मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड धार्मिक संस्था नहीं, केवल एनजीओः मोहसिन रजा

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने तत्काल तीन तलाक को अवैध और अपराध करार देने वाले ’मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। इस बारें में ‘न्यूज टै्रक’ से आज प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि मोदी सरकार ने इसका कानून बना दिया है।

Update:2019-10-22 21:58 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मात्र एक एनजीओ है वह कोई धार्मिक संस्था है जो मुस्लिम समाज को गुमराह करने का काम करता है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मुस्लिम महिलाओं के पैरों में बेडी डालने वाली संस्था मात्र हैं।

गौरतलब है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने तत्काल तीन तलाक को अवैध और अपराध करार देने वाले ’मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है।

इस बारें में ‘न्यूज टै्रक’ से आज प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि मोदी सरकार ने इसका कानून बना दिया है। यह वही लोग है जिन्होंने 1986 शाहबानो में मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलवा दिया। तब इन्होंने कांग्रेस को दबाव में ले लिया और बता दिया कि यह मुस्लिम समाज की बहुत बडी संस्था है।

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यह कुछ नहीं केवल एक एनजीओ है। इन लोगों ने कभी हित मे काम ही नही किया। मुस्लिम पर्सनल ला शरीयत में है ही नहीं फिर समाज को आप क्यों गुमराह कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने केवल तुष्टीकरण करने का काम किया है। यही नहीं वह तीन तलाक के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं को आगे बढना देखना ही नहीं चाहते है। महिलाओं के पैरो में बेडी डालना चा हते हैं। यह मुस्लिम समाज को गुलाम बनाए रखना चाहते हैं। लेकिन अब इनके इरादे कामयाब नहीं होंगे।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बडा काम किया और वर्षो पुरानी इस परम्परा को कानून के माध्यम से खत्म किया। अल्पसख्ंयक कल्याण मंत्री ने कहा कि किसने इनको मुस्लिम समाज का ठेका दिया है।

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यह पूछने पर कि क्या सरकार भी सुप्रीम कोर्ट जाएगी। इस पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को पता है कि यह वही पर्सनल ला बोड है जिसने 1986 में इस फैसले को राजीव सरकार को हटवाने का काम किया था। इसलिए हमे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इनकी याचिका पर विचार ही नहीं करेगा। क्योकि अदालते अधिकार दिलाने का ही काम करती है।

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