चंद्र लोक से ये लोग आ रहे हैं स्वागत के लिए, कर लें तैयारी
दुनिया के तमाम देश चंद्रमा की खाक छानने में जुटे हैं। भारत भी चंद्रमा के करीब पहुंच गया है। लेकिन अभी तक चंद्रमा के बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं आ सकी है।
लखनऊ: दुनिया के तमाम देश चंद्रमा की खाक छानने में जुटे हैं। भारत भी चंद्रमा के करीब पहुंच गया है। लेकिन अभी तक चंद्रमा के बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं आ सकी है।
मित्रों हिन्दू धर्म या सनातन धर्म के हिसाब से तो चंद्रमा पर पूरी बस्ती है। क्या संयोग है हमारा चंद्रयान-2 अपना मिशन शुरू कर रहा है? और बहुत संभव है कि 100 प्रतिशत कामयाब होकर इतिहास रच दे।
लेकिन इसी के साथ वह समय भी करीब आ रहा है जब चंद्र ग्रह पर रहने वाले हमारे पितर पृथ्वी पर हमसे मिलने आने वाले हैं। जी हां।
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13 सितंबर को आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक सूर्य की रश्मियों में ऊपर की किरण (अर्यमा) और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है।
इसमें सारी तिथियां आ जाती हैं सिवाय पूर्णिमा को छोड़कर इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा को इसमें शामिल कर लिया जाता है और पूर्णिमा से अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है।
यहां हम आपको बता दें कि सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं।
उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र (वस्य) का भ्रमण होता है, तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व भी है।
जो अन्य किसी तिथि में अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते, या तिथि को लेकर असमंजस होता है वह इस अंतिम तिथि को अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं।
चंद्रलोक में ही है पितृलोक
हिन्दू धर्म में यमलोक और पितृलोक की स्थिति पास पास बताई गई है। चंद्रलोक में ही पितृलोक का है। धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है।
हालांकि आज वैज्ञानिक चंद्रमा का कोना कोना छानने में लगे हैं। लेकिन हिन्दू आस्था की जड़े फिर भी गहरी हैं। हम ये मानते थे कि चंद्र ग्रह पर हमारे पितर रहते हं आज भी मानेंगे। आने वाले कल में हमारी पीढियां भी मानेंगी।
बात हिन्दू धर्म की करें तो हमारे यहां तो यमराज को भी पितर माना जाता है। जब पितरों का श्राद्ध किया जाता है तो कुछ नाम पर हम तर्पण करते हैं जैसे काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार पितरों की इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना जाता है और यमराज को दंडाधिकारी या न्यायाधीश।
इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, जैसे- अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि आदि इत्यादि।
यही लोग मृत्यु के पश्चात आत्मा का न्याय करते हैं। मोटे तौर पर इस चंद्र ग्रह पर आत्माएं मृत्यु के बाद एक वर्ष से लेकर सैकड़ों वर्षों तक अपने भोग भोगती हैं।
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कैसे पहुंचती है चंद्रमा तक
दरअसल जहां हम सब लोग रहते हैं इसे हिन्दू धर्म में मृत्युलोक कहा गया है। मृत्यु शाश्वत है अटल है।मृत्यु से कोई नहीं बचा है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होना तय है।
हम जब तक जिंदा रहते हैं दुनियावी प्रपंच में उलझे रहते हैं। मृत्यु कोई नहीं सोचता न ही कोई मरना चाहता है।
लेकिन जब बुढ़ापे में मृत्यु आती है तो धर्म कहता है गरुण पुराण का पाठ करो।
अब गरुड़ पुराण क्या है। गरुड़ पुराण एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें जीवन और मृत्यु की हर सच्चाई का वर्णन है। साथ ही यह भी लिखा है कि मरने के बाद आत्मा किस तरह और किन-किन हालातों से गुजरते हुए यमलोक तक पहुंचती है।
हमारा शरीर चाहे जितना बड़ा हो लेकिन मरने के बाद जब प्राण आत्मा निकलते हैं तो उसका आकार सिर्फ हाथ के अंगूठे जितना होता है। हिन्दू धर्म कहता है मरने के बाद यमलोक पहुंचने पर पाप और पुण्य का हिसाब-किताब होता है, जिनके अनुसार आत्मा की आगे यात्रा तय होती है।
47 दिनों की यात्रा कर आत्मा पहुंचती है यमलोक
गरुड़ पुराण के अनुसार मरने के बाद 47 दिनों की यात्रा कर आत्मा यमलोक पहुंचती है। कहा जाता है कि मरने से कुछ मिनट पहले वाणी चली जाती है। यानी मरने वाला व्यक्ति कुछ बोल नहीं पाता।
कई बार मुंह से झाग या लार भी बहने लगती है। कई बार लोगों का मल मूत्र निकल जाता है। इसके बाद यमदूत शरीर के भीतर से मात्र अंगूठे के बराबर प्राण निकालकर अपने साथ यमलोक ले जाते हैं।
अब पृथ्वी लोक या मृत्युलोक से आत्मा का यमलोक का सफर शुरू होता है। यमदूत उसे अपने साथ रखते हैं। यमलोक जाते समय रास्ते भर वह उस आत्मा को यमलोक के विषय में बताते हैं, आत्मा वहां मिलने वाली यातनाओं को लेकर डरती है और जोर-जोर से चिल्लाती है। इस दौरान कई नारकीय यातनाओं का वर्णन भी आता है।
यमराज आत्मा को सुनाते है पापों की सजा
गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 योजन दूर है, एक योजन चार कोस के बराबर और चार कोस 13 किलोमीटर के बराबर होता है। लेकिन यमराज के दूत कुछ ही देर में उस आत्मा को अपने साथ यमलोक पहुंचा देते हैं।
यमलोक में आत्मा को यमदूत यमराज के सामने पेश करते हैं। यमराज उस आत्मा को उसके द्वारा किए गए पापों के अनुसार सजा सुनाते हैं।
इसके बाद वह आत्मा फिर वापस घर वापस लौटती है। घर आकर वह आत्मा अपने शरीर को वापस पाने का आग्रह करती है। कहा जाता है कि आत्मा अपना अंतिम संस्कार खुद होते देखती है।
अंतिम संस्कार के बाद घर के लोग उसका दसवां तेरहवीं करते हैं। पिंड-दान और ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं लेकिन पापी आत्मा को उस दान-पुण्य से तृप्ति नहीं मिलती। भूख और प्यास से बिलखती हुई वह दोबारा यमलोक पहुंचती है।
अगर मृत व्यक्ति के परिवारवाले पिंडदान और पूरे विधान के साथ अंतिम संस्कार नहीं करते तो वह आत्मा सुनसान जंगल में प्रेत बनकर भटकने लगती है।
क्या कहता है गरुण पुराण
गरुड़ पुराण कहता है कि मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य किया जाना चाहिए। प्रतिदिन किया जाना वाला पिंडदान चार भागों में विभाजित होता है। दो भाग पंचमहाभूत, देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत और चौथा भाग आत्मा का होता है।
नौवें दिन पिंडदान करने से आत्मा का शरीर बनने लगता है और दसवें दिन पिंडदान करने के बाद आत्मा को चलने की शक्ति मिलती है।
इस यात्रा में आत्मा को 86 हजार योजन फैली वैतरणी नदी को पार करके यमलोक पहुंचना होता है। पापात्मा अकेले ही यह यात्रा पूरी करती है। करीब 47 दिनों तक चलने के बाद आत्मा यमलोक पहुंचती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक तक पहुंचने के बीच 16 पुरियों को पार करना होता है, जो इस प्रकार हैं, सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति।
इसके बाद आत्मा यमलोक यानी चंद्रलोक पहुंच जाती है। यहीं पाप-पुण्य के हिसाब के बाद उसको रहना होता है जब तक कि दोबारा जन्म न हो जाए।
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