Prayagraj News: बारूद और भाले भी साक्षी बने इस अखाड़े की पेशवाई में, महाकुंभ में किया प्रवेश

Prayagraj News: आदि गुरु शंकराचार्य के प्रयास से छठी शताब्दी में संगठित रूप में अस्तित्व में आये अखाड़ो की स्थापना शस्त्र और शास्त्र दोनों को आगे बढाने के लिए की गई ।

Report :  Dinesh Singh
Update:2025-01-01 19:49 IST

Prayagraj News ( Photo- Newstrack )

Prayagraj News:  प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होने जा रहे महाकुम्भ में अखाड़ो के कई रंग देखने को मिल रहे है । श्री पंच दशनाम अटल अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा यानी पेशवाई में शास्त्र से अधिक शस्त्र कला की बानगी देखने को मिली।

इष्ट देव भगवान गजानन को लेकर कुंभ क्षेत्र में प्रवेश हुआ अटल अखाड़ा

आदि गुरु शंकराचार्य के प्रयास से छठी शताब्दी में संगठित रूप में अस्तित्व में आये अखाड़ो की स्थापना शस्त्र और शास्त्र दोनों को आगे बढाने के लिए की गई । शास्त्र ने अगर शंकर के धार्मिक चिंतन को जन जन तक पहुचाया तो वही शस्त्र ने इसे दूसरे धर्मो से हो रहे हमलों से इसकी रक्षा की । इन्ही अखाड़ो में शैव सन्यासी के अखाड़े श्री पञ्च दशनाम अटल अखाड़ा ने कुंभ क्षेत्र में प्रवेश के लिए अपनी भव्य छावनी प्रवेश यात्रा निकाली। अलोपी बाग स्थिति अखाड़े में स्थानीय मुख्यालय से यह प्रवेश यात्रा निकाली गई। प्रवेश यात्रा में परम्परा,उत्साह और अनुशासन का खूबसूरत मेल देखने को मिला। आचार्य महा मंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती की अगुवाई में यह प्रवेश यात्रा निकली। सबसे आगे अखाड़े के ईष्ट देवता भगवान गजानन की सवारी और उसके पीछे अखाड़े के परंपरागत देवता ।

भाले और बारूद को भी मिला स्थान

अटल अखाड़े के जुलुस हो एक बात अलग से देखी गई और वह है अखाड़े की प्रवेश यात्रा में सबसे आगे फूलों से सजे धजे वह भाले जिन्हें अखाड़ो के इष्ट से कम सम्मान नहीं मिलता । अखाड़े की पेशवाई में अखाड़े के जुलूस में भी आगे था ‘सूर्य प्रकाश ‘ नाम का वह भाला जो केवल प्रयागराज के महाकुम्भ में ही अखाड़े के आश्रम से महाकुम्भ क्षेत्र में निकलता है । अखाड़े में भाला देवता के पूजने की परम्परा सैकड़ों बरसो से चली आ रही है ।अखाड़ो का कोई भी शुभ कार्य बिना भाला देवता के पूजा के सम्पन्न नहीं होता ।अखाड़ों के चार भाले हुआ करते थे जिनका नाम था सूर्य प्रकाश ,लक्ष्मी प्रकाश , दत्त प्रकाश और चन्द्र प्रकाश । अटल अखाड़े में भाले के अलावा बारूद की भी पूजा का रिवाज है । अटल अखाड़े ने शुरुआती दौर में जब अपना विस्तार किया तब उसने आसपास के रियासत दारो के पास दोस्ती का प्रसताव भेजा । जिसमे बारूद की भस्मी का इस्तेमाल किया जाता था ।बदलते दौर के साथ बारूद की परम्परा भले ही पीछे छूट गई हो । लेकिन आज भी प्रतीक के रूप में यह भस्मी गोले के रूप में पूजी जाती है जिसे अखाड़े का आग्नेय स्वरूप माना जाता है ।

विदेशी नहीं ले सकते इस अखाड़े में एंट्री

हर अखाड़े में साधुओं की संख्या को अधिक से अधिक बढाते हुए अपना प्रसार करने में लगा है लेकिन इन्ही अखाड़ो के बीच एक ऐसा अखाड़ा भी है जो अखाड़े में साधुओ की संख्या से अधिक अखाड़ो के साधुओ की परम्पराओं और पुराने संस्कारो को ज्यादा तरजीह देता है यही वजह है की इसने अपने अखाड़े में भारत से बाहर के देशो को इसमे शामिल करने पर रोक लगा रखी है । अपनी विचारों और आदर्शो पर यह अडिग यह अखाड़ा है -श्री शंभू पञ्च दशनाम अटल अखाड़ा ..।

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