मायावती: पिता चाहते थे बेटी बने IAS लेकिन मायावती बनीं चार बार CM
Mayawati: देश की जानी-मानी महिला राजनीतिज्ञ मायावती को भारत की सबसे युवा महिला और दलित मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। लेकिन उनके पिता यह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी राजनीति की दुनिया में कदम रखें।
Mayawati: मायावती देश की जानी-मानी महिला राजनीतिज्ञ हैं। वो देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की चार बार पूर्व मुख्यमंत्री रही हैं। मायावती को भारत की सबसे युवा महिला और दलित मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। 90 के दशक के मध्य से ही मायावती बहुजन समाज पार्टी (BSP) की अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षिका (School Teacher) के तौर पर की थी। इनकी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता इन्हें सम्मान से 'बहनजी' (Behenji) के नाम से भी बुलाते हैं।
यूपी की पूर्व सीएम मायावती का जन्म (Mayawati Birthday) 15 जनवरी, 1956 को दिल्ली के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रभु दयाल (Prabhu Das) और माता का नाम रामरती (Ramrati) था। प्रभु दयाल सरकारी नौकरी में थे। मायावती कुल 6 भाई और दो बहनें हैं। दलित परिवार (Dalit Family) से होने के बावजूद प्रभु दयाल दूरदर्शी थे। मायावती मूलतः गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर गांव की रहने वाली हैं। उनके मुख्यमंत्री बनते ही यह गांव रातोंरात वीवीआईपी गांव बन गया।
मायावती बनना चाहती थीं आईएएस
राजनीति में आने से पहले मायावती दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षिका थीं। शिक्षिका के अलावा वो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के परीक्षाओं की तैयारी भी करती थीं। हालांकि जब वो राजनीति में आईं तो उन्हें कई कठिनाइओं का सामना भी करना पड़ा। मायावती के पिता नहीं चाहते थे वो राजनीति (Politics) में आएं। वह मायावती को प्रशासनिक अधिकारी के रूप में देखना चाहते थे।
मायावती यूपीएससी की तैयारी भी कर रही थीं। लेकिन उन्होंने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ राजनीति में जाने का फैसला लिया। उन्होंने 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कालिंदी कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएट हुईं। 1976 में उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से बी.एड. और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की पढ़ाई की।
1977 में कांशीराम के संपर्क में आयीं
वो साल था 1977 जब मायावती, कांशीराम के संपर्क आयीं थीं। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन राजनीतिज्ञ के रूप में बिताने का फैसला लिया। उस वक्त मायावती, कांशीराम के कोर टीम का हिस्सा रहीं। उन्हें कांशीराम का संरक्षण प्राप्त था। आखिरकार सन 1984 में इस टीम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।
बिजनौर सीट से पहली बार पहुंची संसद
बसपा के गठन के बाद मायावती को उसी साल यानि 1984 में ही मुज़फ्फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से पहला चुनावी अभियान शुरू करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने 1985 और 1987 में भी लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर कड़ी मेहनत की। साल 1989 में तब के बसपा सुप्रीमो कांशीराम ने लोकसभा चुनाव में उतारा। मायावती यूपी के बिजनौर सीट से चुनाव जीतने में सफल रहीं। इस वर्ष बहुजन समाज पार्टी ने 13 सीटों पर चुनाव जीता। इस चुनाव में उन्होंने जनता दल प्रत्याशी मंगल राम प्रेमी को 8,879 मतों से हराया।
मुलायम-कल्याण के सामानांतर मायावती
ये वो समय था जब देश की राजनीति बदलने लगी थी। खासकर उत्तर प्रदेश में कास्ट पॉलिटिक्स चरम पर था। एक तरफ जहां मुलायम सिंह यादव थे तो दूसरी तरफ कल्याण सिंह और इन दोनों के सामानांतर अब तीसरा चेहरा मायावती के रूप में सामने आया। धीरे-धीरे मायावती 'यूथ आइकॉन' के रूप में लोकप्रिय होने लगीं। वर्ष 1993 में जब उत्तर प्रदेश में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर एक बार फिर सरकार बनाई, तब 1994 में मायावती को राज्यसभा के लिए निर्वाचित किया गया।
गेस्ट हाउस कांड: माया जिसे कभी नहीं भूल पाएंगी
सपा और बसपा सरकार के बीच आपसी मनमुटाव बढ़ने लगे थे। 2 जून, 1995 को बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई थी। अब सरकार बचाने की जद्दोजहद शुरू हुई। लेकिन बात नहीं बनी। अंत में नाराज सपा कार्यकर्ताओं और विधायकों की भीड़ राजधानी लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गई। मायावती यहां कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं।
वह 2 जून, 1995 का दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए बेहद शर्मनाक था। उन्मादी भीड़ ने मायावती पर गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में घुसकर हमला बोल दिया। तब मायावती वहां अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। तभी कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अचानक गेस्ट हाउस पर जानलेवा हमला बोल दिया। बता दें कि उस वक्त मायावती बहुजन समाज पार्टी में कांशीराम के बाद दूसरे नंबर की नेता की हैसियत रखती थीं। हमलावर भीड़ का मकसद एक दलित महिला नेता को सबक सिखाना था।
विवादों के बावजूद समर्थकों ने निभाई वफादारी
कहा जाता है कि जब आप राजनीति में हैं तो कालिख लगनी ही है। मायावती भी अछूती नहीं रहीं। उनके शासनकाल में भी कई विवादों और घोटालों ने सर उठाया, जिसके आरोप उन पर और उनकी पार्टी पर लगते रहे हों। बावजूद मायावती का राजनीतिक अभ्युदय अद्भुत रहा। एक सामान्य दलित परिवार से आई महिला के लिए सत्ता के इस मुकाम तक पहुंचना साधारण नहीं था। मायावती के समर्थकों ने हर बार वफादारी के साथ उनका साथ निभाया। मायावती ने दलितों के दिल में भी खुद की जगह बनाई। साल 2001 में बसपा प्रमुख कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
मायावती चार बार बनीं मुख्यमंत्री
1995 में मायावती बीजेपी के समर्थन से पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 1997 में एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन जिस समझौते के तहत मायावती और कल्याण सिंह ने सरकार बनाई थी, माया उससे पीछे हट गईं। आखिरकार सरकार गिर गई। 3 मई, 2002 से 29, अगस्त 2003 तक बीजेपी के समर्थन से मायावती एक बार फिर यूपी की सीएम बनीं। हालांकि बाद में बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद साल 2007 में मायावती की बहुजन समाज पार्टी 206 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापस लौटीं। बसपा ने पूरे 5 साल सरकार चलाई। 2007 के बाद से बसपा सत्ता से दूर है।
मायावती का जीवन परिचय (Mayawati Ka Jivan Parichay Hindi Mein)
1956: मायावती का जन्म दिल्ली में हुआ
1977: शिक्षिका के रूप में करियर की शुरुआत की
1977: इसी वर्ष दलित नेता कांशीराम के संपर्क में आईं
1984: शिक्षिका की नौकरी छोड़ बसपा में शामिल हो गईं
1984: लोकसभा चुनाव के प्रचार में जुट गईं
1989: पहली बार बिजनौर सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचीं।
1994: पहली बार राज्यसभा के लिए मनोनीत
1995: उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार चुनी गईं
1997: दोबारा यूपी सीएम के रूप में चुनी गईं
2001: बसपा सुप्रीमो कांशीराम की उत्तराधिकारी घोषित।
2002: तीसरी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
2007: चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री चुनी गईं।
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