बेटे की शादी में मां बन गईं पुराेहित, घराती और बराती सिर्फ उन्हें ही देखते रहे
भगवान भोले की काशी हमेशा क्रांतिकारी क़दमों के लिए जानती जाती है। 51 वर्षीय शीला यादव ने अपने बेटे की शादी में जो कर दिखाया उसे करने की कोई सोच भी नहीं सकता। ऋषभ की शादी में घराती और बराती सिर्फ पुरोहित को ही देख रहे थे। किसी की नजर दूल्हे या दुल्हन पर नहीं थी।
वाराणसी : भगवान भोले की काशी हमेशा क्रांतिकारी क़दमों के लिए जानती जाती है। 51 वर्षीय शीला यादव ने अपने बेटे की शादी में जो कर दिखाया उसे करने की कोई सोच भी नहीं सकता। ऋषभ की शादी में घराती और बराती सिर्फ पुरोहित को ही देख रहे थे। किसी की नजर दूल्हे या दुल्हन पर नहीं थी। ये पुरोहित कोई और नहीं बल्कि दूल्हे की मां शीला थीं। शीला ने शादी के सभी संस्कार स्वयं किए।
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शीला ने बताया उनका मकसद सामाजिक परंपराओं को तोड़ना, किसी वर्ग विशेष के प्रतिनिधित्व को नकारना नहीं रहा। बल्कि संकल्प था कि अपने बेटे की शादी स्वयं करें।
उन्होंने कहा, बेटे की शादी में देवों की वाणी संस्कृत आशीष के तौर पर मेरे मुंह से निकले। उन्होंने इसके लिए बहुत तैयारी की थी।
शीला ने इसके लिए वधु के पिता से अनुमति भी ली। पिता मां की भावनाओं को समझते हुए इंकार नहीं कर सके।
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ऊं यशसा माद्यावापृथिवी, यशसेन्द्रा बृहस्पती। यशो भगश्च मा विदद्, यशो मा प्रतिपद्यताम्।
जब मंडप में यह मंत्र गूंजा तो सभी शीला को देख रहे थे। इस श्लोक के बाद कन्या वर को और फिर वर कन्या को माला पहनाते हैं। शादी कुछ ही मिनटों में समाप्त हो गई।
शीला यादव वाराणसी गर्ल्र्स डिग्री कालेज में अंग्रेजी की शिक्षक हैं। पति राम मिलन यादव कारोबारी हैं। बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर है। बहू वंदना बीएड व टेट कर शादी से पूर्व सुधाकर महिला कालेज में टीचर रही है। हालांकि अब उसने नौकरी छोड़ दी है।