Munshi Premchand Jayanti: मुंशी प्रेमचन्द की 144वीं जयन्ती पर बही किस्से और कहानियों की बयार

Munshi Premchand Jayanti: प्रेमचंद स्वाधीनता आंदोलन के लेखक थे। वे दुहरी गुलामी - अंग्रेजों की गुलामी और सामाजिक गुलामी - के विरुद्ध अपने वैचारिक व कथात्मक लेखन द्वारा हस्तक्षेप कर रहे थे।

Report :  Jyotsna Singh
Update: 2024-07-31 16:37 GMT

Munshi Premchand Jayanti

Munshi Premchand Jayanti: 31 जुलाई 2024 को ऑल इण्डिया कैफी़ आज़मी एकेडमी गुरूद्वारा रोड, पेपर मिल कॉलोनी, निशातगंज, लखनऊ के कैफ़ी सभागार में मुंशी प्रेमचन्द की 144वीं जयन्ती मनायी गयी। जिसका आगाज़ मुंशी प्रेमचन्द की तसवीर पर माला डाल कर किया गया। कार्यक्रम की सदारत मोहतरमा सबिहा अनवर ने की, जो हिन्दी और उर्दू दोनों ही हल्कों में मकबूल है आप तरक्की पसन्द तहरीक से जुड़ी रहीं और इसी नजरियें फिक्र को आगे बढ़ाने के लिए कलम का इस्तेमाल किया इसके बाद एकेडमी के सचिव करूणा शंकर ने मेहमानों का इस्तकबाल करते हुए प्रेमचन्द का एक किस्सा सुनाया। प्रेमचन्द के साथ गोरखपुर स्कूल में मुनीर हैदर बेबाक माहुली टीचर थे। दोनों स्कूल छूटने के बाद घसियारी मण्डी जाते और चारा काटने वाले किसानों मजदूरों के साथ जमीन पर बैठ कर बीड़ी पीते और उनकी जाति जिन्दगी से मुताल्लिक हालचाल लेते। प्रेमचन्द ने एसी और सोफे पर बैठ कर अदब़ की तखलीक नहीं की बल्कि किसान और मजदूरों के मसायल को जाना और उसे अपना मौजू बनाया।

हिन्दी कथा संसार में प्रेमचंद न होते तो शिवमूर्ति भी न होते

इस अवसर पर हिन्दी के जाने माने साहित्यकार श्री शिवमूर्ती ने अपने वक्तव्य में कहा हिन्दी कथा संसार में प्रेमचंद न होते तो शिवमूर्ति भी न होते। प्रेमचंद को पढ़ने का मौका मिला तभी मुझे हिम्मत मिली कि गाँव गिराँव की दुनिया को भी कथा का विषय बनाया जा सकता है। इस लिहाज से प्रेमचंद मेरे पुरखा होते हैं। प्रेमचंद इसलिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने उस समय हिन्दी साहित्य को आमजन की जिंदगी से जोड़ा जब वह ऐयारी की जादुई दुनिया में भटक रहा था।

प्रेमचंद स्वाधीनता आंदोलन के लेखक थे

इसके बाद वीरेन्द्र यादव जी ने वक्तव्य में बोला कि प्रेमचंद स्वाधीनता आंदोलन के लेखक थे। वे दुहरी गुलामी - अंग्रेजों की गुलामी और सामाजिक गुलामी - के विरुद्ध अपने वैचारिक व कथात्मक लेखन द्वारा हस्तक्षेप कर रहे थे। दलित, किसान, स्त्री व हाशिये का समाज उनके साहित्य की मुख्य विषय वस्तु थी। आज के सौ वर्ष पूर्व उन्होंने हिंदू -मुस्लिम संबंधों और सांप्रदायिकता को लेकर जो लेखन किया, वह आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद का लेखन भारतीय समाज की मूल संरचना को समझने के लिए कालपात्र सरीखा है। वे गाँधी से प्रभावित थे, लेकिन गाँधीवादी मूल्यों के बंदी नहीं थे। उनके कथा साहित्य में भगत सिंह की चिंताएं और आंबेडकर के सरोकार शामिल थे। भारतीय समाज में जब तक असमानता, भेदभाव और संप्रदायिकता की समस्या बरकरार रहेगी तब तक प्रेमचंद की प्रासंगकिता बनी रहेगी।

प्रेमचंद सही अर्थों में कालजयी लेखक थे। अलीगढ़ से आये ए0एम0यू0 के प्रोफेसर सगीर अफ्राहिम जिन्होने मुंशी प्रेमचन्द पर अनेको पुस्तके लिखी उन्होने आज के दौर में प्रेमचन्द की मानवीयत और अफ़ादियत उनवान पर बोलते हुए कहा प्रेमचन्द की सभी रचनायें हर दौर के लिए एक मिसाल है जिन पर अध्ययन करके व्यवहारिक संघर्ष की आज भी जरूरत है क्योंकि ये भेदभाव की सभी दीवारों को ढा सकता है। कैफी़ आज़मी एकेडमी इन्ही विचारों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। खास कर युवा लेखकों और कवियों, शायरों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। एकेडमी ने हिन्दी और उर्दू तन्जीमों को एक प्लेटफार्म पर लाकर मिसाल कायम की उन्होने कहा आज कैफ़ी एकेडमी का नाम और काम दोनों इसके जनरल सेक्रेटरी जनाब एस0एस0 मेहदी की मेहनत और मश्क्कत की वजह से इस मकाम पर है।

हिंदी कथा साहित्य को अय्यारी और तिलिस्मी उपन्यासों की दुनिया से बाहर निकाला

प्रो0 नलिन रंजन ने अपने वक्तव्य में कहा प्रेमचंद ने हिंदी कथा साहित्य को अय्यारी और तिलिस्मी उपन्यासों की दुनिया से बाहर निकाला। उन्होंने मध्यवर्गीय आमजन को अपने कथा साहित्य के केंद्र में रखा। औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध उन्होंने कहानियाँ लिखीं और किसान, दलित एवं स्त्रियाँ उनके कथा नायक बने। उस दौर में इन वर्गीय चरित्रों को केंद्र में रखकर लिखना बड़े साहस का काम था। उन्होंने वैचारिक रूप से अपने को हमेशा बेहतर बनाए रखा और आदर्श से यथार्थ की ओर बढ़ते रहे। शुरू में वे आर्य समाज से प्रभावित थे तो आगे चलकर गांधीवाद के प्रभाव में रहे। अंत में वे बोल्शेविक विचारों के कायल हो चुके थे। उनका लिखा विपुल साहित्य कभी भुलाया नहीं जा सकता। दूसरे सेशन में प्रेमचन्द की कहानी बालक को ड्रामयी अन्दाज में इप्टा के प्रदीप घोष और ऋषि श्रीवास्वत ने पेश किया। डा0 रेशमा परवीन जो निज़ामत कर रहीं थी ने कहा अदब की दुनिया में प्रेमचन्द की खिदमात का एतराफ़ हमेशा किया जाता रहेगा। उन्होने अपनी कहानियों और नाविलों के ज़रिये हिन्दुस्तान के उस तबके की हकीकी तस्वीर पेश की है जिसे समाज अछूत और नफरत के लायक समझता था ये प्रेमचन्द का बड़ा कारनामा है। इसके बाद उन्होने कार्यक्रम में आये लोगों का शुक्रिया अदा करके कार्यक्रम खत्म करने का एलान कर दिया।

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