पहुंचे। वो बेचारा परेशान था। जैसे ही हमें देखा वो चिल्लाया यही भाई साहब आए थे। उसे कुछ लोग घेरे खड़े थे। मैंने पूछा क्या हुआ तो एक शख्स बहुत रोब से आगे आया उसके हाथ में राष्ट्रीय सहारा था उसने कहा ये अफवाह तुम्हीं फैला रहे हो। मैने कहा जी आप कौन उसने बताया कि उसे राजभवन से जांच सौंपी गई है। वह एसपी रैंक का अधिकारी है। मैने कहा इसमें अफवाह की क्या बात है। कहने लगे क्यों नहीं जब अभी ब्लैक बाक्स नहीं मिला है। तो आपने मरने वालों की सूची कैसे जारी कर दी। मैने कहा ठीक है मैं गलत हूं मुझे गिरफ्तार करिये लेकिन आप ये लिखकर दे दें कि ये लोग नहीं मरे हैं। या इनमें से एक जिंदा आदमी ले आएं। खैर किसी तरह से पीछा छूटा। मैने ये घटना संपादक रणविजय सिंह को बताई उन्होंने कतई मत घबडाएं खबरे करना जारी रखें। मेरे लिए इतना काफी था। इस तरह मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला ये विमान हादसा इस तरह मेरी जिंदगी में एक अमिट छाप छोड़ गया।