Mahoba News: महोबा में बांधी जाती है रक्षाबंधन के अगले दिन राखी, शुरू हुआ ऐतिहासिक कजली मेला, जानिए क्या है मान्यता

Mahoba News: आल्हा-ऊदल की शौर्यगाथा को याद किया जाता है। गौरवशाली परंपरा को आज तक नहीं मिल सका राजकीय मेले का दर्जा।

Update:2023-08-31 21:54 IST
(Pic: Newstrack)

Mahoba News: महोबा की वीरता के प्रतीक ऐतिहासिक कजली मेले का आज शुभारंभ हुआ। यहां एक दिन बाद विजय पर्व के रूप में रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस अवसर यहां के वीर आल्हा-ऊदल के याद कर उनका नमन किया जाता है। बुंदेलखंड के महोबा जिले में रक्षाबंधन के अगले दिन राखी बांधने की प्राचीन और ऐतिहासिक परंपरा है। इस दिन वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता को याद करते हुए विशाल कजली महोत्सव विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। जिसमें हाथी, ऊंट और नाचते हुए घोड़ों के साथ झांकियां निकाली जाती हैं, जिसे देखने के लिए लाखो की भीड़ जुटती हैं।

उत्तर भारत में अपनी आन-बान और शान के लिए मशहूर महोबा के ऐतिहासिक कजली मेले 842 वां उद्घाटन सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल व डीएम-एसपी ने संयुक्त रूप से फीता काटकर किया है। इस मौके पर एमएलसी, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधि भी मौजूद रहे।

शोभायात्रा में उमड़ा जनसैलाब

नगर पालिका अध्यक्ष ने मुख्य अतिथियों को पगड़ी पहनाकर जुलूस का आरम्भ कराया। कजली मेले में निकली शोभायात्रा देखने के लिए बड़ी भीड़ नजर आई। सुरक्षा के मद्देनजर शहर में काफी मात्रा में पुलिस तैनात की गई। बुंदेलखंड के वीर आल्हा-उदल की नगरी महोबा का ऐतिहासिक महत्व रहा है। इन्हीं वीर योद्धाओं से दिल्ली का राजा पृथ्वीराज चौहान हारकर भाग गया था। महोबा के इस ऐतिहासिक शौर्य और पराक्रम को याद करने के लिए सावन माह में कजली मेला पिछले सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है।
गौरवशाली परंपरा को नहीं मिल सका राजकीय मेले का दर्जा

इस मेले में उत्तर प्रदेश के जनपद से ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश से भी लोग आते है। इस मेले की खासियत शोभा यात्रा होती है, जिसके देखकर आल्हा उदल और उनके गुरु ताला सैयद को याद किया जाता है। मगर, आज भी यह उत्तर भारत का मशहूर मेला राजकीय नहीं हो पाया। जिसका मलाल भी यहां के लोगों को है, मगर जनप्रतिनिधि इसे जल्द राजकीय मेला कराने के प्रयास में लगे हुए हैं। शहर के हवेली दरवाज़े से शुरू हुई शोभायात्रा में लाखों की भीड़ देखने को मिली। शोभायात्रा में हाथी पर सवार आल्हा और घोड़े पर बैठे उदल सहित आल्हा खंड में लिखे सभी इतिहास के पात्रों की झांकिया देखने के लिए लोग उमड़ पड़े। जुलुस में आधा सैकड़ा घोड़े नृत्य करते हुए लोगों का मन मोह रहे थे। इस दौरान शौर्य और वीरता के महाकाव्य आल्हा के फिजाओं में गूंज रहे ओजस्वी स्वरों के बीच समूचे जनपद में भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार भी पारम्परिक हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया।

कजली मेला आल्हा उदल के शौर्य का प्रतीक

इस मौके पर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने कहा कि ये देश का ऐतिहासिक विशेष महत्व का मेला है। ये एक परम्परा है, जिसे नगरपालिका भव्य रूप से आयोजित करती है। इस मेले को राजकीय मेला कराने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। इस मौके पर एमएलसी जीतेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा कि उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला है, जो आल्हा उदल के शौर्य का प्रतीक है। इस वीर भूमि में यह मेला एक परम्परा है। वहीं विधायक राकेश गोस्वामी ने कहा कि ये कजली मेला हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है। इस मेले को आगे बढ़ाने की अपील भी जनपदवासियों से की गई। वहीं नगर पालिका अध्यक्ष संतोष चौरसिया ने मेले की व्यवस्थाओं को बेहतर रखने के लिए पालिका कर्मचारियों की कई टीम गठित की है। उन्होंने कहा कि ये महोत्सव नगर के वक्त से इसका महत्व रहा है, इसका सम्मान बढ़ाने के लिए प्रयास किये जा रहे है।

एक सप्ताह तक होंगे विविध आयोजन

डीएम मनोज कुमार कहा कि राष्ट्रीय पहचान बनाये हुए उत्सव है। यहां की वीरता प्रसिद्ध है, जिसे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन काम कर रहा है। राजकीय मेला कराने के लिए शासन को पत्र लिखा जायेगा। मेले का आज से आगाज हो गया है, अब एक सप्ताह तक मंच से सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे और कीरत सागर तालाब किनारे लगे मेले का लोग आनंद लेंगे। वहीं आल्हा मंच से आल्हा गायन का मंचन होगा।

चाक-चौबंद सुरक्षा के इंतजाम

मेले की सुरक्षा को लेकर पुलिस अधीक्षक अपर्णा गुप्ता ने बताया कि मेले में बुंदेलखंड और प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग मेला देखने आते हैं, सुरक्षा के मद्देनजर मेला चौकी बनाई गई है। बाहरी जनपदों से भी पुलिस मुहैया कराई गई है। पर्याप्त पुलिस बल तैनात है, साथ ही जाम से निपटने के लिए अतिरिक्त ट्रैफिक पुलिस व्यवस्था भी की गई है।

ये है ऐतिहासिक मान्यता

इतिहासकारों के अनुसार सन 1182 ईसवीं में चंदेलों और पृथ्वीराज चौहान की सेना के बीच यह युद्ध सावन की पूर्णिमा के दिन कीरत सागर के किनारे हुआ था। महोबा के चंदेल शासक के सेनापति वीर आल्हा, ऊदल ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से दिल्ली के शासक प्रथ्वीराज चौहान की सेना को खदेड़ दिया था और इसके बाद राखी का पर्व मनाया गया था। यही वजह है कि इसी विजय पर्व की याद में यहां एक दिन बाद बहने अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधकर रक्षाबन्धन का पर्व मनाती है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में पारम्परिक लोक नृत्य के साथ लोगों के मनोरंजन के लिये विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस बार भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और कवि सम्मलेन का आयोजन होना है। यहां हिन्दू-मुसलमान, सिख-इसाई सभी कजलियों को पवित्र मानकर सम्मान करते हैं । महोबा का यह कजली महोत्सव सद्भावना का प्रतीक माना जाता है।

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