Mulayam Singh Yadav: मुलायम सिंह पहली बार कैसे बने यूपी के CM, अजित सिंह के सपनों पर इस तरह फेर दिया था पानी

Mulayam Singh Yadav: मुलायम सिंह यादव ने सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार कमान संभाली।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2023-10-10 09:23 IST

Mulayam Singh Yadav  (photo: social media )

Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की आज पहली पुण्यतिथि है। पिछले साल आज ही के दिन गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में लंबी बीमारी के बाद मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया था। उनके निधन की खबर पाकर श्रद्धांजलि देने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा था। आज पहली पुण्यतिथि के मौके पर मुलायम के पैतृक गांव सैफई में श्रद्धांजलि का बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसके साथ ही पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ओर से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। रक्तदान शिविरों के आयोजन के साथ ही अस्पतालों में उपकरण और खाने-पीने की सामग्री बांटने की भी तैयारी है।

मुलायम सिंह यादव ने सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार कमान संभाली। इसके अलावा उन्होंने केंद्र में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालीं। मुलायम सिंह यादव पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। मुलायम के पहली बार यूपी का सीएम बनने की दास्तान काफी रोचक है। वे कद्दावर नेता और चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को पटखनी देकर पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

देश की सियासत पर छोड़ी गहरी छाप

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव कुश्ती के अखाड़े के ही नहीं बल्कि सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान थे। 28 साल की उम्र में ही पहली बार विधायक बनने वाले मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश के साथ देश की सियासत पर भी गहरी छाप छोड़ी। 1939 में 22 नवंबर को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ था।

1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने 1991 तक प्रदेश की कमान संभाली थी।


1989 में प्रदेश की सियासी तस्वीर

उत्तर प्रदेश में 80 के दशक में चार दलों जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल अ और लोकदल ब ने मिलकर जनता दल का गठन किया था। 1989 के विधानसभा चुनाव में एक दशक से ज्यादा समय बाद विपक्ष ने अपनी ताकत दिखाई थी और 208 सीटों पर जीत हासिल की थी। 425 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए 14 अतिरिक्त विधायकों की जरूरत थी।

चार दलों के विलय के बाद बने जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अजित सिंह का नाम लगभग तय हो चुका था, लेकिन फिर फैसला बदलना पड़ा क्योंकि जनमोर्चा के विधायक मुलायम सिंह के पाले में जाकर खड़े हो गए थे और मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे।


वीपी सिंह ने कर दिया था अजित के नाम का ऐलान

उस समय केंद्र में जनता दल की सरकार का गठन हो चुका था और विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। यूपी में जनता दल की जीत के साथ ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि अजित सिंह मुख्यमंत्री होंगे और मुलायम सिंह यादव डिप्टी सीएम। लखनऊ में अजित सिंह की ताजपोशी के लिए जोरदार तैयारियां चल रही थीं मगर इसी बीच मुलायम सिंह यादव ने डिप्टी सीएम का पद ठुकराते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर दी।

मुलायम की ओर से दावेदारी किए जाने के बाद मामला फंस गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने घोषणा की कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से विधायकों के गुप्त मतदान के माध्यम से किया जाएगा। इसके बाद मुलायम सिंह ने अपना सियासी कौशल दिखाते हुए अजित सिंह को पटखनी देने में कामयाबी हासिल की।


टूट गए अजित खेमे के 11 विधायक

1989 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का फैसला करने के लिए मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल को केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था। केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने भी एक बार मुलायम सिंह से चर्चा करके उन्हें डिप्टी सीएम के पद के लिए रजामंद करने की कोशिश की मगर कामयाबी नहीं मिल सकी।

मुलायम सिंह ने तगड़ा चरखा दांव खेलते हुए बाहुबली डी पी यादव की मदद से अजीत सिंह के खेमे के 11 विधायकों को तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली। इस सियासी जोड़-तोड़ में बेनी प्रसाद वर्मा ने भी मुलायम सिंह की काफी मदद की थी।


कड़े मुकाबले में पांच वोटो से पिछड़े अजित सिंह

मतदान के समय विधानसभा में मतदान स्थल पर दोनों पक्षों की ओर से शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की गई। तिलक हाल के बाहर दोनों खेमों से जुड़े हुए सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे और अपने-अपने नेता के पक्ष में नारेबाजी कर रहे थे। इस दौरान असलहों का भी प्रदर्शन किया गया था।

मुलायम सिंह और अजित सिंह के बीच काफी कड़ा मुकाबला हुआ मगर अजित सिंह मुलायम सिंह से मात्र पांच वोटों से पिछड़ गए। दोनों नेताओं के बीच काफी कड़ा मुकाबला था मगर मुलायम सिंह यादव ने सियासी कौशल दिखाते हुए चौधरी चरण सिंह की विरासत की दावेदारी कर रहे अजित सिंह को पटखनी दे दी थी।


दोनों के बेटे अब मिलकर भाजपा से लड़ रहे जंग

सियासी जानकारों का कहना है कि उस समय वी पी सिंह मुलायम सिंह यादव को पसंद नहीं करते थे और वे अजित सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के इच्छुक थे। उन्होंने इस बात की बाकायदा घोषणा भी कर दी थी। वैसे मतदान के दौरान वीपी सिंह खुलकर सामने नहीं आए और उन्होंने किसी विधायक से अजित सिंह को वोट देने की पैरवी नहीं की। ऐसे में मुलायम ने अपने सियासी कौशल से अजित सिंह के सपने को चकनाचूर करते हुए पहली बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी हासिल की थी।

बाद में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन करते हुए प्रदेश की सियासत पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली और अजित सिंह काफी पिछड़ गए। अजित सिंह के निधन के बाद अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है जबकि समाजवादी पार्टी की अगुवाई मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव कर रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा समय में अखिलेश और जयंत ने हाथ मिला रखा है और वे भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहे हैं। मुलायम सिंह के सियासी कौशल के कारण ही समाजवादी पार्टी आज उत्तर प्रदेश में बड़ी ताकत बनी हुई है। भाजपा को चुनौती देने के मामले में सपा ने कांग्रेस समेत अन्य सभी दलों को पीछे छोड़ दिया है।

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