Magh Mela 2022: संतों की ऐसी अद्भुत तपस्या, तप पूरा करने में लग जाते हैं 18 साल, जानें महत्व
Magh Mela 2022: संगम नगरी प्रयागराज में आए संत अग्नि तपस्या कर रहे हैं। संतों का यह तपस्या गंगा दशहरा तक जारी रहेगा।
Magh Mela 2022: संगम की रेती पर लगे माघ मेले से अद्भुत तस्वीर सामने आई है। ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ महात्यागी संतों की निराली तपस्या की शुरुआत भी हो गई है। खाक चौक में बसा तपस्वी नगर इसका केंद्र बना हुआ है। तपस्वी नगर के शिविर में त्यागी परंपरा के संत पंच अग्नि तपस्या में लीन है। अग्नि के घेरे में अन्न-जल का परित्याग तक लोक कल्याण के लिए संत माघी पूर्णिमा तक सूर्योदय से सूर्यास्त तक तप करेंगे।
भगवान राम के 14 साल के वनवास की कठिन तपस्या से प्रेरित होकर ये सभी हठयोगी संत दुनिया मे खुशहाली बने रहे इसके लिए ये कठिन तप करते है। एक साधु को लगातार 18 साल तक ये तपस्या करनी होती है जिसके बाद उसकी तपस्या पूर्ण होती है।
18 साल की इस कड़ी तपस्या को 6 हिस्सो में विभाजित किया है। हर 3 साल के बाद तपस्या और कड़ी हो जाती है। हर साल बसन्त पंचिमी से शुरू होकर जेष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी यानी गंगा दशहरा पर ये तपस्या खत्म होती है।
संतों की पंच अग्नि साधना
इन दिनों मेला क्षेत्र के खाक चौक के तपस्वीनगर में डेढ़ सौ से अधिक संत अग्नि तपस्या कर रहे है। एक साथ कई संत अग्नि के घेरे में सिर पर घड़ा रखकर ध्यान मग्न नजर आए। वसंत पंचमी पर संगम में पुण्य की डुबकी लगाने के बाद सर्व मंगल और लोक कल्याण की कामना से तपस्वी संतों ने पंच अग्नि साधना आरंभ की है।
संत अयोध्या (Ayodhya) से आये गोपाल दास महाराज (Gopal Das Maharaj) बताते हैं कि संगम पर माघ मेले में आने वाले संतों ने पूरे जीव जगत के कल्याण के लिए पंच अग्नि तप का संकल्प लिया है। इस तपस्या के दौरान सुबह से दोपहर 3 बजे तक संत नियमित साधना कर रहे है।
हालांकि सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक धुनि के किनारे मंत्र जपते नज़र आएंगे। गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) पर हवन-पूजन कर धुनी को गंगा में विसर्जित किया जाएगा। तपस्या किसी कारण से अगर भंग हो जाती है तो अगले वर्ष नए सिरे से संकल्प से उसे आरंभ करना होता है।
तस्वीरों में आप साफ़ देख सकते हैं की भारी संख्या में साधु संत साधना में लीन है और देश दुनिया में शांति बनी रहे उसके लिए यह एक अनोखी साधना कर रहे हैं। सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार तपस्या कर रहे संतो के ऊपर पुष्प की वर्षा की जाती है साथ ही साथ उनको दक्षिणा भी दिया जाता है। जो संत तपस्या के दौरान अपने ऊपर जलता हुआ कलश रखते है वो संत अपनी अंतिम तपस्या के दौर से गुज़र रहते है।