UP Nikay Chunav 2023: भाजपा ने खींच दिया 2024 का रोड मैप, पार्टी के इस कदम से सपा, बसपा और कांग्रेस के उड़े होश!

UP Nikay Chunav 2023: पार्टी ने महापौर पद के प्रत्याशियों को टिकट बांटने में जातीय संतुलन का ध्यान रखा तो परंपरागत वोट बैंक के साथ पिछडे़ और दलित वोट बैंक को भी साधने में कोई कसर नहीं छोड़ा।

Update: 2023-04-24 16:50 GMT
UP Nikay Chunav 2023

UP Nikay Chunav 2023: चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का या नगर निकाय का इसमें जीत के लिए विकास की बातें चाहे जितनी की जाएं, लेकिन जब चुनाव आता है तो सभी पार्टियां जातीय समीकरण साधने में जुट जाती हैं यानी जाति का जुगाड़ बैठाने लगती हैं। अगर जाति का जुगाड़ पक्का है तो समझो जीत पक्की है। भाजपा ने निकाय चुनाव में इसी को ध्यान में रखते हुए टिकट भी बांटे हैं। एक ओर जहां पार्टी ने अपने परंपरागत ब्राह्मण और वैश्य वोट बैंक को साधने की कोशिश की है तो वहीं पिछड़े और दलित वोट बैंक को प्रतिनिधित्व देकर समाजिक समीकरण के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधने की कोशिश की है। भाजपा के इस कदम से सपा, बसपा और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़नी तय है। भाजपा की इस तैयारी से विरोधियों के होश उड़ गए हैं।

सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा यूपी की सभी 80 सीटों पर अपनी जीत दर्ज करने के लिए अभी से प्लान बना रही है। भाजपा की नजरें यूपी के लोकसभा की कुल अस्सी सीटों पर टिकी हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने नगर निगम महापौर चुनाव में अपने परंपरागत ब्राह्मण और वैश्य वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। पार्टी ने महापौर की यूपी की कुल 17 सीटों में पांच पर ब्राह्मण और पांच पर वैश्य चेहरे को महापौर प्रत्याशी बनाया है तो वहीं पिछड़े व दलित वोट बैंक को भी प्रतिनिधित्व देकर सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश की है।

अभी से 2024 की तैयारी

ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य और कायस्थ भाजपा का सबसे पुराना परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में मिशन 80 का लक्ष्य रखा है। पार्टी ने इस लक्ष्य को पाने के लिए निकाय चुनाव से ही अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ पिछड़े व दलित वर्ग में भी अपने बड़े वोट बैंक को साधने की रणनीति अपनाई है। निकाय चुनाव में टिकटों के बंटवारे से भाजपा का यह समीकरण साफ दिख रहा है।

हर वर्ग का रखा ख्याल

यूपी में महापौर की 17 सीटें हैं। 16 अप्रैल को भाजपा ने जब महापौर की पहली सूची जारी किया था तो उसमें भी जातीय समीकरण को ध्यान में रखा गया था। 16 अप्रैल को महापौर की घोषित 10 सीटों में तीन वैश्य, दो ब्राह्मण, एक कुर्मी, एक तेली, एक कोरी, एक धोबी और एक कायस्थ समाज के कार्यकर्ता को टिकट दिया है। इस तरह देखा जाए तो महापौर चुनाव में भाजपा ने पांच ब्राह्मण, पांच वैश्य, दो कुर्मी, एक कोरी, एक धोबी, एक तेली, एक कलाल और एक कायस्थ को मौका दिया है।

...टिकट बंटवारे में ही दिख गया पार्टी का प्लान

भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से अशोक तिवारी, लखनऊ से सुषमा खर्कवाल, अयोध्या से गिरिशपति त्रिपाठी, कानपुर से प्रमिल पांडेय, बरेली से उमेश गौतम को महापौर का प्रत्याशी बनाया है। ये सभी ब्राह्मण समाज से हैं। वहीं मुरादाबाद से विनोद अग्रवाल, मथुरा-वृंदावन से विनोद अग्रवाल, प्रयागराज से उमेश चंद्र खर्कवाल, गाजियाबाद से सुनीता दयाल और अलीगढ़ प्रशांत सिंघल को महापौर का प्रत्याशी बनाया है ये सभी वैश्य समाज से हैं और वहीं गोरखपुर नगर निगम से प्रत्याशी डॉ. मगलेश श्रीवास्तव कायस्थ समाज से हैं।

पिछड़ों और दलितों का भी साधा संतुलन

पिछड़े वर्ग में कुर्मी और तेली समाज को भाजपा का बड़ा वोट बैंक माना जाता है। पार्टी ने सहारनपुर से अजय कुमार और शाहजहांपुर से कुर्मी समाज की अर्चना वर्मा को महापौर का टिकट देकर कुर्मी समाज को भी दो सीट दी है। वहीं फिरोजाबाद में तेली समाज की कामिनी राठौर को प्रत्याशी बनाया है तो मेरठ नगर निगम के प्रत्याशी हरीकांत आहलूवालिया पंजाबी कलाल समाज से हैं। अनुसूचित जाति वर्ग में झांसी से बिहारी लाल वर्मा कोरी समाज से हैं तो वहीं आगरा से महापौर प्रत्याशी हेमलता दिवाकर धोबी समाज से हैं।

जिम्मेदारों पर फिर जताया भरोसा

भाजपा ने 16 नगर निगम में से 13 में इस बार नए चेहरों को मौका दिया है। शाहजहांपुर नगर निगम में पहली बार चुनाव हो रहे हैं। वहीं आरक्षण बदलने या जनता से मिले फीडबैक के आधार पर 11 निवर्तमान महापौर के टिकट काट दिए गए हैं। 2017 में अलीगढ़ और मेरठ में बसपा के मेयर चुने गए थे। वहीं पार्टी ने मुरादाबाद नगर निगम के निवर्तमान महापौर विनोद अग्रवाल, बरेली के निवर्तमान महापौर उमेश गौतम और कानपुर नगर निगम की निवर्तमान महापौर प्रमिला पांडेय पर फिर भरोसा जताते हुए उन्हें दोबारा मौका दिया है।

परिवारवाद से बनाई दूरी, कार्यकर्ताओं को दिया मौका

भाजपा हमेशा परिवारवाद के खिलाफ रही है और यही कारण है कि पार्टी ने महापौर चुनाव के दूसरे चरण में भी परिवारवाद से दूरी बनाए रखी। नगर पालिका परिषद अध्यक्ष और नगर निगम महापौर प्रत्याशी में पार्टी ने किसी भी सांसद, विधायक और मंत्री के परिजनों को टिकट नहीं दिया है। वहीं 17 नगर निगम में एक प्रदेश उपाध्यक्ष, एक क्षेत्रीय मंत्री, दो महानगर अध्यक्ष, एक प्रदेश कार्यसमिति सदस्य, पूर्व विधायक को प्रत्याशी बनाकर कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी को उनकी चिंता है। हालांकि चुनाव जीत के लिए शाहजहांपुर नगर निगम में चंद घंटे पहले सपा से आईं अर्चना वर्मा को भी भाजपा ने टिकट दिया है।

विरोधियों को इस तरह दे दिया मात

नगर निगम में भाजपा ने जिस तरह से जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए टिकट बांटा है। उससे सपा, बसपा और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भाजपा ने अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ अखिलेश के पिछड़ा और मायावती के दलित वोट बैंक को भी अपने पक्ष में लाने की कोशिश की है। भाजपा का यह प्लान 2024 में विरोधियों की परेशानी बढ़ा सकता है।

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