Lucknow University: लविवि के भूविज्ञान विभाग में हुआ चतुर्थ प्रो. आई.बी. सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन
Lucknow University: भूविज्ञान विभाग ने प्रख्यात भूवैज्ञानिक प्रो. आई.बी. सिंह की स्मृति में चतुर्थ प्रो. आई.बी. सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया।;
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Lucknow University News: लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग ने प्रख्यात भूवैज्ञानिक प्रो. आई.बी. सिंह की स्मृति में चतुर्थ प्रो. आई.बी. सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राजिंदर कुमार, अतिरिक्त महानिदेशक एवं विभागाध्यक्ष, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (उत्तरी क्षेत्र) उपस्थित रहे। स्मृति व्याख्यान का वाचन डॉ. प्रभास पांडे, पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, द्वारा किया गया, जिसका विषय था “हिमालय की भूकंपीय संरचना और इसकी जलविद्युत क्षमता“।
कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाने के लिए स्व. प्रो. आई.बी. सिंह की पत्नी, श्रीमती जानकी सिंह भी उपस्थित रहीं, जिससे इस आयोजन को एक भावनात्मक संजीवनी प्राप्त हुई। प्रो. ध्रुव सेन सिंह, अध्यक्ष, भूविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने अतिथियों का स्वागत किया और प्रो. आई.बी. सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने बताया कि प्रो. सिंह ने उस समय चतुर्थक अवसादी संरचनाओं पर शोध कार्य प्रारंभ किया, जब भारत में अधिकांश भूवैज्ञानिक कठोर चट्टानों पर ही कार्य कर रहे थे। उनका शोध प्राचीन काल से वर्तमान तक की विभिन्न भू-आकृतिक संरचनाओं पर केंद्रित रहा, जिसमें विशेष रूप से गंगा मैदान का अध्ययन शामिल था।
उन्होंने भू-आकृतिक अध्ययन, नदी तंत्र, जलोढ़ संरचना विश्लेषण, भू-पुरातत्व, और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण कार्य किया, जिससे भारतीय भूविज्ञान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। राजिंदर कुमार ने अपने संबोधन में प्रो. सिंह के भूविज्ञान में अतुलनीय योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि चतुर्थक भूविज्ञान में प्रो. सिंह की अग्रणी शोध उपलब्धियां आज भी कई आधुनिक अनुसंधानों की आधारशिला बनी हुई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. सिंह का कार्य पर्यावरणीय बदलाव और नदी प्रणालियों के अध्ययन में मार्गदर्शक बना हुआ है। उन्होंने युवा भूवैज्ञानिकों को उनकी विरासत को आगे बढ़ाने और भूविज्ञान में नवीन खोज करने के लिए प्रेरित किया।
अपने व्याख्यान में डॉ. प्रभास पांडे ने हिमालय की भूकंपीय संरचना पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारतीय प्लेट 5 मिमी प्रति वर्ष की गति से उत्तर की ओर बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप हिमालय निरंतर ऊँचा उठ रहा है। उन्होंने 1905 (कांगड़ा), 1934 (बिहार-नेपाल), 1991 (उत्तरकाशी), और 2015 (गोरखा) जैसे प्रमुख भूकंपों का उल्लेख करते हुए इस क्षेत्र की भूकंपीय संवेदनशीलता को रेखांकित किया। उन्होंने निर्माण परियोजनाओं के लिए भूवैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया और अनियोजित ढांचागत विकास के संभावित खतरों से आगाह किया। इसके अतिरिक्त, डॉ. पांडे ने हिमालयी नदियों की जलविद्युत क्षमता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि भारत में कुल 1,17,300 मेगावाट जलविद्युत क्षमता उपलब्ध है, जिसमें से मात्र 27 फीसदी का दोहन किया गया है। उन्होंने पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए सतत ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर, पवन और परमाणु ऊर्जा) के उपयोग पर जोर दिया और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की आवश्यकता पर बल दिया। इस कार्यक्रम में बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, केंद्रीय भूजल बोर्ड के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के साथ-साथ लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों एवं छात्रों ने भी सक्रिय भागीदारी की। उनकी सहभागिता ने चर्चा को और भी समृद्ध बना दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. रामानंद यादव ने किया, व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार यादव, सहायक प्रोफेसर, भूविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने दिया। यह आयोजन न केवल प्रो. आई.बी. सिंह की स्मृति को सम्मानित करने में सफल रहा, बल्कि भूविज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान-विज्ञान को प्रोत्साहित करने का भी एक सशक्त मंच बना।