मौलाना फरंगीमहली ने कहा-भारतीय संविधान के तहत चलते हैं दारुल शफ़ा और दारुलक़ज़ा

मौलाना फरंगी महली ने कहा कि इस मुल्क में इस्लामी अदालत नाम की कोई अदालत नहीं है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम अदालत के नाम पर लोगों में बेहद भ्रम है। मुस्लिम समाज में दारुल शफा और दारुलक़ज़ा के तहत फैसले होते हैं, जो देश के संविधान के मुताबिक है।

Update:2016-12-20 18:16 IST

बाराबंकी: भारत में इस्लामी अदालत नाम की कोई चीज नहीं है। देश के मुसलमान दारुल शफा और दारुल क़ज़ा के निजाम को स्वीकार करते हैं, जो पूरी तरह देश के संविधान पर आधारित है। यह बात मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगीमहली ने कही। वह मद्रास हाईकोर्ट के पैसले पर टिप्पणी कर रहे थे। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि मुसलमान अपनी रिहाइशी अदालतें बंद करें।

नहीं है इस्लामी अदालत

-मौलाना फरंगी महली ने कहा कि इस मुल्क में इस्लामी अदालत नाम की कोई अदालत नहीं है।

-उन्होंने कहा कि मुस्लिम अदालत के नाम पर लोगों में बेहद भ्रम है।

-मुस्लिम समाज में दारुल शफा और दारुलक़ज़ा के तहत फैसले होते हैं, जो देश के संविधान के मुताबिक है।

-दारुलशफा और दारुलक़ज़ा देश में मान्य एडीआर यानी विवाद सुलझाने के वैकल्पिक नियमों के अनुसार काम करती हैं।

-दारुलशफा और दारुलक़ज़ा में दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत फैसले किए जाते हैं।

-इसके बाद दोनों में से कोई भी पक्ष अदालत जाने के लिए स्वतंत्र होता है।

सुप्रीम कोर्ट कोे निर्देशानुसार

-मौलाना फरंगीमहली ने कहा कि इससे पहले दारुलशफा और दारुलक़ज़ा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल हो चुका है।

-लेकिन मुल्क की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी दारुलशफा और दारुलक़ज़ा को बैन करने का आदेश नहीं दिया।

-बल्कि, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ हिदायतें और गाइड लाइंस दी थीं, जिनका पालन किया जा रहा है।

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