ओमप्रकाश राजभर: ऑटो चालक से तय किया मंत्री तक का सफर

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर जातियता के आधार पर अपनी राजनीति पारी की शुरूआत की, लेकिन पहली बार वे विधायक 2017 में भाजपा के सहारे बने और योगी सरकार में पिछड़ा व दिव्यांग जनकल्याण मंत्री भी बनाए गए।

Update:2019-05-20 21:37 IST

धनंजय सिंह

लखनऊ: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर जातियता के आधार पर अपनी राजनीति पारी की शुरूआत की, लेकिन पहली बार वे विधायक 2017 में भाजपा के सहारे बने और योगी सरकार में पिछड़ा व दिव्यांग जनकल्याण मंत्री भी बनाए गए। लेकिन इसके बाद वह लगातार बीजेपी के विरोध में बयान देकर सुर्खियों में बने रहे।

27 अक्टूबर 2002 में वाराणसी के सारनाथ में भारतीय समाज पार्टी का गठन हुआ। इस पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हैं। श्री राजभर का जन्म 1962 में वाराणसी जनपद के फुलपुर थाना क्षेत्र के फतेहपुर खतैना गांव में हुआ। शुरुवाती दौर इनका काफी कठिनाईय़ों से भरा रहा।

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जीविका के लिए जीप औऱ आटों चलाया। 1981 में कांशीराम के दौर में ओमप्रकाश राजभर ने राजनीतिक पारी की शुरुआत किया। उन्होंने 1980 में काशीराम द्वारा दलितों के उत्थान के लिए बनाये गये 'बामशेफ' से प्रभावित हुए औऱ 1981 में सफर शुरु कर दिया। 1996 में बसपा से टिकट पाकर वाराणसी के 'कोलसला' विधानसभा से चुनाव लड़ा। लेकिन हार गये।

उस वक्त बसपा शासन काल में वाराणसी के जिलाध्यक्ष रहे। साथ ही सरकारी योजनाओं में दलितों का ज्यादा लाभ देने और राजभरों का लाभ नहीं मिलने की बात को लेकर मायावाती से विवाद किया। इसके साथ ही 2001 में भदोही का नाम बदलकर संतकबीरनगर रखने को लेकर मायावती से विवाद हुआ। इसी विवाद में बसपा छोड़ दिया।

बसपा छोड़कर 27 अक्टूबर 2002 में राजभरों के हितों के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का निर्माण वाराणसी के सारनाथ में किया। साथ ही पूर्वाचल राज्य का गठन और राजभरों को दलितों की श्रेणी में शामिल करने की लड़ाई को धार दिया।

2007 में 54 सिटों पर चुनाव लड़े। 2012 में कौमी एकता दल से गठबंधन किया। 35 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत के मामलें में भाजपा और कांग्रेस से आगे रहे।

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गठबंधन से मुख्तार परिवार को फायदा हुआ। 2012 के चुनाव में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद व मऊ सदर सीट पर अंसारी बंधु जीते।

पूर्वाचल की जातिगत गणना में राजभरों की गिनती करीब 18 प्रतिशत है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भले ही चुनाव न जीती हो। पर जब भी

प्रत्याशी लड़े खेल बिगाड़ने का काम किया। 2014 में ओमप्रकाश राजभर के बीजेपी के साथ जाने की चर्चा थी, पर तब गठबंधन नहीं हुआ। 2017 में भाजपा गठबंधन में आठ सिट में चार सिटों पर विजय मिला। जिनमें गाजीपुर के जहुराबाद विधानसभा से विधायक बने। गाजीपुर जनपद के जखनिया विधानसभा, वाराणसी के अजगरा विधानसभा और कुशीनगर के रामकोला विधानसभा से उनकी पार्टी के प्रत्याशियों को जीत मिला।

उन्होंने बलिया को कर्मभूमि बनाया। परिवार लखनऊ रहता है। वाराणसी के फतेहपुर गांव में पार्टी मुख्यालय बनाया हैं। दो बेटे अरविन्द और अरुण राजभर दोनी ही पार्टी के राष्ट्रीय शीर्ष पर विराजमान हैं। अरविन्द राजभर को दर्जा प्राप्त मंत्री का भी पद दिया गया। इसके साथ पार्टी के कुछ लोगों को भी दर्जा प्राप्त मंत्री भाजपा सरकार ने बनाया।

अब योगी सरकार से बर्खास्तगी के बाद ओमप्रकाश राजभर की मुश्किले बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। योगी सरकार ओमप्रकाश को बहुत बर्दाश्त कर चुकी हैं। अब उनके खिलाफ कार्य़वाही के लिए तैयार है।

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