पाक ने टेके घुटने, अंतरराष्ट्रीय फलक पर साथ देने वाला कोई नहीं

Update:2019-03-01 13:00 IST

राजीव सक्सेना

लखनऊ: पाक सेना के लिए खून और फरेब से सने अपने दामन को बचाना मुश्किल हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय फलक पर उसका साथ देने को कोई भी खड़ा नहीं हो रहा है। पुलवामा कांड और उसके बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने बेहद संयम, संजीदगी और राजनीतिक परिपक्वता का प्रदर्शन किया है। भारत ने जिस तरह पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई कर अपना रुख पूरी दुनिया के सामने स्पष्ट कर दिया, उसका नतीजा पाकिस्तान के घुटने टेकने के रूप में सामने आया है। भारत के विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की घोषणा इसका बड़ा उदाहरण है। यह ऐलान पाक संसद के साझा सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री इमरान खान ने किया।

यह जग जाहिर होते हुए भी कि पुलवामा कांड में शामिल जैश-ए-मोहम्मद के अलावा हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तोएबा जैसे 60 से अधिक जिहादी गैंग पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के इशारे पर नाचते हैं, भारत के राजनैतिक नेतृत्व और सेना ने बहुत संयम से काम लिया। पक्के इंटेलिजेंस के आधार पर हमारे मिराज, सुखोई व अवाक्स विमानों के बेड़े ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार कर, पाकिस्तान में घुसकर बालाकोट में जैश के छह एकड़ में फैले अड्डे को ध्वस्त कर दिया और 300 से अधिक जिहादियों को मौत की नींद सुला दिया। इस कार्रवाई से पाकिस्तानी सेना के आका सकते में आ गए। पाकिस्तान ने ऐसी कड़ी कार्रवाई की उम्मीद नहीं की होगी। भारत ने बुद्धि व सदाशयता से काम लिया। २६ फरवरी की रात में बालाकोट में पूर्णत: सफल हमला करने के बाद भारत के विदेश सचिव ने प्रेस को साफ बताया कि हमारा हमला ‘नॉन-मिलिट्री’ और ‘प्री-एम्प्टिव’ था यानी भारत ने किसी पाकिस्तानी सैनिक अड्डे या संस्थान पर आक्रमण नहीं किया और जैश के जिहादी प्रशिक्षण के प्रमुख केंद्र को नेस्तानाबूद किया क्योंकि विश्वस्त खबर मिली थी की जैश का सरगना मसूद अजहर एक और पुलवामा कांड दोहराने की तैयारी कर रहा था।

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गौरतलब है कि पुलवामा नरसंहार के बाद भी पाक सरकार ने अपने किसी भी आतंकवादी को छुआ तक नहीं उल्टे छुपा जरूर दिया। प्रधानमंत्री इमरान खान तो नाम के शासक हैं, सेना के हुक्म बजाते हैं और एहसानमंद हैं मसूद अजहर के भी जिसने पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में चुनाव में उनकी बड़ी सहायता की थी।

पराक्रम पर राजनीति का आरोप

इस्लामाबाद से तो खास आशा भारत को कभी नहीं रही है पर भारत के विपक्षी दल भी कुछ कम नहीं हैं। सुबह से शाम तक नरेंद्र मोदी पर आरोप मढ़े जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री वर्तमान संकट और हमारे सैनिकों के पराक्रम का राजनीतिकरण कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में तथाकथित महागठबंधन भयभीत है कि भारत-पाक संकट में कहीं मोदी अपनी चुनावी क्षमता में अभूतपूर्व इजाफा न कर लें। तो क्या प्रधानमंत्री मोदी को हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना चाहिए? क्या जिस प्रबल इच्छा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने सेना को जो खुला हाथ दिया है वह उन्हें नहीं करना चाहिए था? और वह भी इसलिए की एक टूटा फूटा अति महत्वाकांक्षी राजनेताओं का जमावड़ा सत्ता के बिना सांस नहीं ले पा रहा है।

ट्रंप की तनाव खत्म करने की सलाह

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान कि कुछ भली खबर आने वाली है, यह इंगित करता है कि उन्होंने दिल्ली और इस्लामाबाद को इस तनाव वाली स्थिति को जल्द से जल्द समाप्त करने की सलाह दी है। वस्तुत: ऐसे समय पर अनेक स्तरों पर बात होती है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शस्त्र संपन्न देश हैं और सबका प्रयास रहेगा कि बात और न बिगड़े। इमरान खान ने तो थोड़ी लाग लपेट के साथ यह कह भी दिया है कि यदि दोनों देश वार्ता नहीं करते तो बात न उनके और न भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नियंत्रण में रह पाएगी। परमाणु युद्ध की गीदड़ भभकी देना पाकिस्तान का स्वभाव बन चुका है। परमाणु शस्त्रों का प्रयोग मात्र एक ही अर्थ रखता है-पाकिस्तान के वजूद की समाप्ति। ब्लैकमेल नहीं चलने वाला है। न ही परमाणु शक्ति का या फिर किसी अन्य चीज का। कोई आश्चर्य नहीं कि पाक टीवी चैनल यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आज चीन भी उनका खुला समर्थन नहीं कर रहा है। पाकिस्तान ने अपने को अस्पृश्य बना लिया है।

आत्मरक्षा के लिए की जा सकती है कार्रवाई

यूनाइटेड नेशंस के चार्टर 51 के तहत कोई भी राष्ट्र आत्मरक्षा के लिए कार्रवाई कर सकता है। भारत ने इसी चार्टर के दायरे में रहते हुए अपनी कार्रवाई की। बालाकोट की सफलता ने आम भारतीय को हर्षित कर दिया है, लेकिन यह सोचना कि यह पाकिस्तान के कट्टरवादी ‘डीप स्टेट’ को आतंकवाद से तौबा करने के लिए मजबूर कर देगा, एक बड़ी मूर्खता होगी। पाकिस्तान ने बुधवार को हमारी सीमा के 3-4 किलोमीटर अंदर घुसकर आक्रमण किया जिसमें उसने एक एफ-16 फाइटर विमान खोया। पाकिस्तान के आक्रमण को नाकाम करने के क्रम में हमारा एक मिग 21 धराशायी हुआ और उसका पायलट पाकिस्तान ने गिरफ्तार कर लिया। कैदी पायलट को पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर बार-बार दिखाया गया। लाइन ऑफ कंट्रोल पर पाकिस्तान द्वारा तगड़ी गोलाबारी जारी है। इस्लामाबाद ऐसा क्यों होने दे रहा है? स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपनी जम्हूरियत को दिखाने के लिए ही यह सब कर रहा है। पाकिस्तान ने जिस तरह भारत में हवाई आक्रमण के पीछे तर्क गिनाए, उससे यह साफ है।

युद्ध से होगा दोनों पक्षों का नुकसान

भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसा माहौल बन रहा है, लेेकिन यहां ध्यान देना होगा कि युद्ध एक दुधारी तलवार है। यह दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचाती है। इस स्थिति में दोनों ही पक्षों को क्षति के लिए तैयार रहना होता है। पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति शोचनीय है। उसके पास चार दिन के आमने-सामने के युद्ध के लिए पर्याप्त गोला बारूद भी नहीं है। तुलनात्मक दृष्टि से भारत की फौज काफी बेहतर स्थिति में है पर उसकी सेहत को स्वस्थ कहना भी उचित नहीं है। बहरहाल, आमने-सामने के किसी संघर्ष की स्थिति में उम्मीद की जानी चाहिए कि चीन अपने पुराने मित्र पाकिस्तान के लिए हस्तक्षेप नहीं करेगा। अभी तक तो बीजिंग ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए आतंकवाद की निंदा की है। जबकि रूस, अमेरिका, फ्रांस समेत 40 देशों ने आतंक के पनाहगार पाकिस्तान को सुधरने की नसीहत दी है।

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आज इस्लामाबाद अलग-थलग पड़ गया है। बढिय़ा कूटनीति भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो कार्रवाई की वह कूटनीतिक आधार पर बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि भारत ने पाकिस्तान की एटमी हथियार की धमकी की परवाह नहीं की। अभी तक यही कहा जाता था कि भारत के पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के पास एटमी हथियार हैं, लेकिन अब भारत ने दिखा दिया कि उसके पास बेहतर विकल्प हैं जिनका वह इस्तेमाल करेगा। यह भी बढिय़ा कूटनीति का परिचय है कि भारत ने दुनिया को संदेश दिया कि वह पाकिस्तान की संप्रुभता के खिलाफ नहीं है बल्कि जो कार्रवाई की गई है वह आतंकवाद के खिलाफ है। उन तत्वों के खिलाफ है जो जगजाहिर आतंकी हैं।

परमाणु युद्ध के नतीजे बहुत भयावह होंगे

भारत की नीति पहले परमाणु हथियारों का उपयोग न करने की है, लेकिन अगर पाकिस्तान की ओर से पहल की गई तो भारत ही नहीं, आधी दुनिया इसकी चपेट में आ जाएगी। यह चिंता पूरी दुनिया को है। पाकिस्तान का तो वजूद ही खत्म हो सकता है। कोई भी देश नहीं चाहता कि एटमी ताकत से लैस देश फुल स्केल युद्ध में लिप्त न हों।

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पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा एटमी हथियार होने की संभावना है। पाकिस्तान के पास डर्टी बम भी मौजूद हैं, जो ज्यादा खतरनाक रेडियोधर्मी पदार्थ और एटमी मिसाइल होता है। भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की स्थिति में 12 करोड़ लोग इससे तुरंत प्रभावित हो सकते हैं। परमाणु युद्ध के बाद किसी भी देश को जो नुकसान होगा उससे उबरना काफी मुश्किल होगा। आर्थिक, सामाजिक ढांचा खड़ा करने में कई दशक लग जाएंगे। भारत और पाकिस्तान के बीच चरम पर तनातनी के वक्त हनोई (वियतनाम) में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग के बीच शिखर बैठक हुई।

ट्रंप इस कोशिश में थे और दबाव डाल रहे थे कि किम जोंग अपने एटमी हथियार त्याग दें। ट्रंप अपने युवा दोस्त को बता रहे थे कि अगर वह निशस्त्रीकरण की बात मान लेगा तो कैसे वह भविष्य में आर्थिक पावर हाउस बन जाएगा। अमेरिका कई वर्षों से नॉर्थ कोरिया को समझाने-बुझाने में लगा हुआ है, लेकिन नॉर्थ कोरिया हमेशा भारत और पाकिस्तान का उदाहरण देता है कि कैसे इन दो देशों ने एटमी ताकत हासिल कर ली और दोनों अमेरिका के दोस्त भी बने रहे। यह स्थिति एटमी हथियारों की विडम्बना को दर्शाती है। निशस्त्रीकरण के हिमायती तर्क देते हैं कि जब एटमी हथियार ही नहीं होंगे तो उनके इस्तेमाल का खतरा भी नहीं रहेगा, लेकिन युद्ध की स्थिति में वहां तक की नौबत ही न आए इसके लिए एटमी हथयिार जरूरी हैं यह दूसरे पक्ष का तर्क रहता है।

भारत-पाकिस्तान के बीच एटमी हथियारों का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आगे भी कभी नहीं हो सकता है। दोनों देशों की बड़ी जनसंख्या को कारगिल से पहले की लड़ाइयों की कोई स्मृति नहीं है या बहुत कम याद है। वजह यह कि भारतीय जनसंख्या की औसत उम्र २७ वर्ष से कम है जबकि पाकिस्तान की तो २३ वर्ष ही है।

(इस विश्लेषण के लेखक दि इंडियन एक्सप्रेस (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) के पूर्व स्थानीय संपादक हैं)

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