Mission 2024: पीएम मोदी और योगी को मात देने के लिए अखिलेश का बड़ा प्लान, ऐसे साधेंगे ओबीसी के साथ ठाकुरों को भी

Lok Sabha Election 2024: अखिलेश यादव इस बात को समझ चुके हैं कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए समाजवादी पार्टी के पाले में ओबीसी के साथ ठाकुरों का वोट काफी महत्व रखता है। यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश ओबीसी वोटरों पर फोकस कर रहे हैं। इसके लिए आइए जातने हैं सपा का क्या है प्लान?

Update: 2023-08-21 11:52 GMT
सपा प्रमुख अखिलेश यादव: Photo- Social Media

Lok Sabha Election 2024: यूपी में जीत के लिए जाति का जुगाड़ सबसे पक्का माना जाता है। अगर जाति का जुगाड़ फिट है तो जीत भी तय है। कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। बीजेपी को इसी राह पर रोकने के लिए अब सपा राजनीतिक गोटियां बिछाने में जुट गई है। जहां भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बहाने हिंदुत्व को धार देने और गैर-यादव ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने की रणनीति पर काम कर रही है तो वहीं, समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी का जबरदस्त प्लान बनाया है।

सोमवार को राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में सपा का ओबीसी सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग की जातियों को साधते हुए नजर आए।

इन जातियों का भी करेगी सम्मेलन-

यही नहीं सपा ने ओबीसी के तर्ज पर सवर्ण जातियों को भी अपने साथ लाने के लिए रणनीति बनाई है, जिसमें ठाकुर से लेकर ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ समाज के अलग-अलग सम्मेलन जल्द ही आयोजित किए जाएंगे। यही नहीं समाजवादी पार्टी ने ओबीसी बाहुल्य घोसी विधानसभा सीट पर ठाकुर समुदाय से अपना उम्मीदवार सुधाकर सिंह को मैदान में उतारकर अपनी सियासी मंशा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही जारी कर दी है और पार्टी अगले महीने से अलग-अलग जिलों में ठाकुर जाति को जोड़ने के लिए ‘सामाजिक एकीकरण सम्मेलन’ भी करने जा रही है। समाजवादी पार्टी जिस जाति का सम्मेलन करेगी, उस कार्यक्रम की जिम्मेदारी भी उसी समाज के नेताओं को सौंपी गई है।

ओबीसी पर फोकस-

समाजवादी पार्टी ने गैर-यादव ओबीसी का जिम्मा पार्टी महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य को सौंपी है तो वहीं ठाकुर समुदाय को जोड़ने की जिम्मेदारी जूही सिंह को सौंपी है। इसी तरह से दूसरी जातियों के नेताओं को भी उनके जाति की जिम्मेदारी की कमान दी गई है। वहीं आने वाले दिनों में सपा भाजपा के प्रति और आक्रामक रूख भी अपनाने के मूड में है।

इस तरह से देखा जाए तो सपा जातियों के सम्मेलन से अपने खिसके हुए सियासी जनाधार को फिर से वापस लाने और नए वोटबैंक को जोड़ने की मुहिम पर जुट गई है ताकि चुनावी मैदान में बीजेपी से मुकाबला किया जा सके।

यूपी की राजनीति में ओबीसी का सबसे अधिक वोट है। इस तरह से देखा जाए तो यूपी में किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए ओबीसी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सूबे की राजनीति भी ओबीसी के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है। आज बीजेपी यूपी में गैर-यादव ओबीसी को अपने पक्ष में लाकर ही एक के बाद एक चुनाव में अपना परचम लहराती जा रही है।

बीजेपी की जीत में ओबीसी वोटरों की बड़ी भूमिका-

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव रहे हों या 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव। इन चारों चुनावों में बीजेपी की जीत और सपा की हार में ओबीसी वोटरों की भूमिका सबसे प्रमुख रही है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर ओबीसी वोटों पर अभी से फोकस कर रही है। सपा की जातीय जनगणना की मांग हो या फिर पिछड़ा वर्ग के महापुरुषों पर चर्चा के लिए लखनऊ में महासम्मेलन किया जा रहा हो, यह सब सपा की ओबीसी राजनीति का ही हिस्सा हैं।

...और इस तरह अखिलेश पूरा करेंगे 40 फीसदी का लक्ष्य-

सोमवार को लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में सपा का ओबीसी महासम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी बात रखी। सम्मेलन सपा विधायक राम अवतार सिंह सैनी ने बुलाया था। सम्मेलन में ओबीसी समाज के महापुरुषों के राजनीतिक परिवेश में प्रासंगिकता का विषय पर चर्चा की गई। इस महासम्मेलन के जरिए ओबीसी समाज के लोगों को एकजुट करने पर जोर दिया गया। सपा के इस सम्मेलन में मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी और बिंद समाज के लोगों को बुलाया गया था।

जातिगत जनगणना को भी धार देने की कोशिश-

सपा मंडल कमीशन के मुद्दों पर मंथन करने के साथ ही जातिगत जनगणना के मुद्दे को भी धार दे सकती है। इस तरह समाजवादी पार्टी ने ओबीसी जातियों की लोकसभा चुनाव से पहले गोलबंदी करने की रणनीति बनाई है। बतादें कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी काफी कोशिशों के बाद भी 34 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी जबकि बीजेपी 50 फीसदी प्लस वोट का अपना टारगेट लेकर चल रही है। सपा इस बात को अच्छी तरह समझ रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से तभी मुकाबला किया जा सकता है, जब उसका वोटबैंक 40 फीसदी से अधिक हो।

पीडीए फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं सपा अध्यक्ष-

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पीडीए यानि पी से पिछड़ा, डी से दलित और ए से अल्पसंख्यक का फॉर्मूला दिया है, लेकिन साथ ही सपा ने अब सवर्ण वोटों को भी अपने साथ जोड़ने की योजना बनाई है। समाजवादी पार्टी की तरफ से आने वाले दिनों में महा क्षत्रिय यानि ठाकुर समाज के तीन बड़े सम्मेलन लखीमपुर खीरी, बांदा और प्रतापगढ़ में किए जाएंगे। यूपी की राजधानी में समाजवादी पार्टी एक कार्यक्रम पहले ही कर चुकी है। सपा समाज के वंचित वर्ग के पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों की सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने के साथ-साथ सामान्य वर्ग को भी साथ रखेगी। सवर्ण जातियों के जो सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे, उसे ‘सामाजिक एकीकरण’ सम्मेलन का नाम दिया गया है।

सामाजिक एकीकरण कार्यक्रम की अध्यक्षता क्षत्रिय समाज का ही स्थानीय नेता करेगा और सपा के वरिष्ठ नेता इनमें हिस्सा लेंगे, लेकिन यहां अपनी बात कहने से ज्यादा क्षत्रिय समाज के स्थानीय लोगों को सुना जाएगा। लखीमपुर खीरी में 3 सितंबर को सम्मेलन होगा। क्षत्रीय समाज को साधने की कमान सपा की महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह को सौंपी गई है। ऐसे ही सवर्ण समुदाय के दूसरे नेताओं को भी मोर्चे पर लगाया गया है। इस तरह से सपा बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी करने में जुट गई है। अब देखना यह होगा कि सपा की बीजेपी को मात देने की यह रणनीति कितनी कारगर होती है?

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