लखनऊ की तरह वाराणसी में भी भारतेन्दु नाट्य अकादमी

भारतेन्दु नाट्य अकादमी द्वारा 'भारतेन्दु जयंती' के अवसर पर गोष्ठी तथा साहित्यकारों का सम्मान तदुपरान्त छात्रों ने भारतेन्दु के याद में आज भारतेन्दु नाट्य अकादमी, विकास खण्ड-1 गोमती नगर में ‘भावांजलि’ प्रस्तुत किया।

Update:2023-04-13 03:12 IST

लखनऊ: भारतेन्दु नाट्य अकादमी द्वारा 'भारतेन्दु जयंती' के अवसर पर गोष्ठी तथा साहित्यकारों का सम्मान तदुपरान्त छात्रों ने भारतेन्दु के याद में आज भारतेन्दु नाट्य अकादमी, विकास खण्ड-1 गोमती नगर में ‘भावांजलि’ प्रस्तुत किया।

संस्कृति मंत्री डाॅ नीलकंठ तिवारी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारतेन्दु हरीशन्द्र, स्वामी विवेकानन्द तथा शंकराचार्य ने बहुत कम उम्र में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी। उनहोंने कहा कि महान बनने के लिए लम्बी उम्र की जरूरत नहीं , बल्कि कम समय में ही बड़े काम करके कोई भी इंसान बड़ा बन सकता है।

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उन्होंने कहा कि आज के समय में उनके द्वारा दी गई शिक्षा से हम सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतेन्दु हरीशचन्द्र ने विपरीत परिस्थितियों में हिन्दी भाषा एवं सनातनी व्यवस्था को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि मै सौभाग्यशाली हूं कि मै उसी काशी का निवासी हूं तथा उसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी करता हूं।

डाॅ तिवारी ने कहा कि हिन्दी भाषा में उस समय फारसी भाषा का प्रयोग किया जाता था, परन्तु भारतेन्दु जी ने सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए विदेशी प्रभाव को दूर करते हुए उन्होंने अपनी भाषा को प्रतिस्थापित किया। डा0 तिवारी ने कहा कि भारतेन्दु जी के पूर्वज प्रो. अंग्रेज थे। उनके परिवार के ऊपर अंग्रेजी का प्रभाव था, परन्तु उन्होंने शासन व्यवस्था के विरुद्ध जाकर नाटक भारतदुर्दशा प्रस्तुत किया।

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डाॅ नीलकंठ तिवारी ने कहा कि आज प्रदेश एवं केन्द्र की सरकार जो महिलाओं, लड़कियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है, चाहे वह बालिका पढ़ाओ-बालिका बढ़ाओं का अभियान चलाया जा रहा है। भारतेन्दु हरीशचन्द्र जी ने उस समय महिला शिक्षा पर पत्रिका निकालना शुरू किया था।

इसी प्रकार से उन्होंने छुआछूत के विरुद्ध भी अभियान चलाकर काम किया था। डाॅ नीलकंठ तिवारी ने भारतेन्दु नाट्य अकादमी के निदेशक से कहा कि लखनऊ की तरह वाराणसी में भी भारतेन्दु नाट्य अकादमी खोली जाय। उन्होंने निदेशक से कहा कि भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के परिसर में भारतेन्दु जी की प्रतिमा लगायी जाय।

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डाॅ तिवारी कहा कि हिन्दी का उन्नयन करने के साथ ही अन्य भाषाओं में भी रचना की। उन्होंने काव्य में ब्रज भाषा का प्रयोग किया। वे हिन्दी के अतिरिक्त अन्य छः भाषाओं के भी जानकार थे। उन्होंने सभी प्रकार से समन्जस्य बनाकर स्वतंत्रता के विगुल को साहित्य के रूप में फूकने का भारत के भैभव को स्थापित करने के लिए अल्प आयु में काम किया।

कार्यक्रम में डाॅ उर्मिल कुमार थपिलयाल, डाॅ सूर्य प्रसाद दीक्षित, सुधाकर अदीब, डाॅ सदानन्द गुप्त, प्रो0 राम मोहन पाठक तथा पदमकान्त शर्मा ने भारतेन्दु हरीशचन्द्र जी के जीवन पर प्रकाश डाला तथा हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में दिये गये योगदान से सभी को अवगत कराया।

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