स्वच्छ भारत मिशन पर दाग, शौचालय निर्माण में बड़ा घोटाला, पैसे की हुई हेरा-फेरी

लखनऊ: स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सूचना, शिक्षा एवं सम्प्रेषण (आईईसी) भी है। इसका मकसद ग्रामीणों को खुले में शौच से छुटकारा दिलाने के लिए शौचालय उपयोग

Update: 2017-06-02 12:32 GMT

लखनऊ: स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सूचना, शिक्षा एवं सम्प्रेषण (आईईसी) भी है। इसका मकसद ग्रामीणों को खुले में शौच से छुटकारा दिलाने के लिए शौचालय उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना है मगर भ्रष्ट अफसर इसमें भी सेंधमारी करने से नहीं चूके। शौचालय निर्माण के लिए आए करोड़ों रुपये का बड़ा हिस्सा प्रोत्साहन में ही खर्च कर डाला। इसकी शिकायत होने पर विभाग ने भ्रष्टाचारियों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए इन गड़बडिय़ों की जांच का जिम्मा कनिष्ठ व दागी अफसरों को सौंप दिया। उन्होंने पूरे मामले पर लीपापोती कर दी। यह प्रकरण स्वच्छ भारत मिशन पर अपने दाग छोड़ गया है।

आखिर क्या है आईईसी?

सूचना, शिक्षा एवं सम्प्रेषण (आईईसी) के जरिए मैनपावर, संचार, तकनीकी, मीडिया आदि का उपयोग करते हुए स्वच्छता संदेश प्रसारित करना ताकि ग्राम पंचायतों में लोगों को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इसके तहत प्रचार-प्रसार सामग्री का प्रकाशन (पोस्टर, बैनर, पम्फलेट, स्पीकर एवं पुस्तिका), नुक्कड़ नाटक, समाचार पत्रों में विज्ञापन आदि भी किया जाता है। इसके लिए निजी संस्थाओं के इस्तेमाल का प्राविधान है।

जिलों में अफसरों ने दिल खोलकर खर्च किया

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की गाइडलाइन के मुताबिक आईईसी गतिविधियों पर कुल बजट का 10 फीसदी ही खर्च किया जा सकता हैं, लेकिन इसके उलट जिलों में आईईसी गतिविधियों में अफसरों ने दिल खोलकर पैसे खर्चे। 2014-15 में फतेहपुर में निर्माण कामों में 80 लाख रुपये खर्च हुए। नियमों के मुताबिक आईईसी गतिविधियों में इसका 10 फीसदी यानी आठ लाख रुपये खर्चे जा सकते हैं पर इसके उलट 3.97 करोड़ स्वीकृत किए गए।

देखा जाए तो 2013-14 में अकेले कौशाम्बी जिले में 3.18 करोड़ निर्माण में खर्च हुए। गाइडलाइन के अनुसार इसमें से सिर्फ 31 लाख ही प्रोत्साहन में खर्च किए जा सकते थे जबकि 2.49 करोड़ रुपये माह भर में ही खर्च कर दिए गए। जिला स्वच्छता समिति की तत्कालीन अध्यक्ष नीलम अहलवात ने आठ फरवरी को कौशाम्बी के जिलाधिकारी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया मगर आईईसी काम के लिए संस्थाओं के चयन की निविदा पर उनके हस्ताक्षर छह फरवरी के हैं। यह काम के टेंडर में बड़े घपले की तरफ इशारा करता है। इसी तरह 2013-14 और 2014-15 में गाजीपुर में जागरूकता कार्यक्रम पर कुल 47.80 लाख खर्च किए गए।

मिशन की गाइडलाइन के अनुसार इतनी धनराशि जागरूकता पर नहीं खर्च की जा सकती। 2011-12 में आजमगढ़ में जागरूकता के लिए 3.32 करोड़ रुपये अनुमोदित किए गए। पंचायत उद्योग से यह काम कराने का निर्णय लिया गया। जांच में पता चला कि उन्होंने यह काम किसी निजी संस्था को दे दिया। इसी तरह कासगंज, गोरखपुर, अमरोहा, अम्बेडकरनगर और मुरादाबाद में आईईसी गतिविधियों में अनियमितताओं को अंजाम दिया गया। पंचायतीराज विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भूपेन्द्र सिंह चौहान का कहना है कि इस मामले की जांच होगी।

केंद्र ने प्रशासनिक खामियों की बात मानी

केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने भी घपले की जांच के आदेश दिए थे और तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन से रिपोर्ट मांगी थी। जिलाधिकारी जिला स्वच्छता समिति का अध्यक्ष होता है और मुख्य विकास अधिकारी सहित अन्य अफसर समिति में शामिल होते हैं। फिर भी जिलों में घपलों की जांच कनिष्ठ अफसरों से करायी गई। बाद में केंद्र के स्वच्छता भारत मिशन (ग्रामीण) के अवर सचिव ख्रिस्टिना कुजूर ने भी माना कि योजना को लागू करते समय कुछ प्रशासनिक त्रुटियों का पता चला है मगर यह मामला राज्य सरकार का है।

पहले भी हुई थी जांच मगर कार्रवाई नहीं

ऐसा नहीं है कि घपलों की पहले जांच नहीं हुई। 2009-10 और 2010-11 में महराजगंज में आईईसी में गड़बड़ी की शिकायतें आई थीं। नियमों को दरकिनार करते हुए एक निजी संस्था को 3.77 करोड़ का काम आवंटित कर दिया गया और महीने भर में उसका भुगतान भी कर दिया गया। तब तत्कालीन उपनिदेशक पंचायतीराज आरके तिवारी ने मामले की जांच की थी और महराजगंज के तत्कालीन जिला पंचायत राज अधिकारी दोषी पाए गए थे मगर उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं हो सकी।

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क्या है स्वच्छ भारत मिशन

केंद्र सरकार ने 1986 में केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया था। इसे सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के नाम से 1999 में लागू किया गया। मोदी सरकार बनने के बाद संपूर्ण स्वच्छता अभियान का नाम बदलकर निर्मल भारत अभियान कर दिया गया। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की। इसके तहत स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) आते हैं।

निजी संस्था के टेंडर में खेल

अखिलेश सरकार में आईईसी गतिविधियों का ठेका जिस निजी संस्था को दिया गया उस पर भी आरोप लगते रहे हैं कि विभागीय अफसरों ने मिलीभगत कर काम के टेंडर में ऐसी शर्तों का उल्लेख किया जिससे ज्यादातर कंपनियां स्वत: प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गयीं। विभाग भले ही निविदा के जरिए काम के लिए संस्था चयन करने का दावा कर रहा हो मगर आश्चर्यजनक तरीके से ज्यादातर जिलों में एक ही निजी संस्था को काम मिला।

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