कंतित शरीफ का रहस्यमयी और तिलिस्मी नागकुंड
सिद्धपीठ विंध्याचल पूजा पद्धति के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र में है। इस क्षेत्र में आज भी ऐसे कई कुंड हैं जो रहस्यमयी होने के साथ लोगों को आश्चर्यचकित भी कर देते हैं। विंध्य पर्वत पर कंतित शरीफ में नाग कुंड आज भी मौजूद है, इस कुंड को भूलोक से पाताल लोक जाने के लिए उत्तम मार्ग के नाम से जाना जाता है।
बृजेंद्र दुबे
मीरजापुर: हजारों वर्ष पूर्व पम्पापुर नगरी में नाग वंशीय राजाओं का राज्य था। ये पम्पापुर नगरी विन्ध्याचल में है जो कि मीरजापुर यानी राजाओं के क्षेत्र की भौगोलिक सीमाओं में ही आता है। यहीं विंध्य पर्वत पर स्थित है नाग वंशीय राजाओ के द्वारा बनाया गया नागकुंड, जो कि अपने आप मे ही अद्भुत और रहस्यमयी है।
सिद्धपीठ विंध्याचल पूजा पद्धति के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र में है। इस क्षेत्र में आज भी ऐसे कई कुंड हैं जो रहस्यमयी होने के साथ लोगों को आश्चर्यचकित भी कर देते हैं। विंध्य पर्वत पर कंतित शरीफ में नाग कुंड आज भी मौजूद है, इस कुंड को भूलोक से पाताल लोक जाने के लिए उत्तम मार्ग के नाम से जाना जाता है।
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पम्पापुर नागवंशीय राजाओं की राजधानी थी। लोगो द्वारा बताया जाता है कि अब से तीन हजार वर्ष पूर्व यहां नाग वंशीय राजाओं का राज्य था। माता रानी विंध्यवासिनी देवी नागवंशीय राजाओं की कुल देवी के रूप में पूजी जाती थीं।
यहां से पाताल लोग जाने का रास्ता है
कंतित शरीफ के भैरो मंदिर के पास स्थित नाग कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां से पाताल लोग जाने का रास्ता है और इसी रास्ते से नाग वंशीय आते जाते थे। पाताल लोक जाने वाले इसी मार्ग को नागकुंड के नाम से जाना है।
नागवंशी राजा दानव राज ने इस कुंड का निर्माण करवाया था जिसका जिक्र बावन पुराण में भी है। बावन पुराण में भी इस बात के बारे में बताया है। पुराण के अनुसार नागवंशी राजा को 52 रानियां थीं उन्हीं के स्नान के लिए राजा ने इस कुंड का निर्माण करवाया गया था। नाग पंचमी पर इस कुण्ड पर विशाल मेला लगता है।
इस कुण्ड में स्नान करने पर काल सर्प योग समाप्त हो जाता है। प्राचीन समय से ही लोगो की मान्यता है कि इस नागकुंड में नागपंचमी के दिन जो भी श्रद्धालु स्नान करेगा उस श्रद्धालु का काल सर्प दोष खत्म हो जाएगा।
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भक्त इस कुण्ड से जो बर्तन मांगते थे वह मिल जाता था
इस कुण्ड को बावन घाट की भी कहा जाता है। कहते हैं कि वर्षो पूर्व मां के धाम में दूर दराज से आने वाले भक्त इस कुण्ड से जो बर्तन मांगते थे वह मिल जाता था। इसका प्रयोग कर वापस बर्तन कुंड में डाल देते थे। समय बदलने के साथ लोगों की नीयत बदली और नागकुण्ड से बर्तन निकलना बंद हो गए।
इस कुण्ड में चारों तरफ सात कूप बना हुआ है। इसी एक में पृथ्वी लोक से पाताल लोक जाने का मार्ग है। आज भी इस कुंड में नागवंशीय राजाओं की निशानी के तौर पर लेखा चित्र अंकित है।
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इतिहासकार डॉ शशिधर शुक्ला बताते हैं कि
देवी भागवत में भी इसका उल्लेख मिलता है कि पहली से दूसरी शताब्दी में इस क्षेत्र को नागों की राजधानी कांतिपुर के नाम से जाना जाता था जिसे आज हम कंतित के नाम से जानते है। नागवंशीय राजाओं की राजधानी में नाग कुंडों का अस्तित्व मिलता है, जो उस दौरान काफी महत्वपूर्ण स्थल के तौर पर जाना जाता था।
सरकारी उपेक्षा के कारण जर्जर हो चुका है यह कूप
आज इस ऐतिहासिक कुंड की हालत सरकारी उपेक्षा के कारण खराब हो चुकी है। कुंड का पानी पूरी तरह से सूख चुका है। इसकी सीढ़ियां पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है। कुंड के पास फेंके जा रहे कूड़े के ढ़ेर में इसका अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त हो रहा है। हालांकि पर्यटन विभाग ने स्थल की महिमा का बखान करते हुए एक बोर्ड लगाया था, वह भी विभागीय लापरवाही से जर्जर होकर टूट चुका है ।