बाप रे बाप: मजदूर का हाल देख उड़ जाएंगे होश, भीषण गर्मीं में हैं पड़े
स्थानीय प्रशासन को इनको प्रदेश के अन्य जनपद की तरह गाँव मे ही किसी प्राइमरी स्कूल या किसी अन्य जगह कोरेन्टीन करवा देना चाहिए था।
इटावा: 44 डिग्री तापमान और लू के थपेड़ों के बीच सड़क किनारे प्रवासी मज़दूर रहने को मजबूर हैं। छोटे-छोटे बच्चों के साथ महिलाओं समेत एक दर्जन से ज़्यादा लोग गाँव के बाहर सड़क किनारे रह कर गुजारा कर रहे हैं। गांव वालों के साथ ही घर वालो ने भी अहमदाबाद एवं छत्तीसगढ़ से आये अपनो को गाँव से निकाला। बीवी को मायके लेकर आए दामाद पर भी ससुराल वालों को तरस नही आया। 14 दिन के बाद ही गांव में प्रवेश मिल पाएगा। प्रशासनिक लापरवाही एवं गाँव वालों में कोरोना के कारण पैदा हुए खौफ के चलते भीषण गर्मी में होम कोरेन्टीन की जगह सड़क पर 14 दिन पूरे होने का इन्तजार कर रहे हैं ये प्रवासी
13 दिनों से धुप में समय गुजार रहे प्रवासी
इटावा के बढ़पुरा ब्लॉक के ग्राम हरचंदपुरा में पिछले 13 दिनों से गाँव के बाहर सड़क किनारे दोपहर में कभी पेड़ के नीचे तो कभी शाम को खुले आसमान के नीचे 1 दर्जन से अधिक मज़दूर अपने 14 दिन के क्वारंटाइन का समय ख़तम होने का इंतेजार कर रहे हैं। इन इ दर्जन मजदूरों में 4 महिलाएं एवं चार छोटे बच्चे भी शामिल हैं। ये सब इंतजार कर रहे हैं 14 दिन खत्म होने का।
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इनको इंतजार है कि जल्द ही 14 दिन पूरे हों और ये लोग गांव में अपने घर जा सकें। इन लोगों में से कुछ लोग अहमदाबाद से तो कुछ छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, फरीदाबाद से आये थे। लेकिन गाँव मे घुसते ही गाँव वालों ने तो कुछ के घर वालो ने खुद कलेजे पर पत्थर रख कोरोना बीमारी के डर से अपनो को गाँव छोड़ने के लिए यह कहकर निकलने के लिए कह दिया कि जब 14 दिन हो जाये तब गाँव में आना।
स्थानीय प्रशासन की ओर से नहीं दिया जा रहा कोई ध्यान
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ऐसे में भीषण गर्मी एवं लू के थपेड़ों के बीच इन लोगो को रात दिन खुले आसमान के नीचे रहने पर मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि स्थानीय प्रशासन को इनको प्रदेश के अन्य जनपद की तरह गाँव मे ही किसी प्राइमरी स्कूल या किसी अन्य जगह कोरेन्टीन करवा देना चाहिए था।
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लेकिन ज़िले के आला अधिकारियों की तो छोड़िए गाँव के प्रधान ने भी इनकी सुध नही ली। ऐसे में ये स्थानीय प्रशासन की घोर लापरवाही की दास्ताँ सामने आ रही है। जिस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है उस पर कोई भी ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। न ही प्रशासन की तरफ से और न ही वहां के स्थानीय लोगों की तरफ से कोई भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में ये सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है।
उवैश चौधरी