धक्के खाने को मजबूर प्रवासी मजदूर, बोले- काम तो छूट गया, अब ये है आखिरी उम्मीद
लॉकडाउन में प्रवासियों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। काम बंद हो जाने की वजह से करीब दो महीने से इनको रहने, खाने तक के लाले पड़ गए हैं। अब यह मजबूरन बिहार सहित दूसरे राज्यों में अपने घरों की ओर पलायन करने लगे हैं।
झाँसी: लॉकडाउन में प्रवासियों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। काम बंद हो जाने की वजह से करीब दो महीने से इनको रहने, खाने तक के लाले पड़ गए हैं। अब यह मजबूरन बिहार सहित दूसरे राज्यों में अपने घरों की ओर पलायन करने लगे हैं। कुछ तो बसों के माध्यम से निकल गए हैं। लेकिन कई प्रवासी पिछले कई दिन बीत जाने के बाद भी वह अपने घर नहीं लौट पा रहे हैं और वह कैसे भी अपने घरों में पहुंच जाए इसकी जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
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खाने के लिए कुछ नहीं, घर जाना है
प्रतापगढ़ निवासी विकास चौरसिया ने बताया कि वह गुडगांव सीताराम में किराए के मकान में रह रहे थे, और परवाणू सेक्टर-5 में एक निजी कंपनी में जॉब करते थे। लॉकडाउन के बाद कंपनी बंद हो गई थी और जितने दिन उन्होंने काम किया था उसका पैसा उन्हें मिल गया था वह तो खर्च हो गया है। अब पिछले दो महीने से वह अपने घर जोकि प्रतापगढ़ में पड़ता है वहां से पैसा मंगवाकर गुजारा कर रहे थे उन्होंने बताया कि पिछले दो महीने का किराया भी नहीं दिया है और न ही अब उनके पास खाने को पैसे हैं इसलिए वह अपने घर जाना चाहते हैं।
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दो महीने से काम नहीं, घर से मंगवा रहे पैसे
फतेहपुर निवासी पार्वती देवी ने बताया कि वह फतेहपुर के रहने वाले हैं और फरीदाबाद में मिस्त्री का काम किया करते थे। वह फरीदाबाद से फतेहपुर जा रहे थे लेकिन उनकी बस को वापस भिजवा दिया गया, बताया कि सीमाएं सील होने के चलते वह 21 मार्च से फरीदाबाद में एक धर्मशाला में रह रहे हैं। करीब दो माह से काम न करने की वजह से उनको खाने-पीने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि वह सरकारी दफ्तरों से व संस्थाओं की ओर से बंटने वाला खाना खाकर गुजारा कर रहे हैं। घर से पैसे मंगवा घर्मशाला का किराया भरने को मजबूर हैं।
लॉकडाउन के बाद से बंद पड़ा है काम
राम विशाल ने बताया कि वह बिहार के रहने वाले हैं, वह पिछले करीब छह साल से किराए के मकान में महाराष्ट्र में अपने परिवार के साथ रह रहें हैं और वेज रोल बेचा करते थे। लॉकडाउन के बाद से उनका काम बंद पड़ा है और वह घर से पैसे मंगवाकर खाने का खर्च चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि करीब तीन महीने से उन्होंने अपने कमरे का किराया भी नहीं दिया है। पूरा परिवार परेशान है अब तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि कैसे अपने घर बिहार वापस जाएं।
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22 मार्च से कंपनी बंद, किराया कहां से दें
हृदेश कुमार ने बताया कि वह सूरत के सीताराम में किराए के मकान में रहते हैं और एक निजी कंपनी में काम करते थे। 22 मार्च से कंपनी बंद पड़ी है। तब से वह घर बैठे हैं, खाने के लाले पड़े हुए हैं। आलम यह है कि अगर मिल जाता है तो खा लेते हैं वरना यूं ही गुजर-बसर कर रहे हैं। उनके पास कमरे के किराए तक के भी पैसे नहीं है। बस अब यही कोशिश है किसी तरह घर पहुंच जाएं।
रिपोर्ट: बी.के. कुशवाहा
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