Allahabad HC: 'महिला प्रधान कोई रबर स्टैंप हैं?', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा, अदालत जाना 'प्रधान पति' को पड़ गया महंगा

Allahabad HC News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि, 'प्रधान पति का गांव सभा के कामकाज से कोई लेना-देना नहीं है। अगर, ऐसी अनुमति दी जाती है तो यह महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य को विफल करेगा।'

Report :  aman
Update:2023-11-29 12:02 IST

Allahabad HC (Social Media)

Allahabad HC News: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने यूपी में महिला प्रधानों के स्थान पर उनके 'पतियों के काम करने की प्रथा' की आलोचना की। उच्च न्यायालय ने कहा कि, 'ऐसी दखलअंदाजी राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देने के मकसद को कमजोर करती है। एक 'प्रधान पति' अर्थात एक महिला प्रधान के पति द्वारा दायर की गयी रिट याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी (Justice Saurabh Shyam Shamsheri) ने कहा कि, उसका ग्राम सभा के कामकाज से कोई लेना-देना नहीं होता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HC News) ने कहा, 'प्रधान पति' शब्द यूपी में काफी लोकप्रिय है। इसका व्यापक स्तर पर इसका उपयोग होता रहा है। इसका उपयोग एक महिला प्रधान के पति के लिए किया जाता है। जबकि, वह अधिकृत प्राधिकारी नहीं होता है, बावजूद प्रधान पति आमतौर पर एक महिला प्रधान अर्थात अपनी पत्नी की ओर से कामकाज करता है।'

'ऐसे में निर्वाचित प्रतिनिधि महज मूकदर्शक'

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने आगे कहा, 'ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक महिला प्रधान सभी व्यवहारिक उद्देश्यों के लिए केवल एक 'रबड़ स्टैंप' की माफिक काम करती है। सभी प्रमुख फैसले तथाकथित प्रधान पति द्वारा लिए जाते हैं। ऐसे में निर्वाचित प्रतिनिधि महज मूकदर्शक की तरह काम करती है। यह रिट पिटीशन ऐसी स्थिति का जीता-जागता उदाहरण है।'

जानिए क्या है मामला?

आपको बता दें, यह रिट याचिका बिजनौर की नगीना तहसील के मदपुरी गांव की ग्राम सभा ने अपनी प्रधान कर्मजीत कौर (Pradhan Karmjeet Kaur) के मार्फत दायर की थी। रिट याचिका के साथ निर्वाचित प्रधान के पक्ष में ऐसा कोई प्रस्ताव संलग्न नहीं था, जिसमें उसके पति इस रिट के लिए अधिकृत किया गया हो। रिट याचिका (writ petition) के साथ 'प्रधान पति' अर्थात कर्मजीत कौर के पति सुखदेव ने एक हलफनामा लगाया गया था।

अपने कर्तव्य किसी को नहीं सौंप सकती

हाईकोर्ट ने इसी मामले में कहा, 'प्रधान के तौर पर याचिकाकर्ता को अपने निर्वाचित पद से अधिकार, कर्तव्य आदि अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने का कोई अधिकार नहीं है। यहां पैरोकार यानी प्रधान पति का गांव सभा के कामकाज से कोई लेना-देना नहीं है।'

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